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राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में कथित ‘वोट चोरी’ और मतदाता सूची में गड़बड़ी का बड़ा आरोप लगाया। कांग्रेस ने इसे ‘H-Files’ नाम दिया और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। सत्ताधारी दल ने आरोपों को राजनीति का हिस्सा बताया, जिससे देशभर में चुनावी बहस तेज हो गई।
राहुल गांधी का H-Files धमाका
New Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग के बीच देश की राजनीति में बुधवार का दिन काफी चर्चित रहा। कांग्रेस नेता और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस वार्ता की और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए। कांग्रेस ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को 'H-Files' नाम दिया, और राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर वोट चोरी हुई, जो केवल एक राज्य की समस्या नहीं बल्कि चुनावी प्रणाली में संस्थागत स्तर पर गड़बड़ी का उदाहरण है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में राहुल की H-Files को लेकर सटीक विश्लेषण किया।
बिहार में चुनावी सरगर्मियों के बीच देश की राजनीति के लिए बुधवार का दिन खासा चर्चित रहा। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस वार्ता की और एक बार फिर देश की चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। कांग्रेस ने इस प्रेस वार्ता को प्रतीकात्मक रूप से ‘H-Files’ नाम दिया। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पिछले हरियाणा विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर ‘वोट चोरी’ हुई है और यह सिर्फ एक राज्य की गड़बड़ी नहीं बल्कि चुनावी प्रणाली में संस्थागत स्तर पर धांधली का उदाहरण है।
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राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता में कहा कि हरियाणा की मतदाता सूची में चौंकाने वाले नाम दर्ज हैं, जिनमें ब्राजील की एक मॉडल का नाम भी शामिल पाया गया। उनके अनुसार यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ी की गई। उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में 5 लाख 21 हजार नकली मतदाता, 93 हजार 174 अवैध मतदाता और 19 लाख 26 हजार थोक मतदाता बनाए गए, जिनके माध्यम से लगभग 25 लाख वोटों की हेराफेरी की गई। राहुल गांधी का यह भी आरोप था कि इस पूरी प्रक्रिया से भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाया गया और चुनाव परिणामों को प्रभावित किया गया।
राहुल गांधी के इन गंभीर आरोपों ने न केवल चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को भी कठघरे में ला दिया है। उनका कहना था कि यह सिर्फ किसी एक राज्य का मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठाने वाला मामला है। उन्होंने कहा कि यदि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता, तो लोकतंत्र की नींव ही कमजोर पड़ जाएगी।
कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे को ‘H-Files’ नाम देने के पीछे पार्टी की यह रणनीति साफ दिखाई देती है कि वह इसे केवल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि इसे आने वाले चुनावों में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने की तैयारी में है। राहुल गांधी ने इसे “संस्थागत स्तर पर वोट चोरी” की साजिश बताया और कहा कि यह किसी एक प्रशासनिक गलती का नतीजा नहीं बल्कि एक सुनियोजित प्रयास है।
राहुल गांधी की यह प्रेस वार्ता ऐसे समय पर हुई जब बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में सिर्फ एक दिन बाकी था।
ऐसे में उनका यह बयान सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह बिहार से लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक चर्चा का विषय बन गया। उनके बयान ने विपक्षी दलों को एक बार फिर ‘EVM की विश्वसनीयता’ और ‘मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता’ को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोलने का नया मौका दे दिया। बिहार में पहले से ही आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन केंद्र पर लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग के आरोप लगाता रहा है। अब राहुल गांधी का यह बयान उस राजनीतिक विमर्श को और तीखा कर गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी का यह बयान विपक्ष के लिए ‘EVM पर अविश्वास’ वाले पुराने नैरेटिव को पुनर्जीवित करता है। यह वही मुद्दा है जिसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल 2019 के आम चुनाव से पहले भी बार-बार उठाते रहे हैं। लेकिन अब इसे हरियाणा और बिहार के संदर्भ में जोड़कर एक व्यापक चुनावी नैरेटिव के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विपक्ष इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर केंद्र सरकार के “प्रभाव” का उदाहरण बताते हुए जनता के बीच असंतोष जगाने की कोशिश करेगा।
राहुल गांधी का यह कहना कि “वोट चोरी संस्थागत स्तर पर हुई है” देश की चुनावी प्रणाली के प्रति गंभीर अविश्वास का संकेत है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसकी आत्मा निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर टिकी है। यदि उसी प्रणाली की निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठते रहेंगे, तो यह न केवल दलों के बीच अविश्वास बढ़ाएगा बल्कि नागरिकों के लोकतांत्रिक विश्वास को भी डांवाडोल करेगा।
चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की सबसे बड़ी पूंजी उनकी निष्पक्षता और साख होती है। जब उस पर राजनीतिक दल सवाल उठाते हैं, तो जनता के मन में भी एक तरह की असहजता और शंका पैदा होती है। इसलिए अब यह जरूरी है कि चुनाव आयोग इन आरोपों पर स्पष्ट और तथ्यपूर्ण प्रतिक्रिया दे, ताकि लोकतांत्रिक ढांचे की विश्वसनीयता बनी रहे।
सवाल यह भी है कि क्या बार-बार चुनावी प्रक्रिया पर संदेह जताना राजनीतिक लाभ के लिए एक रणनीति बन चुका है? क्योंकि जब भी विपक्ष को हार का सामना करना पड़ता है, तो सबसे पहले EVM, मतदाता सूची या चुनाव आयोग की निष्पक्षता को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक विमर्श को कमजोर करती है, क्योंकि संस्थाओं में भरोसा लोकतंत्र की आत्मा है।
राहुल गांधी द्वारा उठाए गए ये सवाल आने वाले 2029 के लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में भी बड़ा राजनीतिक विमर्श बन सकते हैं। ‘वोट चोरी’, ‘EVM की पारदर्शिता’ और ‘संविधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता’ जैसे मुद्दे जनता की सोच को गहराई से प्रभावित करते हैं। यदि इन आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं होती या आयोग की ओर से पारदर्शी जवाब नहीं आता, तो यह बहस 2029 के चुनावी एजेंडे का प्रमुख हिस्सा बन सकती है।
हालांकि राहुल गांधी की प्रेस वार्ता के कुछ ही घंटों बाद चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों को “निराधार और तथ्यहीन” बताते हुए खारिज कर दिया। आयोग ने स्पष्ट किया कि हरियाणा में मतदाता सूची पूरी कानूनी प्रक्रिया और पारदर्शिता के साथ तैयार की गई है और हर नाम को बहुस्तरीय सत्यापन के बाद जोड़ा गया है। आयोग ने कहा कि किसी विदेशी नागरिक का नाम सूची में शामिल होने का दावा पूरी तरह झूठा है और यह मतदाता डेटा की गलत व्याख्या का परिणाम है। आयोग ने साथ ही कहा कि यदि किसी को कोई ठोस सबूत हैं तो उन्हें औपचारिक शिकायत के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
लेकिन सवाल यह है कि इन स्पष्टीकरणों के बावजूद चुनाव आयोग पर अविश्वास क्यों बार-बार लौट आता है? जनता के मन में यह संशय क्यों बना रहता है कि क्या चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से काम कर रहा है? यही वे प्रश्न हैं जिनके उत्तर आयोग को बार-बार देने पड़ते हैं।
उधर, राहुल गांधी के आरोपों पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने करारा पलटवार किया। रिजिजू ने कहा कि अगर कांग्रेस को सचमुच कोई समस्या है, तो उसे अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए, न कि मंचों से देश की संस्थाओं को बदनाम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और कांग्रेस अपनी हार का कारण खुद की विफलता में नहीं ढूंढते, बल्कि हमेशा EVM और सिस्टम को दोष देते हैं। उन्होंने तीखे अंदाज में पूछा- “कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल में कांग्रेस कैसे जीत गई? पंजाब में आम आदमी पार्टी कैसे जीती? जब परिणाम इनके पक्ष में आते हैं तो EVM सही होती है, लेकिन हारते ही मशीन खराब हो जाती है?”
रिजिजू ने यह भी कहा कि राहुल गांधी अक्सर चुनाव के वक्त विदेशों में घूमते हैं और देश के भीतर जनसंपर्क से दूरी बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि जो नेता जनता से जुड़कर राजनीति नहीं करते, वे मशीनों को दोष देकर अपनी राजनीतिक असफलता नहीं छिपा सकते।
रिजिजू ने आगे कहा कि राहुल गांधी विदेशी मंचों से भारत की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, जो किसी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि को शोभा नहीं देता। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की हार की असली वजह उसके नेतृत्व की दिशा और रणनीति की कमी है, न कि चुनाव आयोग या EVM। रिजिजू ने यह भी तंज कसा कि राहुल गांधी यह मानते हैं कि युवा वर्ग को भड़काकर राजनीतिक फायदा उठा सकते हैं, लेकिन देश का युवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ है और राष्ट्रविरोधी राजनीति को कभी स्वीकार नहीं करेगा।
कुल मिलाकर, राहुल गांधी के इस बयान ने एक बार फिर देश में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और लोकतंत्र की विश्वसनीयता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। एक ओर कांग्रेस और विपक्षी दल इसे “संस्थागत हेराफेरी” के रूप में पेश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल इसे विपक्ष की “राजनीतिक निराशा” करार दे रहा है। लेकिन इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच असली सवाल यही है कि जनता का लोकतांत्रिक विश्वास किस दिशा में जा रहा है।
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भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका केवल चुनाव कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संस्था जनता के भरोसे की आधारशिला भी है। इसलिए जरूरी है कि आयोग अपने ऊपर लगे हर आरोप की निष्पक्ष जांच करे और पारदर्शिता के नए मानक स्थापित करे। वहीं राजनीतिक दलों को भी यह जिम्मेदारी समझनी होगी कि बार-बार संस्थाओं पर आरोप लगाने से लोकतंत्र की साख कमजोर होती है और अंततः जनता का ही विश्वास टूटता है।
यह बहस फिलहाल हरियाणा से शुरू हुई है, लेकिन इसके राजनीतिक प्रभाव देशभर में महसूस किए जा रहे हैं। आने वाले समय में यह विवाद चुनावी विमर्श का केंद्र बन सकता है और लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर देशव्यापी चर्चा को जन्म दे सकता है।