सुप्रीम कोर्ट राज्य उपभोक्ता आयोग का अध्यक्ष व सदस्य बनने के लिए अनुभव के पैमाने में कटौती की

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 10 साल का अनुभव रखने वाले वकील और पेशेवर राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला मंचों के अध्यक्ष और सदस्यों के तौर पर नियुक्त होने के पात्र होंगे। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल)


नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 10 साल का अनुभव रखने वाले वकील और पेशेवर राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला मंचों के अध्यक्ष और सदस्यों के तौर पर नियुक्त होने के पात्र होंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारें उपभोक्ता संरक्षण (नियुक्ति के लिए योग्यता, भर्ती की पद्धति, नियुक्ति की प्रक्रिया, कार्यकाल की अवधि, इस्तीफा और राज्य आयोग और जिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने के) नियम 2020 में उपयुक्त संशोधन करें ताकि राज्य आयोग और जिला मंचों का अध्यक्ष और सदस्य बनने के लिए 10 साल के अनुभव पर्याप्त हो। फिलहाल राज्य आयोग के लिए 20 साल और जिला मंचों के लिए 15 साल का अनुभव जरूरी था।

न्यायाधीश एम.आर. शाह और न्यायाधीश एम.एम. सुंदरेश ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इंसाफ करने के लिए प्रदान की गई शक्ति का इस्तेमाल कर निर्देश दिया कि उपयुक्त संशोधन किए जाने तक यह व्यवस्था लागू रहेगी कि जिस शख्स के पास मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की स्नातक डिग्री है और योग्यता, ईमानदारी और प्रतिष्ठा है तथा विशेष ज्ञान एवं उपभोक्ता मामलों, कानून, लोक मामलों, प्रशासन और अर्थशास्त्र में कम से कम 10 साल का अनुभव है तो वह इन पदों के लिए योग्य है।

पीठ ने यह भी कहा कि जिन लोगों के पास वाणिज्य, उद्योग, वित्त, प्रबंधन, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, लोक स्वास्थ्य या औषधि के क्षेत्र में इतना ही अनुभव है वे भी राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्य के पदों पर नियुक्ति के लिए पात्र हैं।

पीठ ने कहा, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत यह भी निर्देश देते हैं कि राज्य आयोग और जिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति दो पर्चों वाली लिखित परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर की जाए।”

शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2020 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था।

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और महाराष्ट्र राज्य ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।










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