

उत्तर प्रदेश में जाति के नाम पर दिखावा करना, दो पहिया औऱ चार पहिया वाहनों पर अपनी जाति का प्रदर्शन कर रुआब गांठना अब महंगा पड़ने वाला है। यूपी सरकार ने इससे जुड़ा एक शासनादेश अब से कुछ देर पहले जारी किया है। पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
पुलिस अभिलेख
लखनऊ: राज्य के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने अब से कुछ देर पहले एक महत्वपूर्ण शासनादेश जारी किया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, अब उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति जाति के नाम पर दिखावा नहीं कर सकेगा और न ही अपने किसी वाहन पर अपनी जाति का प्रदर्शन कर सकेगा। किसी भी जातिगत रैली की इजाजत भी नहीं दी जाएगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका संख्या Criminal Misc Writ U/s 482, केस नंबर 31545/2024 में पारित आदेश के अनुपालन में राज्य सरकार ने यह आदेश निर्गत किया है। इसकी प्रति राज्य के सभी आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से अनुपालन हेतु भेजी गई है।
प्रदेश के सभी पुलिस अधिकारियों को जाति आधारित संकेतों, प्रतीकों और प्रदर्शनों को हटाने के निर्देश दिए गए हैं। गृह (पुलिस) अनुभाग-3 की ओर से मुख्य सचिव दीपक कुमार द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है कि पुलिस महकमे में जाति सूचक अंकन या जाति आधारित सार्वजनिक संकेतक किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होंगे।
पत्र में सभी अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था व अपराध), समस्त पुलिस आयुक्त, जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया गया है कि किसी भी पुलिस परिसर या सरकारी स्थल पर जातिगत प्रदर्शनों को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि समाज में जातिगत भेदभाव की प्रवृत्तियों को समाप्त करना उसकी घोषित नीति है। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 16 सितम्बर 2025 को पारित आदेश का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि सभी पुलिस अधिकारियों को अपने परिसर, वाहनों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जाति सूचक चिह्न, बोर्ड या संदेशों को हटाना अनिवार्य है।
पत्र में यह भी कहा गया है कि किसी भी स्तर पर जातिगत संकेतों को बनाए रखना न केवल सामाजिक सौहार्द के खिलाफ है, बल्कि कानून व्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए पुलिस विभाग को सुनिश्चित करना होगा कि सभी थानों, कार्यालयों और पुलिसकर्मियों द्वारा जाति आधारित किसी भी प्रकार के संकेतक का उपयोग पूरी तरह बंद किया जाए और इस पर कड़ी निगरानी रखी जाए।
सरकार ने चेतावनी दी है कि आदेशों का उल्लंघन करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। साथ ही एफआईआर, पुलिस दस्तावेजों, सार्वजनिक अभिलेखों, मोटर वाहनों और सार्वजनिक साइनबोर्ड से जातिगत संदर्भ हटाने के लिए व्यापक आदेश जारी किए गए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज विनोद दिवाकर की पीठ ने समाज में जातिगत महिमामंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे राष्ट्र-विरोधी करार दिया। पीठ ने कहा कि जातिवाद को समाप्त करने के लिए एक व्यापक कानून की आवश्यकता है और सरकार के विभिन्न स्तरों पर प्रगतिशील नीतियां, भेदभाव-विरोधी कानून तथा सामाजिक परिवर्तन कार्यक्रम लागू किए जाने चाहिए।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस अपने अभिलेखों में अभियुक्त की जाति दर्ज नहीं करेगी। इसके साथ ही अभियुक्त के पिता के साथ माता का नाम भी दर्ज किया जाएगा।
इस आदेश के जारी होने के बाद राज्यभर में गाँवों, कस्बों और कॉलोनियों को जाति-बाहुल्य क्षेत्र घोषित करने वाले स्वघोषित जाति-आधारित साइनबोर्ड तत्काल प्रभाव से हटाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।