Childhood: आखिर क्यों 'गुम हो रहा बचपन और बच्चे', कैसें करें देखभाल? पढ़ें ये स्पेशल रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों का बचपन कहीं गुम सा होता जा रहा है। समय से पहले ही बच्चों पर जरूरत से अधिक बोझ डालने के कई नकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे हैं। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की ये खास रिपोर्ट

तेजी से अवसाद के शिकार हो रहे बच्चे (फाइल फोटो)
तेजी से अवसाद के शिकार हो रहे बच्चे (फाइल फोटो)


नई दिल्ली:आजकल तेजी से बढ़ती जिंदगी में बच्चों का मासूम बचपन कहीं खोता जा रहा है। अब 2 से 2.5 साल की उम्र से ही बच्चों पर पढ़ाई की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। बच्चों पर लगातार बोझ डाला जा रहा है, जिस कारण बच्चों को स्कूल में टीचर्स और घर में मम्मी-पापा का डर सताने लगता है। पुरानी पीढ़ी जिन बातों को 15 से 16 साल की उम्र में सोचती थी,अब नई पीढ़ी 10 से 11 साल की उम्र में उन बातों को सोचने लगी है।

कई ट्रेंड, शोध और मनोवैज्ञानिक बताते हैं समाज में बच्चों का बचपन सिकुड़ता जा रहा है। इस खींचतान और भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों का बचपन कहीं गुम सा गया है। अब बच्चों को रामायण, महाभारत और परियों की कहानियां कोई नहीं सुनाता है। मेले में बच्चे अब खिलौने की जिद भी नहीं करते, अब माता-पिता बच्चों को शांत करने के लिए वीडियो गेम या मोबाइल थमा देते है।

आज की डिजिटल दुनिया में  बच्चें दोस्ते के साथ पार्क में खेलने के लिए बजाये वीडिओ गेम, कंप्यूटर, मोबाइल के साथ खेल रहे है। इससे बच्चा घर की चार दीवारी से बाहर नहीं निकल पाता और वो बहारी दुनिया को समझ ही नहीं पाता। सभी के बीच रहकर भी बच्चा खुद को नितांत अकेला महसूस करता है।

अभिभावकों की महत्त्वाकांक्षाएं भी बच्चों के अनियमित विकास के लिए जिम्मेदार है। हर अभिभावक अपने बच्चों को जबरन म्यूजिशन, एक्टर, डांसर, साइन्टिस्ट बनने के लिए कहते है। आज की जीवनशैली भी बच्चों के अन्दर हताशा, निराशा, आक्रोश पैदा कर रही है।

इसके साथ-साथ अभिभावकों द्वारा भौतिकतावादी दुनिया के दिखावे में स्थापित होने के चलते उनका एकमात्र मकसद धनोपार्जन रह गया है। ऐसे में उनके द्वारा अपने बच्चों के लिए समय, स्नेह, प्यार आदि दे पाना सहज रूप से संभव नहीं हो पा रहा है। ऊपर से मां-बाप द्वारा बच्चों को एक्स्ट्रा एक्टिविटी सीखने का बोझ भी डाल दिया जाता है, जिससे बच्चे की मासूमियत कहीं गुम हो जाती है।

अगर बच्चा गुमसुम रहने लगा है, उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब होती जा रही है, तो ये माता-पिता के लिए सोचने वाली बात है। 

माता पिता को समझना होगा की हर बच्चे का IQ लेवल और शारीरिक विकास भी भिन्न होता है। माता-पिता बच्चों को दूसरे बच्चे से कंपेयर न करें। हर बचा आपने आप में बहुत अलग होता है। माता-पिता को अपने बच्चों में धैर्य, आत्मविश्वास, संस्कार स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चों को विश्वास में लेने की जरूरत है। उनके भीतर से खोखलापन हटाकर आत्मविश्वास भरने की जरूरत है।

आज बच्चों पर अनावश्यक दवाब बनाकर उनके जीवन को असमय समाप्त करने के बजाए उनको खिलखिलाते रहने के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। 










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