मोनाड विश्वविद्यालय में फर्जी डिग्री घोटाला: मालिक विजेंद्र सिंह हुड्डा और संदीप सेहरावत की जमानत याचिका खारिज, जानें पूरा मामला

विजेंद्र सिंह हुड्डा पहले भी वर्ष 2019 में चर्चित बाइक बोट घोटाले में शामिल रहे हैं। इस मामले में नोएडा के दादरी थाने में मुकदमा दर्ज है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 9 June 2025, 7:03 PM IST
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हापुड़: मोनाड विश्वविद्यालय में हुए बहुचर्चित फर्जी मार्कशीट और डिग्रियों के घोटाले में मुख्य आरोपी विश्वविद्यालय के मालिक विजेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सहयोगी संदीप सेहरावत की जमानत याचिका सोमवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में खारिज कर दी गई। दोनों ने अदालत में जमानत की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी, लेकिन सुनवाई के बाद अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपने-अपने पक्ष रखे। सरकारी अधिवक्ता अजनान खान ने जमानत का विरोध करते हुए अदालत को बताया कि विजेंद्र सिंह हुड्डा पहले भी वर्ष 2019 में चर्चित बाइक बोट घोटाले में शामिल रहे हैं। इस मामले में नोएडा के दादरी थाने में मुकदमा दर्ज है और वर्तमान में वे उस मामले में जमानत पर चल रहे हैं। ऐसे में यह आशंका बनी हुई है कि जमानत मिलने पर आरोपी सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं या जांच को प्रभावित कर सकते हैं।

एसटीएफ की छापेमारी से हुआ घोटाले का खुलासा

17 मई को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने मोनाड विश्वविद्यालय परिसर पर छापेमारी कर इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया था। छापे के दौरान एसटीएफ ने विश्वविद्यालय से 1372 फर्जी डिग्रियां, 262 फर्जी प्रोविजनल और माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 14 मोबाइल फोन और सात लैपटॉप बरामद किए थे। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि आरोपी बीटेक, एलएलबी, बीएड और फार्मेसी जैसे कोर्सों की फर्जी डिग्रियां 50 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक में बेच रहे थे।

राजनीति से भी जुड़ा है मामला

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय के मालिक विजेंद्र सिंह हुड्डा राजनीति से भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने 2024 में बिजनौर लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा था, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

जांच अभी जारी, नए खुलासों की संभावना

एसटीएफ की जांच इस मामले में लगातार जारी है। अधिकारी इस मामले को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए साक्ष्य जुटा रहे हैं। जिससे अदालत में मजबूत केस पेश किया जा सके। जांच एजेंसियों का मानना है कि आने वाले दिनों में इस घोटाले से जुड़े और बड़े नाम सामने आ सकते हैं। एसटीएफ अधिकारियों के अनुसार यह गिरोह पिछले दो से तीन वर्षों से सक्रिय था। कई लोग इन डिग्रियों का उपयोग सरकारी के साथ निजी नौकरियों के लिए कर चुके हैं। यह घोटाला अब तक के सबसे बड़े शैक्षिक फर्जीवाड़ों में से एक माना जा रहा है।

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