

नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवाओं का आंदोलन हिंसक हो गया, जिसमें 20 लोगों की जान चली गई। आंदोलन काठमांडू से शुरू होकर देशभर में फैल गया। भारी दबाव के बाद सरकार ने प्रतिबंध हटाते हुए मंत्री से इस्तीफा लिया।
देर रात झुकी नेपाल सरकार
Kathmandu: नेपाल इन दिनों उबाल पर है। युवाओं का गुस्सा, सरकार की सख्ती और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध इन तीनों ने मिलकर एक ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया, जिसने देश को हिला कर रख दिया। काठमांडू से शुरू हुआ यह आंदोलन अब पोखरा, बुटवल, भैरहवा, भरतपुर, इटाहरी और दमक जैसे शहरों तक फैल चुका है। सोमवार को यह विरोध उस समय हिंसक हो गया जब हजारों की संख्या में युवाओं ने संसद भवन की ओर मार्च करते हुए परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की। झड़पों में पुलिस और प्रदर्शनकारी आमने-सामने आ गए। हालात ऐसे बिगड़े कि सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना को सड़कों पर उतारना पड़ा। इस हिंसा में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 347 से ज्यादा घायल हैं।
यह आंदोलन उस समय शुरू हुआ जब सरकार ने देशभर में सोशल मीडिया साइट्स पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया। सरकार का तर्क था कि सोशल मीडिया के जरिए भ्रामक जानकारी फैल रही है और इससे सामाजिक ताना-बाना प्रभावित हो रहा है। लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हुए सड़कों पर उतरने का फैसला किया। सरकार के खिलाफ गुस्से की एक और बड़ी वजह है हाल के महीनों में उजागर हुए कई भ्रष्टाचार के मामले, जिनमें प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार में बैठे कई मंत्री और अधिकारी संलिप्त पाए गए हैं। सोशल मीडिया पर इन घोटालों को लेकर आवाज़ उठी, जो सरकार को नागवार गुजरी। और अंततः सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया गया, जिससे युवा और भड़क उठे।
देर रात झुकी नेपाल सरकार
आंदोलन की सबसे खास बात यह रही कि इसकी अगुवाई स्कूली और कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने की। यूनिफॉर्म पहने ये युवा हाथों में बैनर और पोस्टर लिए सड़क पर उतरे, जिन पर लिखा था "भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं", "हमारी आवाज़ मत दबाओ", "फ्री इंटरनेट, फ्री युथ"। प्रदर्शन इतना व्यापक था कि पुलिस को प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए आंसू गैस, वाटर कैनन और रबर बुलेट्स तक का इस्तेमाल करना पड़ा। लेकिन इससे स्थिति और बिगड़ गई।
बढ़ते दबाव और हिंसा के बाद देर रात नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की घोषणा की। संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने आपात कैबिनेट बैठक के बाद यह जानकारी दी। इससे पहले गृह मंत्री रमेश लेखक ने हिंसा और स्थिति नियंत्रण न कर पाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी सुर बदलते हुए एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा, "मैं इस दुखद घटना से बेहद आहत हूं। हमें उम्मीद थी कि युवा शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखेंगे, लेकिन निहित स्वार्थों ने प्रदर्शन में घुसपैठ कर इसे हिंसक बना दिया। हम सोशल मीडिया बैन के पक्ष में नहीं थे और भविष्य में इसके लिए उपयुक्त माहौल बनाएंगे।"
पीएम ओली ने घटना की निष्पक्ष जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की है। यह समिति 15 दिनों के भीतर पूरी स्थिति का मूल्यांकन कर रिपोर्ट सौंपेगी और यह भी बताएगी कि भविष्य में ऐसी घटनाएं कैसे रोकी जा सकती हैं।
नेपाल की इस आंतरिक उथल-पुथल का असर भारत पर भी पड़ रहा है। भारत ने नेपाल सीमा पर अलर्ट घोषित कर दिया है। सशस्त्र सीमा बल ने सुरक्षा बढ़ा दी है और सीमावर्ती इलाकों में आने-जाने वालों की सघन जांच हो रही है। भारत-नेपाल की 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है।