Haryana Violence: हरियाणा हिंसा और जातीय सफाये’ को लेकर हाई कोर्ट में जानिये क्या बोली राज्य सरकार

डीएन ब्यूरो

हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय में उन आरोपों को खारिज कर दिया कि हिंसा प्रभावित नूंह में ध्वस्तीकरण अभियान में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और यह ‘‘जातीय सफाये’’ की एक कवायद थी। सुनवाई कर रही पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर:

‘जातीय सफाये’ के आरोप को खारिज किया
‘जातीय सफाये’ के आरोप को खारिज किया


चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय में उन आरोपों को खारिज कर दिया कि हिंसा प्रभावित नूंह में ध्वस्तीकरण अभियान में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और यह ‘‘जातीय सफाये’’ की एक कवायद थी। सुनवाई कर रही पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सोमवार को मुस्लिम बहुल नूंह में ‘‘अवैध रूप से निर्मित’’ इमारतों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाते हुए सवाल किया था कि क्या वहां सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद किसी खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।

शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरुण पल्ली और न्यायमूर्ति जगमोहन बंसल की पीठ को हरियाणा के अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक सभरवाल ने बताया कि कानून के तहत स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

सभरवाल ने बाद में संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने अदालत को अवगत कराया है कि यह जातीय सफाये का मामला नहीं है और सरकार कभी भी इस तरह से काम नहीं करती। हमारे (सरकार के) लिए सभी समान हैं। ध्वस्तीकरण से पहले पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया था।’’

सुनवाई की अगली तारीख पर सरकार अदालत के समक्ष लिखित जवाब दाखिल करेगी। सभरवाल ने कहा कि अदालत ने मामले की सुनवाई यह कहते हुए स्थगित कर दी कि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की प्रथम खंडपीठ को करनी है। सभरवाल के मुताबिक, ध्वस्तीकरण अभियान जारी रह सकता है क्योंकि इस पर कोई रोक नहीं है।

न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन ने सोमवार को कुछ खबरों का स्वत: संज्ञान लेते हुए ध्वस्तीकरण अभियान रोक दिया था। अदालत ने उस वक्त कहा था, ‘‘जाहिर है, बिना किसी ध्वस्तीकरण आदेश और नोटिस के, कानून और व्यवस्था की समस्या का इस्तेमाल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना इमारतों को गिराने के लिए किया जा रहा है।’’

पीठ ने कहा था, ‘‘...मुद्दा यह भी उठता है कि क्या कानून-व्यवस्था की समस्या की आड़ में किसी खास समुदाय की इमारतों को गिराया जा रहा है और राज्य द्वारा जातीय सफाये की कवायद की जा रही है।’’

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को एक हलफनामा पेश करने का निर्देश दिया था कि पिछले दो सप्ताह में नूंह और गुरुग्राम दोनों में कितनी इमारतें ध्वस्त की गई हैं और क्या ध्वस्तीकरण से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था?

अदालत ने कहा था, ‘‘अगर आज ऐसा कोई ध्वस्तीकरण अभियान किया जाना है, तो कानून के अनुसार प्रक्रिया का पालन नहीं होने पर इसे रोक दिया जाना चाहिए।’’

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की 31 जुलाई को यात्रा को निशाना बनाए जाने के कुछ दिनों बाद नूंह में कई घरों और अन्य इमारतों पर बुलडोजर चला दिया गया था। नूंह हिंसा में होम गार्ड के दो जवान सहित पांच लोग मारे गए। बाद में हिंसा निकटवर्ती गुरुग्राम तक फैल गई, जहां एक मस्जिद पर हमले में एक इमाम की हत्या कर दी गई।

नूंह प्रशासन का कहना है कि बुलडोजर से ढहाई गई इमारतें अवैध थीं और उन्हें नोटिस भेजे गए थे। अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि ध्वस्त की गई कुछ इमारतें 'दंगाइयों' की थीं। उन्होंने कहा कि हिंसा के दौरान उनमें से कुछ इमारतों से पत्थर फेंके गए। सांप्रदायिक हिंसा पर हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने भी बुलडोजर के इस्तेमाल को जायज ठहराया था। उन्होंने संवाददाताओं से कहा था, ‘‘बुलडोजर इलाज का हिस्सा है।’’










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