HC का बड़ा आदेश: प्रेम में सहमति से बने संबंध दुष्कर्म नहीं, जानें किस मामले को लेकर सुनाया फैसला

महिला ने अपने सहकर्मी पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था। कोर्ट ने कहा कि अगर महिला को शुरू से ही यह पता था कि शादी सामाजिक कारणों से संभव नहीं है, फिर भी वह सहमति से शारीरिक संबंध बनाती रही, तो इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 13 September 2025, 1:48 PM IST
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Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रेम संबंधों और शारीरिक संबंधों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला यह जानती है कि सामाजिक कारणों के चलते शादी संभव नहीं है, और फिर भी वह सहमति से शारीरिक संबंध बनाती है, तो इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह फैसला इस तरह के मामलों में महिला अधिकारों और शारीरिक सहमति के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहरे सवाल खड़ा करता है।

जानें पूरा मामला

यह मामला दो लेखपालों से जुड़ा था, जिसमें एक महिला लेखपाल ने अपने सहकर्मी पर आरोप लगाया था कि वर्ष 2019 में उसके सहकर्मी ने उसे जन्मदिन की पार्टी के बहाने घर बुलाया और उसे नशीला पदार्थ पिलाकर दुष्कर्म किया। महिला का कहना था कि आरोपी ने वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया और बाद में शादी का वादा किया। लेकिन चार साल बाद आरोपी ने जातिगत ताना मारते हुए शादी से इंकार कर दिया। महिला ने आरोप लगाया कि जब उसने पुलिस से शिकायत की तो कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद उसने एससी-एसटी की विशेष अदालत में परिवाद दाखिल किया, लेकिन अदालत ने इसे दुष्कर्म का मामला नहीं माना और खारिज कर दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट

महिला की याचिका और हाईकोर्ट का निर्णय

महिला के द्वारा एससी-एसटी कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। महिला ने हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई और कहा कि उसे न्याय मिलना चाहिए। अदालत ने इस मामले की गंभीरता से सुनवाई की और कई तथ्यों पर गौर किया। महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे विश्वास में लेकर शादी का वादा किया था, लेकिन शादी से मुकर गया और जातिवाद का आरोप लगाकर उसे ताना मारा। महिला ने कोर्ट में यह भी कहा कि आरोपी द्वारा किए गए वादों की कोई पूर्ति नहीं हुई। इसके बाद महिला ने आरोपी से 2 लाख रुपये वापस मांगे, जिनके बारे में उसकी शिकायत थी कि उन्हें आरोपी द्वारा वापस नहीं किए गए थे। आरोपी ने इस पर तर्क दिया कि महिला ने खुद ही थाना और एसपी को लिखित में कहा था कि वह किसी प्रकार की कार्रवाई की इच्छुक नहीं है और यह भी कहा कि महिला ने तभी परिवाद दर्ज कराया जब आरोपी ने उससे 2 लाख रुपये वापस मांगे थे।

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए महिला की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि महिला को यह पहले से पता था कि शादी सामाजिक कारणों से संभव नहीं है और इसके बावजूद वह वर्षों तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाती रही, तो यह दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता। अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए स्वेच्छा से सहमत होती है और बाद में आरोप लगाती है, तो यह मामला दुष्कर्म का नहीं माना जा सकता।

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