‘Godi’ Media: ‘गोदी’ मीडिया कैसे आया चलन में, सुनिये डॉ अभिषेक मनु सिंघवी की जुबानी

सुभाष रतूड़ी

देश में कुछ समय से ‘गोदी’ मीडिया शब्द तेजी से चलन में आया है और इसका प्रचलन अब भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जानिये आखिर कैसे आया ये शब्द और क्या है इस उपमा के मायने



नई दिल्ली: हाल के वर्षों में देश में ‘गोदी’ मीडिया शब्द का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। अक्सर मीडिया की निंदा के लिये मुहावरे के रूप में ‘गोदी’ मीडिया इस्तेमाल होता है। विपक्षी दल और विरोधी विचारधाराओं के लोग सत्ता और सरकार के खिलाफ इस मुहावरे का ज्यादा प्रयोग करते हैं और वे अक्सर सरकार के साथ खड़ी रहने वाली मीडिया को ‘गोदी’ मीडिया की उपमा देते हैं।

देश के प्रख्यात विधिवेत्ता, कानूनविद, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और चार बार के सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने डाइनामाइट न्यूज़ की 9वीं वर्षगांठ पर दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित भव्य समारोह के मंच से ‘गोदी’ मीडिया शब्द की उत्पत्ति, इसके चलन में आने के साथ ही इसके व्यापक अर्थ के बारे में बताया। इस मौके पर डा सिंघवी ने समकालीन प्रेस की दशा और दिशा पर भी प्रकाश डाला। 

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ‘गोदी’ मीडिया शब्द शैर्लोक होम्स (Sherlock Holmes) के कारण चलन में आया है। शैर्लोक होम्स ने सबसे पहले इस उपमा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि जब शैर्लोक होम्स किसी मामले की तहकीकात करने गये तो उन्होंने वहां के लोगों के बारे में अपने साथी से पूछा कि क्या ये लोग ‘वॉच डॉग’ थे लेकिन उन्हें जवाब मिला की नहीं, ये ‘लैप’ डॉग थे। ‘लैप’ डॉग भौंका नहीं करते। 

इसी ‘लैप’ अंग्रेजी शब्द से हिंदी में गोदी शब्द आया क्योंकि लैप का अर्थ होता है गोदी। ‘वॉच डॉग’ शब्द लंबे समय से समाज और सरकार पर नजर रखने वाले चौकस मीडिया के लिये इस्तेमाल किया जाता रहा है। 

सर कोनन डॉयल का काल्पनिक चरित्र

शैर्लोक होम्स ब्रिटिश लेखक और उपान्यासकार सर कोनन डॉयल का एक काल्पनिक चरित्र है, जिसको डॉयल ने अपने चार उपन्यास और छप्पन लघु कथाओं में चित्रित किया है।  शैर्लोक होम्स को अपनी बौद्धिक कुशलता के साथ एक प्रतिभावान जासूस के रूप में भी जाना जाता है, जिसने उपन्यासों में कई अनसुलझे मामलों की तहकीकात कर उनको सुलझाया। 

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डॉ. सिंघवी ने कहा कि ‘लैप’ डॉग कभी महत्वाकांक्षा तो कभी लालच का पर्याय है। ‘लैप’ डॉग उसके भय को भी दर्शाता है। यह भय किसी बातों का प्रेस में आ जाने का होता है। 

उन्होंने कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। हालांकि कानून की किताबों में इसे चौथे स्तंभ का दर्जा नहीं दिया गया है। लेकिन निश्चित तौर पर इसकी भूमिका विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद चौथे नंबर पर अनिवार्य रूप से है।

प्रेस को सबसे ज्यादा आंतरिक खतरा

उन्होंने कहा कि जब हम समकालीन प्रेस की स्थिति के बारे में बात करते हैं तो हमें ध्यान रखना चाहिये की प्रेस को जितना खतरा बाहर से हो सकता है उससे अधिक खतरा आतंरिक हो सकता है। बाहरी खतरों में सेंसरशिप, सरकारें आदि हैं। प्रेस को आज यदि सबसे ज्यादा भय होना चाहिये तो उन अंदरूनी अंगों से जो आज प्रेस कहलाने के योग्य नहीं हैं।

...तो राष्टीय खतरा होगा खड़ा

डा सिंघवी ने कहा कि चौथा स्तंभ यानी प्रेस या मीडिया यदि कोई समझौता करेगा। भय और महत्वाकांक्षाएं रखेगा तो राष्टीय खतरा खड़ा हो जायेगा। जब तक आप (प्रेस) अपनी मशाल और अपने जिम्मेदारी के साथ नहीं चलेंगे तब तक प्रेस को चौथा स्तंभ कहलाने का अधिकार नहीं है।

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प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की स्थिति

उन्होंने कहा कि यहां प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2024 का एक आंकड़ा पेश किया, जिसमें भारत की पोजीशन 180 में से 159 है। इसमें मैं एक और चिंताजनक बात को जोड़ना चाहता है, जो देश में पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। यह भी उसी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स का दूसरा हिस्सा है, जो पत्रकारों की सुरक्षा और उनके कार्य करने के इको सिस्टम से जुड़ा हुआ है। इस इंडेक्स में भारत का नंबर 180 में से 172 है, जो हमारे लिये एक बड़े खतरे की घंटी है। 

देश द्रोह के मामलों में बढ़ोत्तरी

उन्होंने कहा कि आंकड़े बतातें हैं कि 2023-24 में देश में 103 पत्रकारों को स्टेट एक्टर्स द्वारा निशाना बनाया गया। जबकि 90 से अधिक पत्रकारों को नॉन स्टेट एक्टर्स द्वारा निशाना बनाया गया। देशद्रोह के मामलों में भी अक्सर पत्रकार फंसते रहते हैं। 2021 के मध्य में ऐसा स्टेटमेंट सुप्रीम कोर्ट में भी रिकार्ड किया गया।  2014 से 2022 के बीच देश द्रोह के मामलों में गिरफ्तार पत्रकारों की संख्या में बेहताशा वृद्धि हुई और ट्रायल में भी तेजी देखी गई।










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