

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने कथावाचक की जाति पर उठे सियासी संग्राम का The MTA Speaks में गहन विवेचन किया गया
इटावा में भड़का कथा विवाद
इटावा: उत्तर प्रदेश का इटावा इन दिनों एक ऐसे विवाद के केंद्र में है, जिसने न सिर्फ गांव और समाज को, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति, पुलिस व्यवस्था, धार्मिक ढांचे और जातीय सोच को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ दो कथावाचकों की पिटाई का मामला नहीं, बल्कि पहचान, परंपरा और पाखंड की उस दीवार की दरार है, जो आज भी हमारे समाज में गहराई तक बैठी है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो The MTA Speaks में 21 जून से लेकर अब तक के हर घटनाक्रम की सिलसिलेवार पूरी कहानी बताई —तथ्यों, बयानों, आरोपों, और प्रतिक्रियाओं के साथ। यह सब शुरू हुआ 21 जून की शाम, जब इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव में एक भागवत कथा का आयोजन हुआ। कानपुर के कथावाचक मुकुट मणि सिंह यादव, और उनके साथी संत सिंह यादव वहां कथा कहने पहुंचे। गांव वालों का आरोप है कि उन्होंने खुद को ब्राह्मण बताकर कथा स्वीकार की, लेकिन बाद में जब उनकी जाति ‘यादव’ के रूप में सामने आई, तो विवाद खड़ा हो गया। यह विवाद अचानक हिंसा में तब्दील हो गया।
घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल
कथावाचकों के साथ न केवल मारपीट हुई, बल्कि उनका सिर मुंडवा दिया गया, चोटी काटी गई, और सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया गया। यही नहीं, कथावाचकों का दावा है कि एक महिला यजमान के पैर पर उनसे जबरन नाक रगड़वाई गई, उनके 25 हज़ार रुपये और एक चैन छीन ली गई, और उनके हारमोनियम आदि सामानों को तोड़ दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, पुलिस ने 22 जून को वीडियो का संज्ञान लिया। SSP बृजेश कुमार श्रीवास्तव के निर्देश पर पुलिस हरकत में आई और गांव के चार युवकों—आशीष तिवारी, उत्तम अवस्थी, प्रथम दुबे और निक्की अवस्थी को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें निक्की को मुख्य आरोपी माना जा रहा है।
कथावाचकों पर भी गंभीर आरोप
इस मामले में 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई। लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी। 23 जून को कथावाचक मुकुट मणि सिंह यादव, सपा सांसद जितेंद्र दोहरे के साथ SSP से मिलने पहुंचे और अपने साथ हुए अमानवीय व्यवहार की शिकायत दर्ज कराई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया और दस दिन में रिपोर्ट तलब की है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पूरे मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कथावाचकों को लखनऊ बुलाया, उन्हें ढोलक और हारमोनियम आदि के नुकसान पर आर्थिक मदद की। उन्होंने इस घटना को ‘वर्चस्ववादी मानसिकता’ का उदाहरण बताया और कहा कि अगर कथावाचन पर जाति की पाबंदी लगाई जाएगी तो सरकार को कानून बना देना चाहिए कि सिर्फ ब्राह्मण ही कथा कह सकते हैं। इसके बात तो पूरे मामले ने एक नया मोड़ ले लिया। 24 जून को कथावाचकों पर भी गंभीर आरोप लगे। दादरपुर निवासी जयप्रकाश तिवारी की शिकायत पर मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। उनके खिलाफ IPC की धाराओंके तहत संगीन केस दर्ज हुआ। आरोप यह था कि उन्होंने अपनी जातिगत पहचान छिपाई और धार्मिक भावनाएं भड़काई।
आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की मांग
यहीं से एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया—मुकुट मणि सिंह के पास दो आधार कार्ड हैं। एक में नाम ‘मुकुट मणि अग्निहोत्री’ है और दूसरे में ‘मुकुट मणि यादव’। दोनों कार्डों में एक जैसी फोटो और पता हैं। इस विवाद में अब जाति आधारित संगठन भी कूद पड़े। 25 जून को ‘विश्व यादव परिषद’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवधेश यादव कथावाचकों से मिले और आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। साथ ही चेतावनी दी कि यदि अन्य आरोपियों को जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। इसी दिन ‘भारतीय किसान यूनियन (धरतीपुत्र)’ ने भी प्रदर्शन किया और डीएम ऑफिस का घेराव किया।
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— Manoj Tibrewal Aakash (The MTA Speaks) (@Manoj_Tibrewal) June 25, 2025
पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग की
आज इटावा के दादरपुर में एक बड़ा घटनाक्रम हुआ जब कथावाचकों के समर्थन में पहुंची 'अहीर रेजिमेंट' और पुलिस आमने-सामने हो गए। ‘अहीर रेजिमेंट’ के लोगों ने नारेबाजी करते हुए गांव में जुलूस निकाला। स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई जब प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई। पुलिस पर पथराव हुआ, जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग की। इस घटना में कई प्रदर्शनकारी हिरासत में लिए गए और दर्जनों गाड़ियों को जब्त किया गया। इसके बाद नंबर आया ब्राह्मण महासभा का। इस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अरुण दुबे ने SSP से मिलकर कथावाचकों पर “महिलाओं से बदसलूकी, धार्मिक भावना आहत करने और जातिगत धोखाधड़ी” का आरोप लगाया और चेतावनी दी कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो वे राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ेंगे।
“हम जीवित रहेंगे तब तो कथा सुनाएंगे”
इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री ने इटावा के SSP बृजेश श्रीवास्तव को फटकार लगाई और कहा कि कुछ लोग यूपी में जातीय संघर्ष फैलाने की साजिश रच रहे हैं और पुलिस इसे रोकने में विफल हो रही है। मुख्यमंत्री ने औरैया और कौशांबी के पुलिस अधीक्षकों को भी लापरवाही के लिए आड़े हाथों लिया और कहा कि अब आगे ऐसी घटनाओं पर सीधे अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होगी। सबसे अधिक हैरानी की बात तो यह है कि कथावाचक मुकुट मणि ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्हें बंधक बनाकर मारा गया, व्यासपीठ पर पेशाब फेंका गया और जाति के नाम पर अपमानित किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि योगी सरकार उनकी हत्या तक करवा सकती है। जब पत्रकारों ने इनसे पूछा कि क्या अब आगे कथा सुनायेंगे तो इनका कहना था, “हम जीवित रहेंगे तब तो कथा सुनाएंगे।”
आध्यात्मिक परंपरा पर भी जातिगत पहरे लगेंगे?
इस पूरे विवाद पर धर्मगुरुओं की भी प्रतिक्रिया आई। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि सनातन धर्म की परंपरा में हर जाति को भगवान की कथा कहने और सुनने का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक मंचों पर व्यासपीठ पर ब्राह्मणों को ही बैठाने की परंपरा रही है।
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या कथावाचन जैसी आध्यात्मिक परंपरा पर भी जातिगत पहरे लगेंगे? क्या किसी के पास दो आधार कार्ड होना एक आपराधिक षड्यंत्र है या सिर्फ प्रशासनिक गलती? क्या धार्मिक आयोजनों में जाति का प्रमाणीकरण अनिवार्य होगा? और क्या ये सब लोकतांत्रिक भारत की मूल आत्मा के विरुद्ध नहीं है? यह विवाद अब न सिर्फ कानूनी और सामाजिक मसला है, बल्कि इसका असर राजनीतिक विमर्श तक भी पहुंच चुका है। जातीय संगठन, राजनीतिक दल, धार्मिक संस्थाएं और प्रशासन—सब अपने-अपने चश्मे से इस घटना को देख रहे हैं। यह वह समय है, जब हमें आपको मिलकर यह तय करना है कि सामाजिक समानता सिर्फ किताबों में रहेगी या व्यवहार में भी उतरेगी।