

अयोध्या के प्रसिद्ध कथावाचक ने अपने दिये इंटरव्यू में अपने जीवन से जुड़ी जानकारी साझा किया साथ ही जीवन के मूल मंत्र बताये
अयोध्या के प्रसिद्ध देवांश जी महराज
महराजगंज: अयोध्या के प्रसिद्ध कथावाचक देवांश जी महराज की भागवत कथा का जनपद में आयोजन किया गया।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार कथा के दौरान महाराज ने बताया कि कलियुग में क्रोध का खानपान से सीधा संबंध है आप जैसा खायेंगे वैसा आपका विचार होगा।क्रोध से मुक्ति का एकमात्र उपाय है एकांतवास में परमात्मा का चिंतन करना और जो ये मानव जन्म मिला है उसका अनुभव करना।
निजी जीवन के अनुभव ने सिखाया
महराजगंज के दौरे पर आये देवांश जी महराजगंज ने डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता से खास बातचीत किया इस दौरान उन्होंने अपने जीवन पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया की छः वर्ष की उम्र मे उनके पिता जी ने चौदह कोसी परिक्रमा करने साथ ले आये। यँहा साधु संतो की भक्ति मे मगन देखकर उनके मन में विचार आया कि क्यू न अपने हिंदू समाज, अपने धर्म और जो लोग भक्ति से दूर है उनके लिए कार्य किया जाय। बस यही से उनका मन भक्ति की तरफ लीन हो गया।उन्होंने बताया इसके प्रेरणा स्त्रोत उनके पिता जी रहे।
मां का दर्जा भगवान से बड़ा
महराज जी ने बातचीत के दौरान बताया कि आजकल समाज में कुछ लोग अपने मां बाप को वृद्धश्रम के सहारे छोड़ दे रहे।उन्हें ये नहीं पता माँ का दर्जा भगवान से भी बड़ा है। माँ तीन कार्य करती है। पहला
जन्म देती हैं जिससे वो जन्मदात्री है, दूसरा वो लोगों से परिचय कराती है तो वो गुरु भी है, तीसरा वो लालन पालन भी करती है जिससे वो पिता का रूप भी निभाती है। जो अपने मां बाप का सेवा नही करता उसे जीवन में कभी संतुष्टि नहीं मिलती।
समाज को दिया बड़ां संदेश
जीवन में माता-पिता की अहमियत बताते हुए देवांश जी महाराज ने समाज को बहुत बड़ा संदेश देते हुए कहा माता-पिता की सेवा ना करने वालों को जीवन नें कभी संतुष्टि नहीं मिलती, इस बात से यह साफ पहला धर्म उनकी सेवा करना है ना कि किसी की अंधभक्ति। हमारे सनातन धर्म में भी माता-पिता के स्थान को इसलिए ही सबसे ऊपर बताया गया हैं।