पाकिस्तान: शीर्ष अदालत ने फैसलों की समीक्षा का कानून रद्द किया, शरीफ की उम्मीदों पर फिरा पानी

पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सर्वसम्मति से लिये गये एक निर्णय में अपने फैसलों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में संशोधन करने वाले एक कानून को रद्द कर दिया। इस फैसले से सार्वजनिक पद धारण करने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराये जाने के फैसले को चुनौती देने के इच्छुक पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 11 August 2023, 7:02 PM IST
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इस्लामाबाद: पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सर्वसम्मति से लिये गये एक निर्णय में अपने फैसलों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में संशोधन करने वाले एक कानून को रद्द कर दिया। इस फैसले से सार्वजनिक पद धारण करने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराये जाने के फैसले को चुनौती देने के इच्छुक पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा कि उच्चतम न्यायालय (फैसलों और आदेशों की समीक्षा) कानून-2023 असंवैधानिक था।

पाकिस्तान सरकार ने मई में अपने मूल अधिकार क्षेत्र के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील का अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाया।

निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ को वर्ष 2017 में शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने अयोग्य घोषित कर दिया था, लेकिन वह अपील दायर नहीं कर सके क्योंकि शीर्ष न्यायपालिका के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई कानून नहीं था।

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद वह सार्वजनिक पद संभालने के लिए आजीवन अयोग्य हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ (73) नवंबर, 2019 से चिकित्सा उपचार के लिए लंदन में रह रहे हैं, जब पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें चार सप्ताह की राहत दी थी।

तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे शरीफ लंदन रवाना होने से पहले अल-अजीजा भ्रष्टाचार मामले में लाहौर स्थित कोट लखपत जेल में सात साल कारावास की सजा काट रहे थे।

उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 62 के तहत राजनेता जहांगीर तरीन को भी अयोग्य ठहराया था। जियो न्यूज की खबर में कहा गया कि यदि आज का फैसला याचिकाओं के पक्ष में रहा होता, तो दोनों नेताओं को अपनी अयोग्यता को चुनौती देने का मौका मिल जाता।

प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने विवादास्पद कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर भी पीठ के सदस्य हैं।

विस्तृत फैसले में कहा गया कि यह कानून संसद की विधायी क्षमता से परे होने के साथ-साथ ‘संविधान के प्रतिकूल’ है।

आदेश में कहा गया, ‘‘तदनुसार इसे अमान्य मानते हुए रद्द किया जाता है और इसका कोई विधिक असर नहीं होगा।’’

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