Manipur Violence: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के मुर्दाघरों में रखे शवों के अंतिम संस्कार के लिए जारी किये निर्देश

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में मुर्दाघरों में रखे शवों को दफनाने या दाह-संस्कार सुनिश्चित करने के लिए मंगलवार को निर्देश जारी किए। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में मुर्दाघरों में रखे शवों को दफनाने या दाह-संस्कार सुनिश्चित करने के लिए मंगलवार को निर्देश जारी किए। पूर्वोत्तर राज्य में मई में भड़की जातीय हिंसा में कई लोग मारे गए थे।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने उल्लेख किया कि शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों की सर्व-महिला समिति द्वारा दायर रिपोर्ट में मणिपुर में मुर्दाघरों में पड़े शवों की स्थिति का संकेत दिया गया है।

पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि 175 शवों में से 169 की पहचान कर ली गई है और छह की पहचान नहीं हो पाई है।

इसने उल्लेख किया कि पहचाने गए 169 शवों में से 81 पर उनके परिजनों ने दावा किया है जबकि 88 पर दावा नहीं किया गया है।

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने नौ स्थलों की पहचान की है जहां दफन या दाह संस्कार किया जा सकता है।

इसने कहा, 'इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मणिपुर राज्य में मई 2023 में हिंसा हुई थी, जिन शवों की पहचान नहीं हुई है या जिन पर दावा नहीं किया गया है, उन्हें मुर्दाघर में अनिश्चितकाल तक रखना उचित नहीं होगा।'

शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें राहत और पुनर्वास के उपायों के अलावा हिंसा के मामलों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग भी शामिल है।

पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्देश दिया कि परिवार के सदस्यों द्वारा पहचाने गए या दावा किए गए शवों का अंतिम संस्कार किसी भी अन्य पक्ष की बाधा के बिना नौ में से किसी भी स्थान पर किया जा सकता है।

इसने कहा कि अधिकारी पहचाने गए और दावा किए गए शवों के मामलों में परिजनों को स्थलों के बारे में सूचित करेंगे।

पीठ ने कहा कि यह कवायद चार दिसंबर या उससे पहले की जानी चाहिए।

इसने कहा, ‘‘उन शवों के संबंध में जिनकी पहचान हो चुकी है लेकिन जिन पर दावा नहीं किया गया है, राज्य प्रशासन सोमवार को या इससे पहले निकटतम संबंधियों को एक संदेश जारी करेगा, जिसमें उन्हें सूचित किया जाएगा कि उन्हें एक सप्ताह के भीतर अपेक्षित धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार करने की अनुमति है।'

न्यायालय ने कहा कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दफन या दाह संस्कार व्यवस्थित तरीके से हो।

शीर्ष अदालत ने कहा, 'यदि पोस्टमॉर्टम के समय डीएनए नमूने नहीं लिए गए हैं, तो सरकार दफन/दाह संस्कार की प्रक्रिया से पहले ऐसे नमूने लेना सुनिश्चित करेगी।'

इसने कहा, ‘‘राज्य को एक सार्वजनिक नोटिस जारी करने की अनुमति है जिसमें यह दर्शाया गया हो कि यदि पहचाने गए शवों पर नोटिस जारी होने की तारीख से एक सप्ताह की अवधि के भीतर दावा नहीं किया जाता है, तो एक सप्ताह की अवधि समाप्त होने के बाद सरकार जारी किए गए निर्देशों का अनुपालन करते हुए अंतिम संस्कार करेगी।’’

पीठ ने कहा कि वह पीड़ित परिजनों को अनुग्रह राशि की स्वीकृति के बारे में समिति की रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर चार दिसंबर को सुनवाई करेगी।

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) शालिनी पी जोशी और आशा मेनन भी शामिल हैं।










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