Bihar Election 2025: एनडीए में पुराने दुश्मन बने दोस्त, जानें अब कितना दिलचस्प होगा मुकाबला?

राजनीतिक उठापटक के बीच बिहार चुनाव के लिए सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। भाजपा, जदयू, राजद, कांग्रेस समेत तमाम दल अपने पुराने रुखों से हटकर नए समीकरण बना रहे हैं। कभी एक-दूसरे के विरोधी रहे नेता अब साथ सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने की तैयारी में हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 13 October 2025, 3:20 PM IST
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Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और इसके साथ ही राज्य की राजनीति में नई चालें चली जा रही हैं। इस बार चुनावी मैदान में कुछ अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है कल तक जो दल एक-दूसरे के धुर विरोधी थे, अब वे गठबंधन में साथ खड़े हैं और सत्ता की होड़ में एकजुट होकर मुकाबला कर रहे हैं।

एनडीए में लौटे पुराने दुश्मन

2020 के विधानसभा चुनावों में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने जदयू को सीधा-सीधा निशाना बनाया था। उन्होंने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और भले ही केवल एक सीट जीत पाए हों, लेकिन जदयू के वोट काटकर पार्टी को नुकसान पहुंचाया था। जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन सिर्फ 43 सीटें ही जीत सकी थी।

उपेन्द्र कुशवाहा की वापसी और नई उम्मीदें

2020 में उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा न तो एनडीए में थी और न ही महागठबंधन में। उन्होंने 99 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन एक भी जीत दर्ज नहीं कर सके। अब वे रालोमो नाम से एक नई पार्टी के साथ एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं और उन्हें 6 सीटें दी गई हैं।

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मुकेश सहनी का बदलता रुख

पिछले चुनावों में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी एनडीए के साथ थे। उन्हें 11 सीटें मिली थीं और चार पर जीत हासिल की थी। लेकिन चुनाव बाद उनके सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इससे नाराज़ होकर अब मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ आ गए हैं और उपमुख्यमंत्री पद व 30 सीटों की मांग रख दी है।

कौन किसका कितना भरोसेमंद?

इस बार बिहार चुनाव में एक दिलचस्प पहलू यह है कि जितने भी नए दल गठबंधनों में शामिल हुए हैं, उनके ऊपर सीटों की जिम्मेदारी के साथ-साथ दूसरे दलों के लिए वोट ट्रांसफर कराने का दबाव भी है। चिराग पासवान को सिर्फ अपनी पार्टी के लिए नहीं, बल्कि जदयू और भाजपा उम्मीदवारों के लिए भी जनाधार जुटाना होगा।

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महागठबंधन में बंटवारे को लेकर खींचतान

महागठबंधन के भीतर फिलहाल सीटों का बंटवारा तय नहीं हो पाया है। राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल और वीआईपी के बीच चल रही रस्साकशी अब खुलकर सामने आ गई है। मुकेश सहनी जहां ज्यादा सीटों और पद की मांग कर रहे हैं, वहीं राजद की कोशिश है कि उन्हें ज्यादा हिस्सेदारी न दी जाए।

क्या नई दोस्तियां टिक पाएंगी?

इतिहास गवाह है कि बिहार की राजनीति में गठबंधन जितनी जल्दी बनते हैं, उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं। चुनाव पूर्व एकजुटता दिखाने वाले दल, नतीजों के बाद असंतोष और स्वार्थ के चलते राहें अलग कर लेते हैं।

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  • Patna

Published : 
  • 13 October 2025, 3:20 PM IST