The MTA Speaks: जस्टिस वर्मा पर सुप्रीम कोर्ट की सीक्रेट रिपोर्ट कैसे हुई लीक! बड़ा खुलासा

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैशकांड पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ देखिए बड़ा विश्लेषण। आइए जानते हैं पूरी खबर..

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 20 June 2025, 1:31 PM IST
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नई दिल्ली:  देश की न्यायपालिका में हलचल मचाने वाली सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच रिपोर्ट, जो जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैशकांड में गंभीर दुराचार की पुष्टि करती है, अचानक मीडिया में लीक होकर वायरल हो गई। सवाल यह है कि यह रिपोर्ट कैसे लीक हुई...क्या किसी ने सोची समझी रणनीति के तहत इसे लीक किया है। 64 पेज की यह रिपोर्ट बेहद गोपनीय रखी गयी थी। इसे सिर्फ देश के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा गया था, मई के अंतिम सप्ताह में इसके कुछ अंश लीक हुए थे और गुरूवार को  तो कमाल ही हो गया।

सुबह सवेरे से रिपोर्ट का PDF फार्मेट... टेलीग्राम, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया। कुछ लोगों का मानना है कि यह लीक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, ताकि संसद के मानसून सत्र से पहले महाभियोग प्रस्ताव को लेकर जनमत तैयार किया जा सके, वहीं कुछ सूत्र इसे न्यायपालिका के भीतर से पारदर्शिता और जवाबदेही के दबाव में हुआ क़दम मानते हैं। संसद का सत्र 21 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है। बार काउंसिल्स, वरिष्ठ वकीलों, नौकरशाहों, राजनीतिज्ञों और पत्रकारों के बीच आज यह रिपोर्ट चर्चा के केन्द्र में रही। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से लीक पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने इस केश-कांड को लेकर बड़ा विश्लेषण किया है। आइए जानते हैं पूरी खबर..

मामला शुरू होता है 14 मार्च 2025 की रात..

इस कैश-कांड ने हमारे न्याय प्रणाली की गरिमा पर गहरे सवाल खड़े किये हैं। देश की अदालतों में इंसाफ को प्रतिष्ठा दिलाने वाले न्यायमूर्ति, इस बार खुद उस कटघरे में खड़े हैं, जहां उनका चरित्र, नैतिकता और न्यायिक ईमानदारी सवालों के घेरे में है। यह एक ऐसा मामला जिसने न्याय के देवी की पवित्रता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला शुरू होता है 14 मार्च 2025 की रात — जस्टिस वर्मा के 30, तुगलक क्रेसेंट स्थित सरकारी बंगले में अचानक आग लगती है। अग्निशमन की टीम मौके पर पहुंचती है और आग बुझाने की तैयारी होती है। इसी बीच, कमरे के कोने में अर्द्ध जलित, पांच-पांच सौ के नोट मिलते हैं।

खबर सुनकर पूरे सिस्टम में हलचल

इस घटना की पहली खबर सुनकर पूरे सिस्टम में हलचल मच जाती है। अग्निशमन विभाग तुरंत मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट में इस घटना की सूचना भेजता है। उसी दिन ही तत्काल न्यायमूर्ति वर्मा की कार्यवाही रोकी जाती है और उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से आला दर्जे की तल्ख़ी नहीं दिखाई देता—यहां तक कि उन्हें ट्रांसफर कर उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया जाता है। उसके बाद 22 मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश of India, संजीव खन्ना के निर्देश पर एक तीन सदस्यीय इन हाउस इनक्वायरी पैनल का गठन किया जाता है। इस पैनल में शामिल होते हैं: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालिया, और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामण। यह पैनल करीब एक सप्ताह तक जमीनी जांच में जुटा, गवाहों से पूछ ताछ की, और जहां पर नोट मिले उस स्थान का दौरा किया—कुल 55 गवाहों की स्टेटमेंट ली गई।

न्यायाधीश पद के गरिमा के साथ खिलवाड़

रिपोर्ट में पाया गया कि अर्द्ध जलित नोटों का ढेर जिस स्टोर रूम में पाया गया वह परिवार के नियंत्रण में था” । यानी, यह स्टोर रूम किसी अन्य के द्वारा नहीं खोला गया था, बल्कि वह जगह जस्टिस वर्मा की निगरानी में थी। रिपोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह एक “गंभीर न्यायिक कदाचार” है, जो न्यायाधीश पद के गरिमा के साथ खिलवाड़ है।रिपोर्ट में यह भी कहा कि आग लगने के तुरंत बाद—15 मार्च की सुबह—स्टोर रूम से ‘अर्द्ध जलित नोटों का निरीक्षण’ किया गया, लेकिन पुलिस रिपोर्ट या प्राथमिकी (FIR) दाखिल नहीं की गई । जिसने सवाल खड़े किए।रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि CCTV कैमरे उस स्टोर रूम के आसपास उस समय काम नहीं कर रहे थे, और सबूतों को हटाने की खबर भी सामने आई। एक 11 सेकंड का वीडियो रिकॉर्ड हुआ, जिसमें भारी नोटों का पता चलता रहा, और कोई आवाज़ कहती रही: “Note hi note hain…” यह सब देखकर जांच टीम ने निष्कर्ष निकाला: “जस्टिस वर्मा की कार्यविधि में स्पष्ट गड़बड़ी है, जिसमें क्लियर—जमीनी, इलेक्ट्रॉनिक, प्रत्यक्ष—साक्ष्य मिलते हैं और आरोपों में पर्याप्त तथ्य मिले हैं”

न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश

इतना ही नहीं, स्टोर रूम को न्यायाधीश और उनके परिवार के “सक्रिय या गुप्त नियंत्रण” में पाया गया। एक आधिकारिक बयान रिपोर्ट में लिखा गया: “इस समिति का दृढ़ मत है कि न्यायाधीश वर्मा और उनके परिवार ने उस स्टोर रूम का नियंत्रण रखा था और उन्होंने ही रात्रि में वहाँ से नोटों को हटाया। इन निष्कर्षों के आधार पर, तीन सदस्यीय समिति ने सिफारिश की “इम्पीचमेंट की प्रक्रिया शुरू की जाए”। तब तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, जिसमें इस गंभीर कदाचार को प्रतिनिधित्व किया गया और न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश की गई

इम्पीचमेंट की प्रक्रिया की तैयारी

अब संसद के मानसून सत्र से पहले, केंद्र सरकार इम्पीचमेंट की प्रक्रिया की तैयारी में है। संसद के दोनों सदनों में बहुमत के लिए पैरवी की जा रही है ताकि इम्पीचमेंट प्रस्ताव लाया जा सके । कयास है कि जुलाई से अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र (21 जुलाई – 12 अगस्त) में यह प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
इस बीच, राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ तेज़ी से आ रही हैं:

सुप्रीम कोर्ट की अंदरूनी जांच से फैसले

कांग्रेस के सांसदों ने जस्टिस वर्मा से आग्रह किया है कि वह इम्पीचमेंट प्रस्ताव की लंबे खींचतान से पहले ही इस्तीफ़ा दे दें, ताकि उनके संचित रिटायरमेंट बेनिफिट सुरक्षित रह सकें । वही, वरिष्ठ वकील एवं राजनेता कपिल सिब्बल ने न्यायाधीश की प्रतिष्ठा की बात करते हुए कहा कि वह “एक उत्कृष्ट न्यायाधीश रहे हैं” और इस पूरे इम्पीचमेंट कदम को “अनुचित और राजनीतिक प्रेरित” बताया ।वहीं, कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट की इन हाउस रिपोर्ट को इम्पीचमेंट की आधिकारिक आधार के रूप में इस्तेमाल करने पर सवाल खड़े किए — कहना यह कि संविधान और जजेस इन्क्वायरी एक्ट के तहत प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए, न कि केवल सुप्रीम कोर्ट की अंदरूनी जांच से फैसले लिए जाएँ ।

समिति फिर से जांच करेगी

इस सबके बीच, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसे आम जनता की जीत बताया, कहते हुए कि इससे न्याय व्यवस्था में जवाबदेही आएगी । सवाल उठाया गया है कि अगर न्यायाधीश ही स्वयं जवाबदेह नहीं ठहरते, तो न्याय की प्रतिष्ठा कब सुधरेगी?अब आपको बताते हैं कि इम्पीचमेंट की प्रक्रिया कैसे अमल में लायी जायेगी। सबसे पहले, संसद में इम्पीचमेंट प्रस्ताव पेश होने पर—50 राज्यसभा या 100 लोकसभा सांसदों की सहमति चाहिए—जिसके बाद 1958 के जजेस (इनक्वायरी) एक्ट के तहत एक नया सब- कमीशन बनेगा। यह समिति फिर से जांच करेगी, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक प्रमुख न्यायाधीश, और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होगा।

कैश कांड के बारे में जस्टिस वर्मा ने अपनी सफ़ाई में कहा..

यदि समिति दोषसिद्ध करती है, तो और दो-तिहाई बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पास होता है तो राष्ट्रपति जस्टिस वर्मा को पद से बर्खास्त कर देंगी। यह भारत में न्यायाधीशों को हटाने की सर्वोच्च प्रक्रिया होती है: पहले भी इस तरह के इम्पीचमेंट की प्रक्रिया अमल में संसद में लायी गयी। तब 1973 में सौमित्र सेन और 2018 पूर्व CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ लेकिन ये दोनों ही प्रस्ताव पास नहीं हो सके। जस्टिस वर्मा के समर्थन में बोलने वालों की भी कमी नहीं है। कानूनी बिरादरी में उनकी पहचान एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश के रूप में रही है इस कैश कांड के बारे में जस्टिस वर्मा ने अपनी सफ़ाई में कहा है कि “मैं और मेरा परिवार इन आरोपों से अंजान थे। मैं सच बोल रहा हूँ कि हमें पता नहीं था कि ये नोट स्टोर रूम में थे।”

जस्टिस वर्मा स्वयं इस्तीफ़ा?

यह जवाब पारदर्शिता और नैतिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरा क्योंकि पैनल ने पाया: स्टोर रूम सील था, वह घर के परिसर में था, और उसमें प्रवेश केवल परिवार और सुरक्षा में लगे लोग ही कर सकते थे। अब आगे सिर्फ दो रास्त हैं—जस्टिस वर्मा स्वयं इस्तीफ़ा दे सकते हैं, जिससे रिटायरमेंट के बाद के सारे फायदे उन्हें मिलते रहेंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते औऱ लड़ते हैं और इम्पीचमेंट प्रस्ताव पारित होता है तो उन्हें पद और पेंशन दोनों से हाथ धोना पड़ सकता है ।

लेकिन इन सबसे बड़ी चुनौती न्याय प्रणाली के सामूहिक विश्वास की बनी हुई है। इस पूरे मामले के पीछे अब एक नए सार्वजनिक संवाद की शुरुआत हो चुकी है—जजों के खिलाफ जवाबदेही, नैतिक आचरण की जरूरत, और उनकी संपत्ति घपलों की असलियत।कुल मिलाकर, यह एक ऐतिहासिक मोड़ है — अपने आप में पहला मौका हो सकता है, जब एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को संसद के माध्यम से इम्पीच किया जाए। और यह सवाल सामने आने लगा है कि क्या न्याय की प्रतिष्ठा—साफ़दिली, नैतिकता, जवाबदेही—के भरोसे बनी रहेगी या नहीं

 

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