

निक्की हत्याकांड मामला प्रदेश में सुर्खियों में है, वहीं अब तक एफआईआर की कॉपी पब्लिक डोमेन में सामने नहीं आना कई सवाल खड़े कर रहा है। यूपी पुलिस के UPCOP पोर्टल पर 24 घंटे के भीतर एफआईआर अपलोड करना अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में देरी पारदर्शिता और जांच की नीयत पर सवाल उठाती है।
निक्की हत्याकांड से उठे कई सवाल
Greater Noida: ग्रेटर नोएडा में दहेज के लिए जिंदा जलाकर मारी गई निक्की हत्याकांड ने प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा और पुलिसिया कार्रवाई पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। अब तक इस हाई-प्रोफाइल मामले की एफआईआर की कॉपी सार्वजनिक नहीं की गई है, जबकि नियम के अनुसार एफआईआर 24 घंटे के भीतर यूपी पुलिस के UPCOP पोर्टल पर अपलोड हो जानी चाहिए। एफआईआर की अनुपलब्धता ने मामले की पारदर्शिता और जांच की दिशा पर संदेह पैदा कर दिया है।
21 अगस्त को दहेज के लिए निक्की को उसके पति और ससुराल वालों ने पहले पीटा फिर ज्वलनशील पदार्थ डालकर आग लगा दी। गंभीर रूप से झुलसी निक्की ने दम तोड़ दिया और यह घटना पूरे राज्य में आक्रोश का विषय बन गई। इस मामले में निक्की की बहन कंचन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी। जिसमें पति विपिन, देवर रोहित और सास-ससुर को नामजद किया गया था। पुलिस ने हत्या, चोट पहुंचाने और षड्यंत्र की धाराओं में मामला दर्ज किया। लेकिन सवाल यह है कि एफआईआर की कॉपी अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई?
उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय द्वारा लागू की गई UPCOP (Uttar Pradesh CCTNS On Police) प्रणाली के तहत हर थाने में दर्ज एफआईआर को 24 घंटे के भीतर पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और नागरिकों को सूचना आसाने से पहुंचा देना है। यदि एफआईआर किसी संवेदनशील कारण से पोर्टल पर नहीं डाली जाती तो उसकी स्पष्ट वजह संबंधित अधिकारी को दर्ज करनी होती है। लेकिन निक्की केस में न तो एफआईआर पोर्टल पर उपलब्ध है, न ही कोई अधिकारिक बयान सामने आया है।
जब पूरा मामला मीडिया की सुर्खियों में है, आरोपी पति एंकाउंटर में पकड़ा गया है, पीड़िता की मौत हो चुकी है तो फिर एफआईआर को पब्लिक डोमेन से बाहर रखने की क्या जरूरत है? कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई तकनीकी कारण नहीं है, तो एफआईआर को सार्वजनिक न करना गंभीर लापरवाही या जानबूझकर की गई गोपनीयता का संकेत हो सकता है। इससे यह आशंका पैदा होती है कि कहीं पुलिस या स्थानीय प्रशासन की तरफ से कुछ तथ्य दबाने की कोशिश तो नहीं हो रही?
एफआईआर की कॉपी सार्वजनिक नहीं होने से केस में दर्ज धाराएं, आरोपियों की स्थिति, पुलिस की शुरुआती कार्रवाई और पीड़िता के बयान जैसी कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने नहीं आ सकीं। यही वजह है कि आम जनता और सोशल मीडिया पर यह मामला अब "पुलिसिया गोपनीयता बनाम पारदर्शिता" के मुद्दे में बदलता जा रहा है।
निक्की का मासूम बेटा जो खुद घटना का गवाह है, उसने कहा कि "पापा ने मम्मी पर कुछ छिड़का और लाइटर से आग लगा दी।" वहीं बहन कंचन ने बार-बार निक्की को मिल रही प्रताड़ना का उल्लेख किया, जिसमें दहेज की लगातार मांगें, मारपीट और पंचायतों तक मामला जाना शामिल था। इन तमाम बातों के बावजूद एफआईआर की अस्पष्टता ने निक्की के परिवार को न्याय मिलने की प्रक्रिया को और भी जटिल बना दिया है।
पुलिस ने आरोपी पति विपिन को तीन दिन बाद पकड़ा, वह हिरासत से भाग निकला और फिर एंकाउंटर में गिरफ्तार किया गया। सास, ससुर और देवर अब भी फरार हैं। क्या एफआईआर को सार्वजनिक न करना इसी देरी और असहज स्थिति को छिपाने का प्रयास है? यह सवाल लगातार उठ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने Youth Bar Association vs Union of India (2016) के एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सभी एफआईआर को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाए ताकि नागरिकों को उनकी कॉपी के लिए पुलिस के चक्कर न लगाने पड़ें। यूपी में भी इसी के तहत UPCOP सिस्टम लागू किया गया है। जिसमें यह तय है कि एफआईआर 24 घंटे में सार्वजनिक हो। निक्की केस में इस आदेश की भी अवहेलना होती दिख रही है।
1. एफआईआर अब तक UPCOP पोर्टल पर क्यों नहीं डाली गई?
2. क्या एफआईआर में दर्ज धाराएं जानबूझकर कम रखी गई हैं?
3. क्या पुलिस कुछ तथ्यों को सार्वजनिक करने से बच रही है?
4. क्या निक्की के परिवार को एफआईआर की प्रति दी गई है?