Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में फिर भू धंसाव और भूस्खलन की आशंका, जानिये ताजा अपडेट

डीएन ब्यूरो

पिछले सप्ताह जोशीमठ में विनोद सकलानी नामक व्यक्ति के घर के पास छह फुट से अधिक चौड़ा गड्ढा उभर आया जिसके बाद पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक इस शहर के निवासियों में एक बार फिर भविष्य को लेकर तमाम आशंकाएं पैदा होने लगीं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

जोशीमठ में भूस्खलन की आशंका फिर बढ़ी
जोशीमठ में भूस्खलन की आशंका फिर बढ़ी


देहरादून: पिछले सप्ताह जोशीमठ में विनोद सकलानी नामक व्यक्ति के घर के पास छह फुट से अधिक चौड़ा गड्ढा उभर आया जिसके बाद पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक इस शहर के निवासियों में एक बार फिर भविष्य को लेकर तमाम आशंकाएं पैदा होने लगीं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार लगभग छह महीने पहले दो-तीन जनवरी को जोशीमठ के आसपास भू-धंसाव के कारण सैकड़ों निवासियों को अपने-अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा था। उनके मकानों में दरारें आ गई थीं और उन्होंने होटल, विश्राम गृहों, रिश्तेदारों और मित्रों के घरों में शरण ली थी।

विनोद की पत्नी अंजू सकलानी ने कहा कि उस समय सर्दियां खत्म हो रही थीं और अब मानसून का समय है, ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं बदला है। उन्होंने कहा कि लगातार बारिश के बीच उनके घर के पास की जमीन धंस रही है और पानी उनके घर में घुस आया है।

अंजू ने फोन पर बताया, ‘‘हमने गड्ढे को मलबे और पत्थरों से भर दिया है।’’

पर्यावरण कार्यकर्ता और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति (जेबीएसएस) के समन्वयक अतुल सती ने कहा, लेकिन यह समाधान सिर्फ मरहम लगाने के समान है।

सितंबर 2021 की शुरुआत में ही सकलानी परिवार ने सबसे पहले अपने मकान में दरारें पड़ने की सूचना दी थी। इसके बाद पर्वतारोहण अभियानों के साथ-साथ बदरीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थस्थलों और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल ‘‘फूलों की घाटी’’ के भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई।

सती ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘छह महीने पहले मकानों में दरारें पड़ने की घटनाओं के बाद प्रभावित लोगों की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है।’’

उन्होंने कहा कि सुनील वार्ड में सकलानी के मकान के पास गड्ढा बनने की घटना कोई एकमात्र घटना नहीं है। उन्होंने मौजूदा स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई।

जोशीमठ में पूर्व में दरारें और गड्ढे बनने की कई घटनाएं हुई हैं और मानसून के मौसम के आने के साथ ही, आगे ऐसी और घटनाएं होने की आशंका है।

अधिकारियों ने कहा कि भू-धंसाव की घटना के बाद से सरकार ने जोशीमठ को बचाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन और शमन केंद्र के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘जोशीमठ की वहन क्षमता का आकलन किया जा रहा है। वहां जल निकासी व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए एक योजना भी तैयार है। समस्या से संबंधित हर पहलू पर गौर किया गया है और विशेषज्ञ शहर को स्थिर करने के तरीके तैयार कर रहे हैं।’’

जोशीमठ में गड्ढों के निर्माण की वजह माने जा रहे भूवैज्ञानिक कारकों पर प्रकाश डालते हुए, श्रीनगर के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर एवं भूविज्ञानी वाई. पी. सुंदरियाल ने कहा कि सतह के नीचे ढीली और नरम चट्टानों की मौजूदगी क्षेत्र को पानी की आवाजाही के कारण होने वाले कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है। इस कटाव से जमीन धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दरार और गड्ढे बन जाते हैं।

उन्होंने  कहा, ‘‘अधिक बारिश होने से समस्या और बढ़ जाएगी। दरारें एवं गड्ढे और चौड़े हो जाएंगे...।’’

सती के अनुसार, प्रभावित आबादी के केवल 30 प्रतिशत हिस्से को ही कोई मुआवजा मिला है और वह भी अपर्याप्त है।










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