

वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के कारण अंतरिक्ष से धरती तक संचार अब संभव हो पाया है। नासा जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों ने स्पेस कम्युनिकेशन के लिए नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल किया है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
शुभांशु ने प्रधानमंत्री से की बात
New Delhi News: भारत के एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में पहुंचकर इतिहास रच दिया है। इस ऐतिहासिक यात्रा में उनके साथ और भी चार अंतरिक्ष यात्री थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला से आंतरिक्ष में उनकी यात्रा के अनुभव पर बातचीत की।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, शुभांशु ने प्रधानमंत्री से कहा कि धरती और अंतरिक्ष में बहुत बड़ा अंतर है, खासकर वहां पर सोने में आई चुनौतियां। उनका कहना था, भारत बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और जितना हमारा दिमाग शांत रहेगा, हम उतनी जल्दी चीजों को समझ पाएंगे।
अंतरिक्ष और धरती के बीच कम्युनिकेशन का सवाल
मानव के अंतरिक्ष में कदम रखने के साथ ही कम्युनिकेशन से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल उभरा है। अंतरिक्ष में बिना मोबाइल टावर के धरती से कम्युनिकेशन कैसे किया जाता है? यह सवाल कई लोगों के मन में आया। आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं।
अंतरिक्ष में कम्युनिकेशन कैसे होता है?
अंतरिक्ष में वैक्यूम होने के कारण कोई भी कम्युनिकेशन बहुत मुश्किल होता है। वहां न तो इंटरनेट के तार होते हैं और न ही केबल बिछाए जाते हैं, फिर भी अंतरिक्ष से धरती पर कम्युनिकेशन कैसे संभव है? इस सवाल का जवाब विज्ञान के द्वारा किए गए लगातार बदलावों में छिपा हुआ है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर हमेशा वैज्ञानिकों की एक टीम मौजूद रहती है और वे धरती पर स्थित स्पेस एजेंसियों से संपर्क बनाए रखते हैं। सैटेलाइट्स की मदद से अंतरिक्ष से तस्वीरें और डेटा धरती पर भेजा जाता है, और उसी तरह स्पेस स्टेशन से भी संपर्क स्थापित किया जाता है।
अंतरिक्ष और धरती के बीच कम्युनिकेशन की तकनीकी चुनौतियां
स्पेस से धरती तक कम्युनिकेशन करना उतना सरल नहीं है, जितना हम समझते हैं। नासा के स्पेस कम्युनिकेशन एंड नेविगेशन सिस्टम (SCaN) द्वारा यह कार्य संभाला जाता है। इस नेटवर्क में ट्रांसमीटर-नेटवर्क-रिसीवर की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रांसमीटर संदेश को कोड में बदलता है और उसे नेटवर्क के जरिए भेजता है, जबकि रिसीवर उसे डिकोड कर देता है। लेकिन यह प्रक्रिया उतनी आसान नहीं होती। एयरक्राफ्ट अक्सर सैकड़ों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हैं और उनके साथ कम्युनिकेशन करना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है।
धरती से अंतरिक्ष तक संपर्क
इस समस्या के समाधान के लिए नासा ने धरती के सातों महाद्वीपों में बड़े-बड़े एंटीना लगाए हैं। ये एंटीना 230 फीट के होते हैं और उनकी हाई फ्रीक्वेंसी के कारण 200 करोड़ मील तक संपर्क किया जा सकता है। इन एंटीना का चुनाव ऐसे स्थानों पर किया गया है, जहां से स्पेसक्राफ्ट और ग्राउंड स्टेशन के बीच संपर्क आसानी से स्थापित हो सके। इसके अलावा, नासा के पास रिले सैटेलाइट्स भी हैं, जो अंतरिक्ष और धरती के बीच संपर्क को सुलभ बनाते हैं। भविष्य में, नासा इन्फ्रारेड लेजर तकनीक का उपयोग करने पर काम कर रहा है, जिससे अंतरिक्ष से धरती पर संपर्क और भी आसान हो जाएगा।