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दिसम्बर के अंतिम दिनों में भी केदारनाथ धाम और आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं पर बर्फबारी नहीं हुई है। ठंड बढ़ने से पानी जम रहा है, पुनर्निर्माण कार्य ठप हैं और मजदूर लौट रहे हैं, जो जलवायु बदलाव और मौसम रुझान की ओर संकेत करता है।
कड़ाके की ठंड का कहर (फोटो सोर्स- डाइनामाइट न्यूज़)
Rudraprayag: केदारनाथ धाम में दिसम्बर माह लगभग समाप्ति की ओर है, लेकिन इस बार अब तक बर्फबारी नहीं हुई है। आमतौर पर इस समय तक धाम और आसपास की पहाड़ियां मोटी बर्फ की चादर ओढ़ लेती थीं। पिछले वर्षों में यहां पांच फीट तक बर्फ जमा हो जाया करती थी, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। न सिर्फ केदारपुरी, बल्कि आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं पर भी बर्फ के दर्शन नहीं हो रहे हैं।
भले ही बर्फ नहीं गिरी हो, लेकिन धाम में ठंड का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। रात के समय तापमान शून्य से काफी नीचे चला जा रहा है, जिससे पाइपलाइन और खुले स्थानों में रखा पानी जमने लगा है। तेज ठंडी हवाओं के चलते केदारनाथ में रुकना मुश्किल होता जा रहा है। दिन में धूप निकलने पर कुछ राहत जरूर मिलती है, लेकिन शाम ढलते ही ठंड फिर से असर दिखाने लगती है।
धाम में चल रहे पुनर्निर्माण और मरम्मत कार्यों पर ठंड का सीधा असर पड़ा है। अत्यधिक ठंड और पानी जमने की समस्या के कारण कई कार्य अस्थायी रूप से बंद कर दिए गए हैं। मशीनें और उपकरण ठंड में ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते निर्माण एजेंसियों ने काम रोकने का निर्णय लिया है, जिससे परियोजनाओं की समय-सीमा पर भी असर पड़ सकता है।
काम बंद होने के कारण केदारनाथ में तैनात मजदूर अब वापस अपने घरों की ओर लौटने लगे हैं। ठंड में रोजगार के सीमित अवसर और कठिन परिस्थितियों के चलते मजदूरों के लिए यहां रुकना संभव नहीं रह गया है। स्थानीय प्रशासन के अनुसार अधिकांश मजदूर शीतकाल के दौरान निचले इलाकों में चले जाते हैं और मौसम अनुकूल होने पर फिर से लौटते हैं।
पानी जमने से थमे पुनर्निर्माण कार्य (फोटो सोर्स- डाइनामाइट न्यूज़)
अक्सर इन दिनों केदारपुरी चारों ओर से बर्फ से ढकी रहती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। दिसम्बर माह में धाम में बर्फ गिरी ही नहीं है। हालांकि ठंड काफी बढ़ गई है, जिसके चलते पुनर्निर्माण कार्य बंद हो रहे हैं और मजदूर वापस लौट रहे हैं।
शीतकाल में केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद यहां पर्यटन गतिविधियां पहले ही थम जाती हैं। ऐसे में बर्फबारी न होना स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गया है। आमतौर पर भारी बर्फबारी के कारण धाम पूरी तरह शांत हो जाता है और प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है, लेकिन इस बार वह दृश्य देखने को नहीं मिल रहा।
मौसम के इस असामान्य व्यवहार को विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं। समय पर बर्फबारी न होना भविष्य में जल स्रोतों, नदियों और पर्यावरण संतुलन को प्रभावित कर सकता है। केदारनाथ जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ प्राकृतिक जल भंडारण का काम करती है, जो गर्मियों में नदियों के प्रवाह को बनाए रखने में सहायक होती है।
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हालांकि मौसम विभाग की ओर से अभी तक भारी बर्फबारी को लेकर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं, फिर भी स्थानीय लोग और प्रशासन आने वाले दिनों में बदलाव की उम्मीद लगाए हुए हैं। यदि दिसम्बर पूरी तरह बिना बर्फ के गुजरता है, तो यह केदारनाथ के मौसम इतिहास में एक अलग अध्याय के रूप में दर्ज हो सकता है।