Ghazipur News: मां जेल में, बेटियां क्लास में! गाजीपुर जिला जेल ने रचा नया इतिहास; जानें पूरा मामला

पहली बार यूपी के किसी जेल में सजा काट रही महिला की बच्चियों को बाहर कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने भेजा गया।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 17 July 2025, 10:23 AM IST
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Ghazipur:  एक तरफ मां सजायाफ्ता है, तो दूसरी तरफ बेटियां उम्मीद की रौशनी बनकर किताबों की दुनिया में कदम रख रही हैं। गाजीपुर जिला जेल ने अपने इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। पहली बार, किसी सजायाफ्ता महिला कैदी की दो नाबालिग बेटियों को जेल की चारदीवारी से बाहर ले जाकर कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला दिलवाया गया है। जेल के गेट से जब ये दोनों बच्चियां सुबह 8 बजे मुस्कुराते हुए स्कूल बैग टांगे निकलीं, तो वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो गईं- लेकिन गर्व और आशा से भरीं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, जेल प्रशासन, बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्थाओं की कोशिशों का यह परिणाम है कि अब जेल में बंद महिलाओं के बच्चों को भी शिक्षा का अधिकार मिलने लगा है। यह पहल न सिर्फ इन बच्चियों का भविष्य संवारेगी, बल्कि समाज में एक सकारात्मक और मानवीय संदेश भी देगी।

सजा काट रही मां, जेल में पल रहे बच्चे

गाजीपुर जिला जेल में वर्तमान में तीन महिला बंदियों के कुल पांच बच्चे उनके साथ रह रहे हैं। इनमें से एक महिला, जो जिले के सबुआ गांव की निवासी है, पति, सास-ससुर और देवर के साथ दहेज हत्या के मामले में डेढ़ साल से जेल में बंद है। महिला की देवरानी की मृत्यु के बाद पूरे परिवार को सजा मिली थी।

महिला की दो बेटियां, जिनकी उम्र चार और पांच साल है, और एक तीन साल का बेटा भी जेल में रह रहा है। बच्चों की मासूमियत और उनके उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए बाल कल्याण समिति ने सुझाव दिया कि बच्चियों को स्कूल भेजा जाए, ताकि वे सामान्य जीवन के करीब रह सकें।

सरस्वती विद्या मंदिर में मिला दाखिला

बच्चियों को गाजीपुर के सरस्वती विद्या मंदिर में दाखिल कराया गया है- एक को यूकेजी और दूसरी को केजी कक्षा में। जेल प्रशासन बच्चियों को हर सुबह खुद स्कूल छोड़ने जाता है और पढ़ाई खत्म होने के बाद वापस जेल लेकर आता है।

पहले दिन जब बच्चियां स्कूल के लिए निकलीं, तो जेल अधिकारियों ने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर स्कूल भेजा। रास्ते भर उनके चेहरे पर उत्साह और मुस्कान बनी रही। उनके लिए खास टिफिन तैयार किया गया जिसमें पराठा, सब्जी, गुझिया, बिस्किट, चॉकलेट और थर्मस में आरओ पानी दिया गया।

जेल प्रशासन की अनोखी पहल

जेलर शेषनाथ यादव और डिप्टी जेलर राजेश कुमार ने बताया कि यह पहल सिर्फ दो बच्चियों तक सीमित नहीं रहेगी। निर्धारित औपचारिकताओं के बाद अन्य बच्चों को भी स्कूल भेजा जाएगा। उनका मानना है कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे जेल में जन्में या पल रहे बच्चे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं।

जेल अधीक्षक जगदंबा प्रसाद दूबे ने कहा, यह सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत है। इससे यह संदेश जाएगा कि जेल की सलाखों के पीछे जन्मे बच्चों को भी सामान्य जीवन जीने का अधिकार है।

बचपन को मिली नई उड़ान

पहले दिन स्कूल जाने के बाद बच्चियां बेहद खुश नजर आईं। वे अन्य बच्चों की तरह खेलीं, पढ़ीं और खुलकर हँसीं। यह पल न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरे गाजीपुर जिला जेल के लिए ऐतिहासिक था। इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया कि कैद सिर्फ शरीर को होती है, सपनों को नहीं।

गाजीपुर से उठी यह मिसाल अब राज्य भर के जेलों के लिए एक प्रेरणा बन सकती है, जहां सजायाफ्ता महिलाओं के बच्चों को शिक्षा, सम्मान और भविष्य की एक नई दिशा मिल सकेगी।

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