कानपुर में है यह दूसरा काशी मंदिर...

डीएन संवाददाता

कानपुर के जाजमऊ स्थित गंगा किनारे बसा प्राचीन प्रसिद्ध सिद्धनाथ मंदिर है जिसे हम सभी द्वितीय काशी के रूप में भी जानते हैं। डाइनामाइट न्यूज की इस रिपोर्ट में जानिये इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं।

पूजा करते लोग
पूजा करते लोग


कानपुर: सावन के आते ही देश के कोने कोने में बने शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़नी शुरू हो चुकी है। सावन का यह पावन महीना इस बार दुर्लभ संयोग लेकर आया है। क्योंकि सावन की शुरुवात ही सोमवार से हुई और खत्म भी सोमवार को ही होगा। यह उन भक्तों के लिए बहुत ही शुभ संकेत है, जो दर्शन के लिए दूर दूर से आते हैं।

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द्वितीय काशी मंदिर

इस रिपोर्ट में आज हम बात करेंगे एक ऐसे मंदिर कि जिसे द्वितीय काशी भी कहा गया है। कानपुर के जाजमऊ स्थित गंगा किनारे बसा प्राचीन प्रसिद्ध सिद्धनाथ मंदिर है जिसे हम सभी द्वितीय काशी के रूप में भी जानते हैं। यहां वैसे तो प्रत्येक दिन शिवभक्तों का आना जाना रहता है लेकिन सावन के पवित्र महीने में यहां देश के कोने - कोने से लोग इस मन्दिर में आकर भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। यहाँ भक्त बेलपत्री, दूध,दही और जल का अभिषेक कर शिवलिंग पर चढ़ा कर मनोकामनाए मांगते हैं।

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ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में जाजमऊ स्थित राजा ययाति हुआ करते थे, उनके पास 1000 गाय थीं। लेकिन वे इन गायों में से एक गाय का ही दूध पिया करते थे, जिसके पाँच थन थे। सुबह गायों को चरवाहे चरने के लिए छोड़ दिया करते थे। इस दौरान एक गाय अक्सर झाड़ियों के पास जाकर अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती थी। जब ये बात राजा को पता चली तब उन्होंने अपने रक्षकों से इस बारे में जानकारी करने को कहा। राजा के रक्षकों ने बताया कि गाय झाड़ियों के पास अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती है। उसी वक्त राजा ने फैसला किया कि हम वहा चलेंगे उस जगह पर जाने के बाद उन्होंने उस टीले के आसपास खुदाई करवाई जहां उन्हें खुदाई करते वक्त एक शिवलिंग दिखाई दिया। जिसके बाद राजा ने विधि विधान से शिवलिंग का पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया।

कहा जाता है कि राजा को एक रात स्वप्न आया कि यहाँ 100 यज्ञ पूरे करो तो यह जगह काशी कहलाएगी। जिसके बाद राजा ने विधि विधान से यज्ञ प्रारंभ भी कर दिया। बताया जाता है कि राजा के 99 यज्ञ पूरे हो गए थे। 100वां यज्ञ के दौरान एक कौवे ने उस हवन कुंड में हड्डी डाल दी, जिसके बाद ये जगह काशी बनने से तो चूक गयी लेकिन आज भी सभी भक्त इसे द्वितीय काशी के रूप में जानते हैं। वही राजा की आराधना से प्रसन्न होकर भोले नाथ ने दर्शन दिए। जिसके बाद भगवान शंकर ने राजा को यहां शिवलिंग स्थापित करने को कहा जिसके बाद राजा ने यहां पूरे विधि विधान से पूजन शुरू कर दिया। तबसे लेकर ये प्रसिद्ध मंदिर सिद्धनाथ के नाम से जाना जाने लगा।

ऐसे पूरी होगी मनोकामना

सिद्धनाथ मन्दिर के पुजारी मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि सिद्धनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन भीड़ बनी रहती है। देश के कोने कोने से लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए यहां आते है। उन्होंने बताया कि सावन की शुरुआत पहले सोमवार से हुई ये अत्यंत शुभ संयोग है और यहां सावन के चौथे सोमवार के दिन भव्य मेला का भी आयोजन होता है। भक्तों को सिद्धनाथ बाबा ने कभी निराश नही किया बच्चों के मुंडन हो या किसी भी प्रकार की मनोकामना बाबा सिद्धनाथ जरूर उसे पूरा करते हैं। संतान प्राप्ति के लिए लोग पूजा अर्चना करते है उनकी मुराद पूरी जरूर होती है।

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