

प्रवर्तन निदेशालय ने रिलायंस पावर के CFO अशोक कुमार पाल को 17,000 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया है। यह कदम वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत है। मामले की गहराई अब और बढ़ने की संभावना है।
अनिल अंबानी के करीबी अधिकारी अशोक कुमार पाल गिरफ्तार (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
New Delhi: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एक बड़े एक्शन में रिलायंस पावर लिमिटेड के मुख्य वित्तीय अधिकारी (CFO) और कार्यकारी निदेशक अशोक कुमार पाल को मनी लॉन्ड्रिंग के एक हाई-प्रोफाइल मामले में गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी 17,000 करोड़ रुपये के कथित बैंक ऋण धोखाधड़ी से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग जांच का हिस्सा है, जिसमें अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस समूह की कई कंपनियों के शामिल होने की बात सामने आई है।
कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, अशोक कुमार पाल एक अनुभवी चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, जिन्हें वित्तीय प्रबंधन का 25 वर्षों से अधिक का अनुभव है। वे पिछले सात वर्षों से रिलायंस पावर में CFO की भूमिका निभा रहे थे और कंपनी के वित्तीय निर्णयों में अहम भूमिका रखते थे। अब उनकी गिरफ्तारी इस बात का संकेत है कि ईडी ने जांच को ऊंचे स्तर तक पहुंचा दिया है और सिर्फ प्रमोटरों तक ही नहीं, बल्कि शीर्ष प्रबंधन की भी जवाबदेही तय की जा रही है।
ईडी की जांच के अनुसार, रिलायंस समूह की कई कंपनियों- जैसे रिलायंस पावर, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस- ने 17,000 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक ऋण लिए थे। इन फंड्स का कथित रूप से डायवर्जन यानी दुरुपयोग किया गया। इसका सीधा मतलब यह है कि जिन उद्देश्यों के लिए लोन लिया गया, उन उद्देश्यों के बजाय पैसे को दूसरी जगह ट्रांसफर या खर्च किया गया।
यस बैंक से 3,000 करोड़ रुपये का अवैध ऋण डायवर्जन
यह पहला बड़ा आरोप यस बैंक द्वारा 2017 से 2019 के बीच अनिल अंबानी समूह की कंपनियों को दिए गए लगभग 3,000 करोड़ रुपये के लोन से जुड़ा है। आरोप है कि इन फंड्स का इस्तेमाल तय उद्देश्यों के बजाय दूसरी कंपनियों या व्यक्तिगत हितों के लिए किया गया।
रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 14,000 करोड़ की धोखाधड़ी
दूसरा बड़ा आरोप रिलायंस कम्युनिकेशंस पर है, जिस पर 14,000 करोड़ रुपये से अधिक के लोन में कथित फर्जीवाड़ा और डायवर्जन का आरोप है। यह मामला और भी गंभीर इसलिए है क्योंकि रिलायंस कम्युनिकेशंस पहले ही दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही है और हजारों करोड़ के कर्ज बकाया हैं।
इससे पहले, प्रवर्तन निदेशालय ने अनिल अंबानी को भी इस मामले में पूछताछ के लिए तलब किया था। सूत्रों के अनुसार, ईडी ने उनसे यह जानना चाहा कि उनकी कंपनियों ने इतने बड़े पैमाने पर लिए गए लोन को कहां और कैसे इस्तेमाल किया। जांच एजेंसी ने 12 से 13 बैंकों से भी विवरण मांगा है कि जब इन कंपनियों को लोन दिया गया था, तो ड्यू डिलिजेंस यानी उचित जांच कैसे की गई थी।
अनिल अंबानी को एक और झटका
ईडी की मनी लॉन्ड्रिंग जांच फिलहाल दो मुख्य पहलुओं पर केंद्रित है-
फंड डायवर्जन का पैटर्न: किस प्रकार से इन कंपनियों ने लोन लिए और फिर उन पैसों को अन्य कंपनियों या अकाउंट्स में ट्रांसफर किया गया।
बैंकिंग प्रक्रियाओं में खामी: क्या बैंकों ने लोन देते समय उचित जांच नहीं की या जानबूझकर आंखें मूंद लीं?
सूत्रों की मानें तो ईडी अब इस मामले में और गिरफ्तारियां कर सकती है और बोर्ड स्तर तक की जवाबदेही तय कर सकती है। इसके अलावा, बैंक अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, जो इन ऋणों की स्वीकृति और वितरण में शामिल थे।
यह मामला न सिर्फ रिलायंस समूह की साख पर असर डालता है, बल्कि देश के बैंकिंग सिस्टम और कॉरपोरेट गवर्नेंस पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। जब इतने बड़े पैमाने पर लोन फेल होते हैं और उनका पैसा गलत जगह इस्तेमाल होता है, तो इसका सीधा असर आम जनता के पैसे पर पड़ता है क्योंकि बैंकिंग सिस्टम जनता की जमा पूंजी पर आधारित है। अशोक कुमार पाल की गिरफ्तारी ईडी की एक बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है, मनी लॉन्ड्रिंग के इस मामले में आने वाले दिनों में और भी बड़े खुलासे और कार्रवाइयों की संभावना है।