Uttarakhand News: विलुप्त होती जा रही है कुमाऊं की पारंपरिक जन्यो कातने की परंपरा, जानें इसके पीछे की असली वजह

कुमाऊं अंचल में श्रावण पूर्णिमा पर ब्राह्मण परिवारों द्वारा हाथ से जन्यो कातने और यजमानों को पहनाने की परंपरा अब लुप्तप्राय है। आधुनिकता, समयाभाव और बाजारवाद ने इस आत्मीय परंपरा को खतरे में डाल दिया है। पढ़ें पूरी खबर

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 6 July 2025, 8:29 AM IST
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Haldwani: उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल की एक पुरानी और विशिष्ट परंपरा हाथ से जन्यो (यज्ञोपवीत) कातने की परंपरा अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। सदियों से ब्राह्मण समाज में यह रिवाज चला आ रहा है कि श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बंधन) के दिन ब्राह्मणजन अपने यजमानों के घर जाकर उन्हें विधिपूर्वक नया जन्यो पहनाते और रक्षा-सूत्र बांधते थे।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के मुताबिक इस परंपरा की खास बात यह थी कि जन्यो का धागा बाजार से नहीं खरीदा जाता था, बल्कि ब्राह्मण परिवार की महिलाएं खुद चरखे से रूई कातकर यह धागा तैयार करती थीं। बाद में घर के पुरुष सदस्य पवित्र स्थान पर बैठकर मंत्रोच्चारण के साथ उस धागे को बुनते थे। यह प्रक्रिया धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक जुड़ाव, परिवारिक सहयोग और श्रद्धा का प्रतीक भी मानी जाती थी।

परंपरा का महत्व

जन्यो देना केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि ब्राह्मण और यजमान के बीच एक आत्मीय और स्थायी संबंध का प्रमाण था। यजमान परिवार न केवल पूजा करवाता था, बल्कि पंडित को पूरे सम्मान के साथ आमंत्रित कर उनका आतिथ्य भी करता।

विलुप्त होने के कारण

लेकिन अब यह परंपरा समय, आधुनिकता और बाजारवाद के चलते खत्म होने की कगार पर है। तैयार यज्ञोपवीत धागे अब दुकानों से खरीद लिए जाते हैं। नई पीढ़ी को न इसकी विधि की जानकारी है और न ही इस परंपरा का सामाजिक व आध्यात्मिक महत्व समझ में आता है।

कुछ बुजुर्ग ब्राह्मण आज भी इस परंपरा को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह प्रयास सीमित और विलुप्त होने के कगार पर हैं। यदि स्थानीय समुदाय, धार्मिक संगठन और युवा पीढ़ी ने मिलकर इस धरोहर को नहीं संभाला, तो आने वाले समय में यह परंपरा केवल किताबों और स्मृतियों तक सिमट जाएगी।

संस्कृति को जीवित रखने के लिए जरूरी है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें, क्योंकि परंपराएं केवल अतीत की चीज़ नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाली चेतना होती हैं। यदि स्थानीय समुदाय, धार्मिक संगठन और युवा पीढ़ी ने मिलकर इस धरोहर को नहीं संभाला, तो आने वाले समय में यह परंपरा केवल किताबों और स्मृतियों तक सिमट जाएगी।

पजनेऊ धारण करने के नियम
- जनेऊ धारण करने से पहले स्नान और ध्यान करना आवश्यक है।
- इसे बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे पहनना चाहिए।
- शौच के वक्त जनेऊ को दाहिने कान में दो बार लपेट लेना चाहिए।

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