

ईरान-इजराइल 1950 के दशक के सहयोगी से कट्टर दुश्मन बन गए, हाल के हमलों, परमाणु तनाव, वैश्विक गठबंधनों और व्यापक संघर्ष के जोखिमों का विश्लेषण देखिये वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ।
ईरान-इजारइल युद्ध पर सटीक विश्लेषण
नई दिल्ली: आजकल, ईरान-इजराइल संघर्ष पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर हवाई हमले कर रहे हैं, लेकिन अतीत में वे लगभग दोस्त थे। ईरान और इजराइल 1979 तक सबसे अच्छे दोस्त थे। ईरान ने 1950 में इजराइल को स्वीकार कर लिया और उनके बीच कूटनीतिक, सैन्य और तेल व्यापार संबंध थे। लेकिन 1979 में ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद, अयातुल्ला खुमैनी ने सत्ता संभाली और ईरान ने इजराइल को "शैतान देश" करार दिया।
तब से, दोनों देशों के बीच संबंध खराब हो गए हैं। ईरान का मानना है कि इजराइल ने अवैध रूप से फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया है और उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। इजराइल का मानना है कि ईरान उसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। ईरान हिजबुल्लाह, हमास और शिया मिलिशिया जैसे समूहों का समर्थन करता है जो लगातार इजराइल पर हमला करते हैं, जबकि इजराइल इन समूहों और ईरानी ठिकानों को निशाना बनाता है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने विशेष शो "द एमटीए स्पीक्स" में ईरान-इजरायल संघर्ष का स्पष्ट, आकर्षक और सुव्यवस्थित तरीके से विश्लेषण किया।
परमाणु परियोजना सबसे बड़े विवाद के रूप में उभरी
आज सबसे बड़ी समस्या ईरान का परमाणु कार्यक्रम है। इजराइल को चिंता है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। इजराइल ने पहले भी इराक और सीरिया में परमाणु सुविधाओं को नष्ट किया है और खुले तौर पर कहा है कि वह ईरान को ऐसा नहीं करने देगा।
हाल ही में टकराव और हमला
इजरायल ने पिछले साल दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर मिसाइल से हमला किया था और कई ईरानी अधिकारियों को मार डाला था। जवाबी कार्रवाई में, ईरान ने पहली बार सीधे इजराइल की ओर 300 से अधिक ड्रोन और मिसाइलें दागी। इजराइल ने हाल ही में तेहरान और ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमला किया और जवाबी हमले में ईरान ने इजराइल पर मिसाइलों से हमला किया।
जवाबी हमले से पहले ईरान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साफ संदेश दिया कि उसने पहल नहीं की है।
कौन किसके साथ गठबंधन में है?
इजराइल के साथ: अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस
ईरान के साथ: रूस, चीन
भारत: दोनों के मित्र, शांति और कूटनीति का आह्वान
क्या तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो रहा है?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह युद्ध फिलहाल नियंत्रित है, लेकिन जब चीन और रूस खुलकर ईरान का समर्थन करेंगे, तो यह बड़े पैमाने पर युद्ध में बदल सकता है। इससे विश्व अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचेगा, खासकर तेल और गैस की आपूर्ति को। भारत जैसे ऊर्जा आयातक देशों को मुद्रास्फीति और आर्थिक तनाव सहने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
क्या सुलह हो सकती है?
जब तक ईरान का पश्चिम विरोधी दृष्टिकोण, परमाणु महत्वाकांक्षा और फिलिस्तीनी नीति में बदलाव नहीं आता और इजराइल की सुरक्षा जरूरतों को संबोधित नहीं किया जाता, तब तक दोनों देशों के बीच सुलह की बहुत संभावना नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्ण पैमाने पर युद्ध तो नहीं होगा, लेकिन छद्म युद्ध और छोटे पैमाने पर हमले जारी रह सकते हैं।