Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि स्पेशल में जानिये माता वैष्णो देवी मंदिर की पौराणिक कथा, इस तरह होती हैं मनोकामनाएं पूरी

डीएन ब्यूरो

शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हो रही है। नवरात्रि के मौके पर लोग घरों में पूजा-अर्चना करते हैं तो वहीं कुछ भक्त माता वैष्णो देवी के मंदिर में दर्शन के लिए भी जाते हैं। माता वैष्णो देवी मंदिर के बारे में जानने के लिए पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट

प्रतीकात्मक चित्र
प्रतीकात्मक चित्र


नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर से होने जा रही है। नवरात्रि के इस पर्व में माता के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन भक्त अपने घरों में कलश स्थापित करके मां दुर्गा का आह्वान करते हैं।

हिन्दू मान्यता के अनुसार नवरात्रि के इन नौ दिनों तक माता का घर में वास होता है। नवरात्रि में कुछ भक्त व्रत रखते हैं और मंदिरों में दर्शन के लिए भी जाते हैं। वैसे तो पूरे देश में माता के कई मंदिर हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ की नवरात्रि स्पेशल की इस रिपोर्ट में माता वैष्णो देवी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। वैष्णो देवी के मंदिर के पीछे की कई कहानियां वर्णित हैं। त्रिकूट पर्वत पर पिंडी के रूप मे विराजमान मां वैष्णो का मंदिर जम्मू कश्मीर है।

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700 साल पहले बना था मंदिर

हिन्दू मान्यता अनुसार, वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित पवित्रतम हिन्दू मंदिरों में से एक है। यह जम्मू-कश्मीर के जम्मू संभाग में त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर में स्थित वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण लगभग 700 साल पहले एक ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर ने कराया था। मंदिर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है।

इस तरह मंदिर का नाम पड़ा वैष्णो मंदिर

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माता वैष्णो देवी ने त्रेतायुग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी के रूप में अवतार लिया था और त्रिकुटा पर्वत पर गुफा में तपस्या की थी। जब समय आया तो उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं के सूक्ष्म रूप- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती में विलीन हो गया। बचपन में माता का नाम त्रिकुटा था। बाद में उनका जन्म भगवान विष्णु के वंश से हुआ, जिसके कारण उनका नाम वैष्णवी पड़ा। यही वजह है कि इस मंदिर वैष्णो माता का मंदिर कहा जाता है।

पौराणिक कथा

जम्मू-कश्मीर में स्थित मां वैष्णो देवी हिंदुओं में सबसे ज्यादा पूजनीय देवी हैं। कहते हैं कि कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया।

मां वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई पर मां वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया।

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वैष्णो देवी मंदिर

भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी हैरान थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? सभी लोग भोजन के लिए इक्ठ्ठे हुए तब कन्या रुपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई तो भैरवनाथ ने खीर पूरी की जगह, मांस और मदिरा मांगी। कन्या ने मना कर दिया। लेकिन भैरवनाथ जिद पर अड़ा रहा।

भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। मां रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ से छिपकर  इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ महीने तक तपस्या की। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।

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इस गुफा का उतना ही महत्व है जितना भवन का। 9 महीने बाद कन्या ने गुफा से बाहर देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। लेकिन जब वो नहीं माना तो तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया।

8 किमी दूर है भैरवनाथ का सिर

माता के संहार के बाद भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। मां वैष्णो देवी के दरबार में प्राचीन गुफा का महत्व इसीलिए भी ज्यादा है क्योंकि कहा जाता है कि यहां भैरव का शरीर मौजूद है।

ऐसी भी मान्यता है कि इसी जगह पर भैरव को मां वैष्णो ने अपने त्रिशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर इस गुफा में रह गया था। जिस पर्वत पर भैरवनाथ का सिर गिरा वो स्थान भैरवनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

ऐसी है मान्यता

माता वैष्णो देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आता है वह कभी भी खाली हाथ नहीं जाता है। माता वैष्णो सबकी मनोकामना पूरी करती हैं।










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