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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान दर लगभग 64.66 % दर्ज की गई, जो राज्य का अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। जिसका मुख्य कारण है- महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, मतदाता सूचियों का संशोधन, बेहतर मतदान व्यवस्था, त्योहार के बाद लौटे प्रवासी मतदाता और युवा-सक्रियता।
बिहार में मतदान दर में 8 % तक उछाल
Patna: 6 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 121 सीटों पर 18 जिलों में मतदान हुआ। राज्य की कुल 243 सीटों में से इन पर मतदान के दौरान 64.66 फीसदी मतदान दर्ज किया गया — जो वर्ष 2020 के पहले चरण के लगभग 56.1 फीसदी मतदान की तुलना में करीब 8.5 प्रतिशत अंकों की छलांग है। सप्ताह के दिन होने के बावजूद 3.75 करोड़ से अधिक मतदाता मतदान केंद्रों तक पहुंचे, जो बिहार की राजनीतिक प्रक्रिया में असाधारण जन-सक्रियता का संकेत है।
चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष तीव्र पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) किया गया, जिसमें लगभग 65 लाख नाम हटाए गए, जिनमें मृतक, स्थानांतरित या दोहराए गए मतदाता शामिल थे। इस कारण कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या घट गई। परिणामस्वरूप, वास्तविक मतदाताओं की संख्या लगभग समान रहने पर भी मतदान प्रतिशत में वृद्धि दर्ज हुई।
महिला मतदाताओं को प्रोत्साहित करने और मतदान-सुलभता बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए गए। महिलाओं के लिए समर्पित बूथ, स्वयंसेवी "आउटरीच" कार्यकर्ता और हाशिए के मतदाताओं के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं। इन प्रयासों से मतदान-केंद्रों तक पहुँच की बाधाएँ घटीं और महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोगों से ‘पूरा उत्साह के साथ मतदान करने’ की अपील की थी, जिससे मतदान-उत्साह और बढ़ा।
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इस बार चुनाव आयोग ने मतदान प्रक्रिया की रियल-टाइम निगरानी की। ग्रामीण इलाकों में मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई, बूथ का आकार छोटा रखा गया और भीड़भाड़ कम की गई। इन व्यवस्थागत सुधारों ने मतदाताओं के विश्वास को बढ़ाया और मतदान को अधिक सहज और सुरक्षित बनाया।
राष्ट्रीय-स्तर के नेताओं ने बिहार भर में व्यापक चुनावी रैलियाँ की।इस गहन राजनीतिक माहौल और दल-विशेष की संगठित मतदाता-सक्रियता ने चुनाव को एक नागरिक कर्तव्य की तरह प्रस्तुत किया, न कि मात्र एक औपचारिक प्रक्रिया की तरह। नतीजतन, मतदाताओं में जागरूकता और मतदान की प्रेरणा दोनों बढ़ीं।
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बिहार के चुनावी इतिहास में जब-जब मतदान दर में पाँच प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, सत्ता-परिवर्तन हुआ है —
जैसे 1967, 1980 और 1990 में। इस बार 8.5 प्रतिशत अंकों की उछाल ने राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज कर दी है कि क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
पहले चरण की 121 सीटें गंगा नदी के दक्षिण वाले इलाकों में आती हैं — मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर, सारण और भोजपुर बेल्ट। यह इलाका लंबे समय से बिहार की राजनीति का बैरोमीटर माना जाता है। 2020 के चुनाव में इस क्षेत्र में महागठबंधन ने 61 और एनडीए ने 59 सीटें जीती थीं। इस बार कुछ दलों के नए गठबंधन — जैसे वीआईपी का महागठबंधन से जुड़ना- समीकरणों को और दिलचस्प बना रहे हैं। अब दोनों प्रमुख गठबंधन इस रिकॉर्ड मतदान को अपने-अपने पक्ष में सकारात्मक संकेत के रूप में पेश कर रहे हैं।
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सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या यह उच्च मतदान सत्ता-परिवर्तन लाएगा या स्थायित्व का संकेत देगा? इतिहास बताता है कि अधिक मतदान अक्सर एंटी-इंकम्बेंसी (विरोध-लहर) का संकेत देता है, पर हर बार ऐसा नहीं होता। अब यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नए या पहले निष्क्रिय मतदाताओं ने किस खेमे को चुना है। 14 नवंबर को परिणाम घोषित होने हैं, जबकि दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा। अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या यह रिकॉर्ड मतदान सत्ता के पलड़े को झुका देगा या मौजूदा सरकार की स्थिति और मजबूत करेगा।
किन सीटों पर मतदान में सबसे ज्यादा उछाल आया?
क्या नए या हाशिए के मतदाताओं ने मतदान दर बढ़ाई?
गंगा के दक्षिणी क्षेत्र में मतदान बढ़त और नतीजों का क्या संबंध रहेगा?
क्या यह बढ़ा हुआ मतदान सीटों में उलटफेर करेगा या सिर्फ भागीदारी का संकेत रहेगा?