Raebareli: रायबरेली जेल के कैदियों के बनाये उत्पादों की क्यों बढ़ी मांग? जानिये वजह

डीएन संवाददाता

जिला कारागार में कैदी तरह-तरह के उत्पाद बनाकर जेल को नई पहचान दिलाने के साथ ही खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए जिला जेल के बाहर जिला कारागर विक्रय केंद्र खोला जा रहा है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

दुकान का अवलोकन करते जेल अधीक्षक
दुकान का अवलोकन करते जेल अधीक्षक


रायबरेली: उत्तर प्रदेश में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) की तरह अब रायबरेली जेल के कैदियों द्वारा बनाये जा रहे वन जेल वन प्रोडक्ट (ओजेओपी) अपनी खास पहचान बना रहा है। कैदियों द्वारा यहाँ मिट्टी व गोबर से दीये भी तैयार किये जा रहे हैं, जो दीपावली पर आने वाले चीनी उत्पादों को टक्कर दे रहे हैं। इस दीवाली अयोध्या में 25 लाख दीये जलाए जाने के लक्ष्य को पूरा करने में रायबरेली जेल में तैयार किए गए दीये भी शामिल होने के लिए तैयार हैं।

इस कार्य के लिये कैदियों को प्रशिक्षण (Training) देकर हुनरमंद बनाया जा रहा है। जिला कारागार में कैदी तरह-तरह के उत्पाद बनाकर जेल को नई पहचान दिलाने के साथ ही खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए जिला जेल के बाहर जिला कारागर विक्रय केंद्र खोला जा रहा है।

कैदियों द्वारा बनाए जा रहे हैं माटी के उत्पाद

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रायबरेली जिला जेल में कैदियों द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों में मिट्टी के बर्तन, कुल्हड़ और मूर्तियां आदि शामिल हैं। कैदियों को इन सब के लिए सामान मुहैया कराया गया है। जेल प्रशासन द्वारा इन कैदियों के द्वारा निर्मित उत्पादों की बिक्री के लिए एक दुकान का निर्माण जिला कारागार के बाहर किया गया है। जिसका कल शुक्रवार को उद्घाटन होना है। यहां पर कैदियों द्वारा बनाए गए उत्पाद बेचे जाएंगे और उनसे अर्जित धनराशि को उन्हीं के लिए रॉ मैटेरियल खरीदने के लिए खर्च किया जाएगा।

कैदियों के वेलफेयर के लिए खर्च होगा पैसा

जेल अधीक्षक अमन कुमार सिंह ने बताया कि बंदी कल्याण पुनर्वास सहकारी समिति के सौजन्य से यह दुकान खोली गई है। इस दुकान माध्यम से जो लाभांश होता है, वह कैदियों के वेलफेयर के लिए खर्च होगा। मिट्टी के जो उत्पाद बनाये जा रहे हैं, उसको बनाए जाने का उद्देश्य बन्दियों के हुनर को तरसना है। जिससे वह समाज के अंदर अपने आप को स्थापित कर पाए।

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डिजाइनर दीये भी किए गए हैं तैयार 

उन्होंने कहा कि इस माटी कला के अंदर हमने उन बंदियों को भी शामिल किया, जो इस तरह की कारीगरी नहीं कर पाते थे। आज के समय में हमारे पास 15 से 16 बंद ऐसे हैं, जो मिट्टी कला में काम कर रहे हैं। अयोध्या में दीये भेजे जाने का आदेश अभी मुख्यालय से नहीं आया है, जैसे ही आदेश आएगा हम उसमें दिए भेजेंगे। हमारे पास गोबर और मिट्टी के बने दीये तैयार किए गए हैं। इसमें डिजाइनर दीये भी बनाए गए हैं। हमारे पास 60 तरह के प्रोडक्ट बने हैं, जो 5 रुपये से लेकर 500 तक की कीमत के हैं। यह पैसा बंदी कल्याण पुनर्वास समिति में जाएगा, जिससे सहकारी समिति के जरिये उसका प्रयोग बन्दियों की भलाई के लिए खर्च किया जाएगा।

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