

नेपाल में युवाओं की अगुवाई में शुरू हुआ आंदोलन अब खतरनाक बगावत में बदल चुका है। यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं रह गया, देखें वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में नेपाल हिंसा को लेकर सटीक विश्लेषण किया है।
Delhi: आज हम आपको पड़ोसी मुल्क नेपाल से जुड़ी एक बड़ी और गंभीर खबर बता रहे हैं। नेपाल में युवाओं की अगुवाई में शुरू हुआ आंदोलन अब खतरनाक बगावत में बदल चुका है। यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं रह गया, बल्कि पूरे देश की राजनीतिक स्थिरता को हिला देने वाली विद्रोही लहर बन गया है। संसद भवन से लेकर सरकारी इमारतें और नेताओं के घर तक आग में झुलस रहे हैं। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में धुएं और हिंसा के साए छाए हुए हैं। सेना सड़कों पर उतर चुकी है और हालात अब भी काबू में नहीं हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में नेपाल हिंसा को लेकर सटीक विश्लेषण किया है।
नेपाल में यह आग अचानक नहीं भड़की। लंबे समय से भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और नेताओं की आपसी खींचतान से परेशान जनता, खासकर युवा पीढ़ी, लगातार गुस्से में सुलग रही थी। सोशल मीडिया पर अचानक लगाया गया प्रतिबंध इस गुस्से की चिंगारी साबित हुआ। जैसे ही फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम बंद किए गए, युवाओं ने इसे अपनी आवाज़ दबाने की कोशिश माना और सड़कों पर उतर आए। धीरे-धीरे यह आंदोलन हिंसक होता चला गया।
19 प्रदर्शनकारियों की मौत ने आग में घी का काम
सोमवार को पुलिस की गोलीबारी में 19 प्रदर्शनकारियों की मौत ने आग में घी का काम किया। अगले ही दिन मंगलवार को हालात इस कदर बिगड़े कि संसद भवन को आग के हवाले कर दिया गया। सिंहदरबार, सर्वोच्च न्यायालय और कई सरकारी संस्थानों को प्रदर्शनकारियों ने निशाना बनाया। पशुपतिनाथ मंदिर तक को नहीं बख्शा गया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के घर पर हमला हुआ, उनके साथ मारपीट की गई। पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनाल की पत्नी, राजलक्ष्मी चित्रकार, को भीड़ ने उनके घर में बंद कर आग लगा दी, जिसमें उनकी दर्दनाक मौत हो गई।
कालीमाटी की पुलिस चौकियों को आग के हवाले
भीड़ के हौसले इतने बुलंद थे कि पुलिस चौकियों तक को जला डाला गया। गौशाला, लुभु और कालीमाटी की पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर दिया गया। कांतिपुर टेलीविजन के दफ्तर को भी नहीं छोड़ा गया। उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बिष्णु प्रसाद पौडेल को भी प्रदर्शनकारियों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। हालात इस कदर खराब हो गए कि सेना को सीधा हस्तक्षेप करना पड़ा।
वीडियो संदेश जारी कर देशवासियों से शांति की अपील
मंगलवार की रात नेपाली सेना ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और सिंहदरबार परिसर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने वीडियो संदेश जारी कर देशवासियों से शांति की अपील की। उन्होंने कहा कि हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है, देश को बातचीत के ज़रिए ही इस संकट से बाहर निकाला जा सकता है। उन्होंने मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई और घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना की। मगर यह अपील भी लोगों के गुस्से को शांत नहीं कर सकी।
अफवाहों पर सख्त निगरानी रखने के निर्देश
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हालात बिगड़ते देख इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस्तीफे के बाद भी प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे। सेना हेलिकॉप्टरों के जरिए मंत्रियों और नेताओं को सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचा रही है। राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल भी शांति की अपील कर चुके हैं, लेकिन सड़कों पर हजारों की भीड़ अब भी जमा है।
नेपाल की इस अशांति का असर भारत पर भी पड़ रहा है। नेपाल से लगती उत्तराखंड की सीमाओं – चंपावत, पिथौरागढ़ और उधम सिंह नगर में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सुरक्षा कड़ी करने और सोशल मीडिया पर अफवाहों पर सख्त निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमाओं पर भी सशस्त्र सीमा बल और स्थानीय पुलिस ने चौकसी बढ़ा दी है। ड्रोन, फेस-रिकग्निशन सिस्टम और ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रीडर जैसे आधुनिक उपकरण निगरानी में लगाए गए हैं।
19 युवाओं की मौत दिल दहलाने वाली
काठमांडू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद कर दिया गया है। कई भारतीय यात्री वहां फंसे हुए हैं, जिनमें कर्नाटक के 39 लोग शामिल हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने उनकी सुरक्षित वापसी के लिए विदेश मंत्रालय से तुरंत कदम उठाने की अपील की है। भारत सरकार ने भी नेपाल की स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर नेपाली भाषा में लिखा, "19 युवाओं की मौत दिल दहलाने वाली है। नेपाल की शांति और स्थिरता बेहद ज़रूरी है। मैं सभी से हिंसा रोकने और शांति बनाए रखने की अपील करता हूं।"
लूटपाट और आगजनी की घटनाएं बड़े पैमाने पर...
नेपाल के हालात पर रूस ने भी चिंता जताई है। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल में हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं और प्रदर्शन दंगों में बदल चुके हैं। रूस ने अपने नागरिकों को नेपाल की यात्रा से बचने की सलाह दी है। फिलहाल रूसी दूतावास और वहां के नागरिक सुरक्षित बताए गए हैं। इस पूरे संकट में यह भी सामने आया है कि आंदोलन की आड़ में लूटपाट और आगजनी की घटनाएं बड़े पैमाने पर हो रही हैं। महाराजगंज में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड के सुपरमार्केट को निशाना बनाकर लगभग पांच करोड़ की लूट की गई। भैरहवा और बुटवल के सुपरमार्केट्स में भी लूटपाट और आगजनी हुई। एक होटल और कैसिनो में भी भीड़ ने हमला कर 33 लाख रुपये लूट लिए।
सोशल मीडिया की कड़ी निगरानी...
नेपाल सरकार ने राजधानी और प्रमुख शहरों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया है। पुलिस और सेना लगातार गश्त कर रही है। सेना के जनसंपर्क निदेशालय ने चेतावनी दी है कि यदि हिंसा और लूटपाट बंद नहीं हुई तो सेना कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी। भारत की खुफिया एजेंसियां – रॉ और आईबी – नेपाल की घटनाओं पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। एजेंसियों को आशंका है कि नेपाल की यह आग भारत तक भी फैल सकती है। खासकर युवाओं और छात्रों के बीच इस विद्रोह का असर हो सकता है। यही कारण है कि सोशल मीडिया की कड़ी निगरानी की जा रही है। भारत नहीं चाहता कि नेपाल में किसी तरह का भारत विरोधी माहौल बने।
अशांति भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बड़ी चिंता
भारत और नेपाल के बीच 1751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है। इस सीमा के कारण नेपाल की अशांति भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बड़ी चिंता है। विदेश मंत्रालय लगातार नेपाल के हालात पर नजर बनाए हुए है और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।नेपाल में यह आंदोलन दरअसल नई पीढ़ी का विद्रोह है। जेन-जी कहलाने वाली युवा पीढ़ी भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और बेरोजगारी से तंग आ चुकी है। वे डिजिटल माध्यमों पर अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे। लेकिन सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ने जैसे उनके गुस्से को विस्फोटक बना दिया। युवाओं का कहना है कि वे सिर्फ लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें दबाने की कोशिश कर रही है।
लोकतंत्र के भीतर से उपजी नई बगावत
नेपाल आज आपातकाल जैसी स्थिति में पहुंच गया है। संसद, सर्वोच्च न्यायालय, मीडिया दफ्तर, पुलिस चौकियां, नेताओं के घर— सब कुछ आग की लपटों में झुलस रहे हैं। प्रधानमंत्री का इस्तीफा, सेना की तैनाती और राष्ट्रपति की अपील—इनमें से किसी ने भी हालात को शांत नहीं किया है। सवाल यह है कि नेपाल आखिर किस दिशा में जा रहा है? क्या यह लोकतंत्र के भीतर से उपजी नई बगावत है या फिर अराजकता की ओर बढ़ता एक देश?