केंद्र पर LGBTQ की कटाक्ष, कहा- भारत एक बहुलता देश है न कि एकरूपता का

डीएन ब्यूरो

एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर केंद्र के विरोध की आलोचना करते हुए कहा है कि भारत की बहुलता और विविधता के बावजूद सरकार अभी भी मानती है कि विवाह के अधिकार केवल विषमलैंगिकों को ही दिए जा सकते हैं।

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर केंद्र के विरोध की आलोचना करते हुए कहा है कि भारत की बहुलता और विविधता के बावजूद सरकार अभी भी मानती है कि विवाह के अधिकार केवल विषमलैंगिकों को ही दिए जा सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध से संबंधित याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा।

उच्चतम न्यायालय में सोमवार को इस मामले पर सुनवाई होगी।

केंद्र के हलफनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए, समान अधिकार कार्यकर्ता एवं समुदाय के एक सदस्य हरीश अय्यर ने कहा कि भारत बहुलता का देश है न कि एकरूपता का।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘विविधता में एकता एक सबक है जो हम अपने स्कूलों में सीखते हैं। कानून की नजर में हर कोई समान है। फिर भी हम केवल बहुसंख्यकों को ही विवाह का अधिकार देते हैं न कि हम अल्पसंख्यकों को। सरकार ने अपने रुख में पुष्टि की है कि उनका मानना है कि विवाह केवल एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला और उनकी संतानों के बीच हो सकता है।’’

अय्यर ने हलफनामे में केंद्र द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा की भी निंदा की।

स्कॉटलैंड में सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में एक शोधार्थी जो खुद की पहचान ‘क्यू’ के तौर पर उल्लेखित करना पसंद करते हैं, ने कहा, ‘‘केंद्र ने कहा कि पारंपरिक विषमलैंगिक परिवार इकाई देश के अस्तित्व और निरंतरता के लिए मूलभूत है। यह आंशिक रूप से सही है। देश हमेशा मौलिक रूप से विषमलैंगिक रहा है; इसके संस्थान, इसके कानून, इसकी पूंजीवादी संरचनाएं, यहां तक कि इसकी सीमाएं भी विषमलैंगिक उच्च जाति पुरुष की ओर झुकाव रखती हैं।’’










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