

नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दावा किया कि भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम (सोर्स-इंटरनेट)
नई दिल्ली: पिछले हफ्ते नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दावा किया कि भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था अब जापान से भी आगे निकल गई है और यह आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के आंकड़ों पर आधारित है। हालांकि, दो दिन बाद नीति आयोग के ही सदस्य अरविंद विरमानी ने बयान देते हुए कहा कि भारत 2025 के अंत तक चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, इन विरोधाभासी बयानों ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है—क्या भारत वास्तव में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, या यह दावा जल्दबाज़ी में किया गया है?
आईएमएफ़ का अनुमान और वास्तविकता
आईएमएफ़ की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2025 तक लगभग 4.187 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। हालांकि, इस आंकड़े को अंतिम रूप देने के लिए पूरे वित्त वर्ष के जीडीपी आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इसलिए फिलहाल यह एक अनुमान ही माना जा रहा है।
अरविंद विरमानी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी देश की वार्षिक रैंकिंग तभी तय की जा सकती है जब वर्ष के सभी महीने के आंकड़े सामने आ जाएं।
प्रति व्यक्ति आय और असमानता की बहस
भारत की कुल जीडीपी भले ही तेजी से बढ़ रही हो, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत अभी भी दुनिया में काफी पीछे है। आईएमएफ़ के अनुसार, भारत की 2025 में प्रति व्यक्ति जीडीपी का अनुमान लगभग 2,991 डॉलर है, जबकि जापान की प्रति व्यक्ति आय 33,806 डॉलर तक पहुंच सकती है।
सोशल मीडिया पर इस असमानता को लेकर भी बहस तेज हो गई है। एक यूज़र ने लिखा, “अगर शीर्ष 10% अमीर लोगों को निकाल दिया जाए तो भारत की वास्तविक प्रति व्यक्ति आय केवल 1,265 डॉलर के आसपास रह जाती है, जबकि निचले 50% की प्रति व्यक्ति आय मात्र 449 डॉलर है।”
गहराती आर्थिक विषमता
अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं कि भारत में बढ़ती आर्थिक विषमता चिंताजनक है। “देश की औसत आय से अमीरों की कमाई का आंकड़ा छुप जाता है। यही वजह है कि जीडीपी जैसे औसत सूचकांक आर्थिक विषमता की असली तस्वीर नहीं दिखा पाते,” उन्होंने कहा। उनके अनुसार, प्रति व्यक्ति आय और अमीर-गरीब की खाई को समझे बिना महज जीडीपी का जश्न मनाना अधूरा विश्लेषण है।
समय से पहले दावा
नीति आयोग के इस बयान को लेकर यह भी चर्चा है कि सरकार आगामी लोकसभा चुनावों और अंतरराष्ट्रीय छवि निर्माण के दृष्टिकोण से भारत की आर्थिक ताकत को उजागर करना चाहती है। साथ ही, पाकिस्तान के साथ हालिया तनाव और फिर अचानक सीज़फायर के बाद इस तरह के दावे जनता में भरोसा पैदा करने की एक राजनीतिक रणनीति भी हो सकते हैं।