हिंदी
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में NOTA लागू करने और बैलेट पेपर पर प्रत्याशी का नाम शामिल करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याची ने ग्रामीण मतदाताओं को NOTA न देना असंवैधानिक बताया है। हाईकोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा।
प्रतीकात्मक फोटो (सोर्स: इंटरनेट)
Lucknow: उत्तर प्रदेश में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को पारदर्शी और मतदाता-अनुकूल बनाने की मांग एक बार फिर अदालत की चौखट तक पहुंच गई है। नोटा का विकल्प लागू करने और बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों के नाम अनिवार्य रूप से शामिल करने की मांग वाली जनहित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दाखिल की गई है। याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को होगी, जिसे न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता सुनील कुमार मौर्य ने कहा है कि पंचायत चुनावों में उपयोग होने वाले बैलेट पेपर पर सिर्फ चुनाव चिह्न छपा होता है, जबकि प्रत्याशी का नाम इसमें शामिल नहीं किया जाता। इससे खासकर ग्रामीण इलाकों में अशिक्षित मतदाताओं के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होती है। कई बार मतदाता चुनाव चिह्न को पहचान नहीं पाते या दो चिह्नों में भ्रमित हो जाते हैं।
टीम इंडिया के माथे से नहीं मिट रहा ये ‘कलंक’! अफ्रीकी टीम के खिलाफ रनचेस से पहले ही तय हो गई थी हार
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में NOTA का विकल्प उपलब्ध नहीं है। शहरी निकायों (नगर निगम, नगर पालिका) के चुनावों में जहां NOTA दिया जाता है, वहीं ग्रामीण पंचायत चुनावों में इसे शामिल न करके राज्य निर्वाचन आयोग शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के बीच भेदभाव कर रहा है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने अपनी याचिका में एक आरटीआई का हवाला दिया है, जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग ने 20 अगस्त 2025 को जवाब दिया था कि पंचायत चुनावों में लगभग 55-60 करोड़ मतपत्र छपते हैं। समय और संसाधनों की कमी के कारण NOTA और उम्मीदवारों के नाम छापना संभव नहीं। आयोग का कहना है कि पंचायत चुनावों में पदों की संख्या बहुत अधिक होती है।
याचिकाकर्ता सुनील मौर्य ने आयोग के तर्क को “असंवैधानिक और अस्वीकार्य” बताते हुए चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रणाली में सुधार और मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा प्रशासनिक सुविधाओं से अधिक महत्वपूर्ण है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि प्रशासनिक कठिनाई कोई वैध आधार नहीं है, मौलिक अधिकारों के मामले में सरकारी सुविधाओं की कमी को कारण नहीं बताया जा सकता।
याचिका में कहा गया है कि शहरी मतदाताओं को अधिक अधिकार देना और ग्रामीण मतदाताओं को सीमित विकल्प देना असमानता का रूप है। शहरी मतदाता NOTA का प्रयोग कर सकते हैं, जबकि ग्रामीण मतदाताओं को यह अधिकार नहीं मिलता। पंचायत चुनावों में अधिक मतदाता हिस्सा लेते हैं, इसलिए चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
No related posts found.