DN Exclusive: बिहार चुनाव में गायब हैं बाढ़ पीड़ितों और किसानों के ये मुद्दे, प्रभावितों ने डाइनामाइट न्यूज को अपना सुनाया दर्द

शुभम खरवार

डाइनामाइट न्यूज की टीम बिहार चुनाव के दौरान वहां की जनता की नब्ज टटोलने में लगी हुई। डाइनामाइट न्यूज को लोगों ने कई ऐसी बातें बताई, जो नेताओं और पार्टियों के वादे-दावे और घोषणाओं में शामिल नहीं है। पढिये, स्पेशल रिपोर्ट



चंपारण: बिहार विधान सभा चुनाव के प्रथम चरण के मतदान के लिये प्रचार अभियान भले ही थम गया हो, लेकिन राज्य में कई मुद्दे ऐसे है, जिनको लेकर लगता है कि जनता का दर्द कभी खत्म नहीं होने वाला है। बिहार चुनाव में जनता की नब्ज टटोलने के लिये डाइनामाइट न्यूज बिहार के तमाम क्षेत्रों का दौरा कर रही है और ग्रामीणों से उनके वास्तविक मुद्दों को जानने का प्रयास कर रही है।

इसी क्रम में डाइनामाइट न्यूज की टीम बिहार के पश्चिमी चंपारण के बाल्मीकिनगर के ग्रामसभा चकदहवा पहुंची। यहां के किसानों और ग्रामीणों के पास उनकी समस्याओं की एक लंबी सूची है। यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं लेकिन गंडक नदी के तट पर बसे होने के कारण पिछले कई वर्षों से बाढ़ का शिकार होते आ रहे हैं। 

हर साल की ही तरह यहां के कई लोगों की फसल इस बार भी बाढ़ से बर्बाद हो गयी है। सरकार के दावों के उलट मुआवजे के नाम पर इनको कुछ नहीं मिला। 

डाइनामाइट न्यूज से बातचीत में यहां के ग्रामीण बताते हैं कि ग्यारह बजे रात को बाढ़ आयी और थोड़ से ही समय में सबकुछ बहाकर ले गयी। उनके पास कुछ नहीं बचा। सरकार और नेताओं ने बाढ़ को लेकर कई दावे किये, लेकिन सब ढाक के तीन पात साबित हुए। यहां तक कि विधान सभा चुनावों में जो दावे और वादे किये जा रहे हैं, उनमें ये सब मुद्दे नदारद है।

ग़रीबी और बाढ़ की मार के अलावा यहां और भी कई बड़ी समस्याएं है। सड़क संपर्क न होने के कारण यहां के कई लोग आज तक मुख्य मार्ग से एकदम कटे हुए है। 

यहां के लोग कहते हैं कि चुनावी मौसम होने के कारण क्षेत्र में एक स्कूल तो निर्माणधीन है, मगर अस्पताल बनाने का तो यहां अभी जिक्र तक नहीं हुआ है।

किसान विक्रम बिन और उनके साथी बताते हैं कि कई वर्षों से ऐसी स्थिति है कि जनता की कोई सुनने वाला नहीं है। हम मूलभूत चीजों से इतने दूर हैं कि हमे भविष्य भी अंधेरे में दिखता है। नेता लोग बस चुनाव के समय आते है और वोट देने के बाद दर्शन तक नहीं देते। इस बार हम केवल और केवल काम करने वाले नेताओं को ही वोट देंगे, वो भी विकास के नाम पर। 
 










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