UP Panchayat Polls: जातीय समीकरण पर BJP का बड़ा दांव, 2026 के लिए क्या है आगे की नई रणनीति

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी के भीतर जातीय गोलबंदी की हलचल अचानक तेज़ हो गई है। हाल ही में राजधानी लखनऊ से लेकर बरेली तक हुए सिलसिलेवार शक्ति-प्रदर्शनों ने यह संकेत दे दिया है कि जातीय समूह अब संगठन पर प्रत्यक्ष दबाव बनाने की कोशिश में हैं।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 18 August 2025, 4:20 PM IST
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Lucknow: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी के भीतर जातीय गोलबंदी की हलचल अचानक तेज़ हो गई है। हाल ही में राजधानी लखनऊ से लेकर बरेली तक हुए सिलसिलेवार शक्ति-प्रदर्शनों ने यह संकेत दे दिया है कि जातीय समूह अब संगठन पर प्रत्यक्ष दबाव बनाने की कोशिश में हैं।

ठाकुर समुदाय की दो दौर की बैठकें

सबसे पहले 40 से अधिक क्षत्रिय विधायकों की एक बैठक राजधानी के एक होटल में हुई, जहां ‘कुटुंब परिवार’ के बैनर तले शक्ति प्रदर्शन किया गया। आयोजन में एमएलसी जयपाल सिंह व्यस्त और कुंदरकी से विधायक ठाकुर रामवीर सिंह की भूमिका मुख्य रही। अगले ही दिन राज्य के मंत्री जयवीर सिंह के नेतृत्व में दूसरी बैठक बुलाई गई, जिसमें एक बार फिर ठाकुर विधायकों की मज़बूत मौजूदगी दर्ज़ की गई।

इन बैठकों को सिर्फ सामाजिक मेलजोल कहकर खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों ही आयोजनों में संगठन और सरकार में हिस्सेदारी के संतुलन को लेकर चर्चा होने की बात सामने आ रही है।

कुर्मी और लोध समाज की जवाबी मौजूदगी

इसी क्रम में सरदार पटेल बौद्धिक विचार मंच के बैनर तले कुर्मी समुदाय के नेताओं ने लखनऊ के एक बड़े होटल में आयोजन किया। कार्यक्रम को ‘स्नेह मिलन’ का नाम दिया गया, लेकिन इसमें मंत्री, विधायक और सेवानिवृत्त नौकरशाहों की मौजूदगी ने इसे केवल सामाजिक नज़रिये से अलग कर दिया।

वहीं आज लोध समाज ने वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की जयंती पर बरेली के आंवला में अपनी ताकत दिखाई। उमा भारती की मौजूदगी, और धर्मपाल सिंह, बीएल वर्मा, संदीप सिंह, साक्षी महाराज जैसे नेताओं की भागीदारी ने इसे बड़ा राजनीतिक संदेश बना दिया।

विपक्ष ने साधा निशाना, भीतरखाने बेचैनी

इन बैठकों पर प्रतिक्रिया देते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि भाजपा के भीतर पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) वर्ग से जुड़े नेता खुद को घुटन में महसूस कर रहे हैं और 2027 तक यह पूरा नेतृत्व भाजपा छोड़ देगा।

कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी और सपा नेता अशोक यादव ने भी भाजपा पर आरोप लगाया कि पार्टी ‘सर्वसमावेशी’ होने का दिखावा करती है, लेकिन असल में सत्ता का संतुलन एक खास वर्ग के पक्ष में है।

भाजपा के लिए चुनौती: संतुलन बनाए या असंतोष झेले?

राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव का मानना है कि भाजपा को अब दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर उसे संगठन में जातीय प्रतिनिधित्व का संतुलन साधना है, दूसरी ओर विपक्ष के पीडीए एजेंडे को काटने के लिए स्पष्ट और ठोस रणनीति तैयार करनी होगी। अगर पार्टी अंदरूनी दबावों को नजरअंदाज करती है और 'अपरकास्ट पार्टी' की छवि गहराती है, तो पंचायत से लेकर विधानसभा चुनावों तक सीधे नुकसान की आशंका बन सकती है।

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  • Lucknow

Published : 
  • 18 August 2025, 4:20 PM IST