बिहार विधानसभा चुनाव 2025: रामविलास से लेकर पारस तक की कहानी, जानें अलौली सीट का समीकरण

बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र सीट का समीकरण में आज बात अलौली विधानसभा सीट की। यह सीट न केवल राजनीतिक रूप से अहम रही है, बल्कि इसने बिहार और देश की राजनीति को कई बड़े चेहरे दिए हैं। रामविलास पासवान और पशुपति कुमार पारस जैसे दिग्गजों की कहानी इसी सीट से शुरू होती है। आइए जानते हैं इस सीट का पूरा राजनीतिक इतिहास।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 22 August 2025, 1:15 PM IST
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Patna: बिहार की अलौली विधानसभा सीट का गठन 1962 में हुआ और पहले ही चुनाव में कांग्रेस ने बाज़ी मारी। कांग्रेस के मिश्री सदा ने स्वतंत्र पार्टी के धनपत दास को 14,443 वोटों से हराकर यह सीट जीत ली। उस समय कुल तीन उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें से दो की ज़मानत जब्त हो गई थी।

1967: कांग्रेस की दोबारा वापसी

1967 के चुनाव में भी कांग्रेस को इस सीट पर सफलता मिली। इस बार भी मिश्री सदा ने जीत हासिल की और निर्दलीय प्रत्याशी एस. दास को 10,378 वोटों से हराया।

1969: मध्यावधि चुनाव और रामविलास पासवान का राजनीतिक आगाज़

1969 का चुनाव बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। यह समय था जब पहली बार राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए। अलौली सीट से एक नया चेहरा उभरकर सामने आया- रामविलास पासवान। रामविलास ने डीएसपी की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा। प्रचार के लिए उन्होंने साइकिल का सहारा लिया और पूरे क्षेत्र में भ्रमण किया। 1969 के चुनाव में उन्हें 45.29% वोट मिले और वे पहली बार विधायक बने।

1972: मिश्री सदा की वापसी, रामविलास को हार

1972 में हुए विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान को कांग्रेस के मिश्री सदा ने हराया। इस चुनाव में मिश्री सदा ने पासवान को 6,807 वोटों से मात दी और अपनी राजनीतिक पकड़ दोबारा साबित की।

1977: पासवान के भाई पारस की राजनीति में एंट्री

1977 में रामविलास पासवान हाजीपुर से सांसद चुने गए। इसके बाद अलौली सीट से उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के मिश्री सदा को 3,607 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। इसी के साथ पारस की जीत का लंबा सिलसिला शुरू हुआ।

1980: एक बार फिर कांग्रेस की जीत

1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) से चुनाव लड़ रहे पारस को कांग्रेस (आई) के मिश्री सदा ने करारी शिकस्त दी। इस बार हार का अंतर 9,440 वोट था।

1985 से 2005: पारस का दबदबा कायम

1985 में लोकदल के टिकट पर पशुपति पारस ने कांग्रेस के वागेश्वर पासवान को 21,699 वोटों से हराया। इसके बाद 1990, 1995, 2000, फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में पारस ने लगातार जीत दर्ज की।

• 1990: जनता दल से पारस ने कांग्रेस के अरुण कुमार पासवान को 28,191 वोटों से हराया।
• 1995: कांग्रेस के मिश्री सदा को 17,357 वोटों से मात दी।
• 2000: राजद के रामबृक्ष सदा को 4,686 वोटों से हराया।
• फरवरी 2005: राजद की मीरा देवी को 9,711 वोटों से हराया।
• अक्टूबर 2005: राजद के रामबृक्ष सदा को 8,577 वोटों से शिकस्त दी।
इस दौरान पारस ने पार्टी ज़रूर बदली, लेकिन जीत का सिलसिला जारी रहा।

2010: पारस की हार, रामचंद्र सदा की जीत

2010 के चुनाव में पहली बार पशुपति पारस को हार का सामना करना पड़ा। जदयू के रामचंद्र सदा ने उन्हें 17,523 वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया।

2015: राजद का उदय, पारस फिर पराजित

2015 के चुनाव में राजद के चंदन कुमार ने पशुपति पारस को करारी शिकस्त दी। चंदन को 70,519 वोट मिले जबकि पारस को 46,049 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। हार का अंतर 24,470 वोट रहा।

2020: रामवृक्ष सदा की जीत, लोजपा तीसरे नंबर पर

2020 के चुनाव में अलौली सीट से राजद के रामवृक्ष सदा ने जदयू की साधना देवी को 2,773 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। इस बार लोजपा तीसरे स्थान पर रही। खास बात यह रही कि 2010 में विजेता रहे रामचंद्र सदा इस बार लोजपा के टिकट पर मैदान में थे।

Location : 
  • Patna

Published : 
  • 22 August 2025, 1:15 PM IST