

हरिद्वार में कांवड़ यात्रा का विधिवत शुभारंभ हो गया है।इस अवसर पर धर्मनगरी हरिद्वार में एक बार फिर से आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा।
हरिद्वार में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
Haridwar : धर्मनगरी हरिद्वार में एक बार फिर से आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है। श्रावण मास के प्रारंभ होते ही कांवड़ यात्रा आज से विधिवत शुरू हो गई है।
हरिद्वार की पवित्र हर की पैड़ी से लाखों शिवभक्त गंगाजल लेकर अपने गांव-शहर के शिवालयों की ओर रवाना होंगे। यह यात्रा न सिर्फ श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि भारत की लोक संस्कृति और सामूहिक एकजुटता की भी मिसाल है।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तक चलने वाली यह यात्रा शिवभक्तों के लिए अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है। देश के कोने-कोने से—दिल्ली, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से—कांवरिए हरिद्वार पहुंचकर भोलेनाथ को समर्पित कांवड़ लेकर रवाना हो रहे हैं।
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धर्मनगरी में इन दिनों ‘बम बम भोले’ और ‘हर हर महादेव’ के जयकारों से गगन गुंजायमान हो उठा है।
मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शंकर धरती पर विशेष रूप से निवास करते हैं। इसी क्रम में हरिद्वार के कनखल क्षेत्र का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार, राजा दक्ष की यज्ञ स्थली कनखल में ही भगवान शिव ने सती के पिता दक्ष को दिया गया वचन निभाने के लिए अपना धाम बनाया था।
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इसी वजह से शिवभक्त मानते हैं कि श्रावण में भोलेनाथ कनखल में ही विराजमान रहते हैं। इसलिए हरिद्वार की कांवड़ यात्रा विशेष पुण्यकारी मानी जाती है।
जानकारी के अनुसार वर्ष में दो बार कांवड़ यात्रा निकलती है—पहली फागुन मास में, जिसका जल महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है, और दूसरी श्रावण मास में, जिसमें गंगाजल शिव चौदस पर अर्पित किया जाता है। इस बार 23 जुलाई, बुधवार को शिव चौदस के दिन कांवरिए अपने शिवालयों में जलाभिषेक करेंगे।
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विशेष बात यह है कि इस बार एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी की तिथियां एक साथ पड़ रही हैं, जिससे त्रयोदशी का क्षय माना जाएगा और शिव चौदस का महत्व और बढ़ गया है।
इन पवित्र 14 दिनों में हरिद्वार का वातावरण पूरी तरह शिवमय हो जाता है। सड़कें, घाट, शिवालय और हर गली कांवड़ियों के जयकारों से गूंज उठते हैं। कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अनुशासन, सहिष्णुता और भक्ति का अद्भुत संगम है।
धर्मनगरी हरिद्वार इस महायात्रा के माध्यम से न केवल आस्था का केंद्र बनती है, बल्कि गंगा-जमुनी संस्कृति को जीवित रखने का कार्य भी करती है।
कांवड़ यात्रा का यह महापर्व शिवभक्तों के लिए तपस्या के समान है। कांवड़ उठा कर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा तय कर गंगाजल को शिवलिंग पर अर्पित करना भक्तों के लिए मोक्षदायक माना जाता है।
हरिद्वार प्रशासन और स्थानीय लोग भी कांवड़ियों के स्वागत और व्यवस्था में जुटे हैं, ताकि यह महायात्रा शांतिपूर्ण और सफलतापूर्वक सम्पन्न हो सके।
श्रावण मास की यह पावन यात्रा सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए, यही कामना हर शिवभक्त कर रहा है। ‘हर हर महादेव!’