अंटार्कटिक की ‘लैंडफास्ट’ बर्फ के इस सदी के अंत तक कम हो जाने की आशंका: वैज्ञानिक

डीएन ब्यूरो

अंटार्कटिक की ‘लैंडफास्ट’ बर्फ की लंबाई, मोटाई और इसका दायरा सदी के अंत तक कम हो जाने की आशंका है। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आई है।

लैंडफास्ट (फाइल)
लैंडफास्ट (फाइल)


नई दिल्ली: अंटार्कटिक की ‘लैंडफास्ट’ बर्फ की लंबाई, मोटाई और इसका दायरा सदी के अंत तक कम हो जाने की आशंका है। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आई है।

‘लैंडफास्ट’ बर्फ समुद्र तट पर, या हिमखंड के इर्द गिर्द जमी बर्फ को कहते हैं।

यह बर्फ पेंग्विन के प्रजनन के लिए बेहद जरूरी स्थान होता है। साथ ही तटीय समुद्री खाद्य चक्र को आगे बढ़ाने में भी इसका अहम योगदान है।

अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि पहली बार इस बर्फ में विखंडन तथा अंटार्कटिक ‘लैंडफास्ट’ बर्फ की व्यापक समीक्षा ने इसके दूरगामी महत्व को रेखांकित किया।

कुल 23 अंतरराष्ट्रीय लेखकों के दल की अगुवाई करने वाले वैज्ञानिक एलेक्स फ्रासर ने कहा,‘‘ लैंडफास्ट बर्फ वैश्विक जलवायु तंत्र में अलग प्रकार से भूमिका निभाती है और इसलिए इसे अन्य प्रकार की समुद्री बर्फ से भिन्न समझे जाने की जरूरत है।’’

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फ्रासर तथा एक अन्य प्रमुख वैज्ञानिक पैट वोंगपन ने अपनी समीक्षा जर्नल ‘रिब्यूज ऑफ जियोफिजिक्स’ में प्रकाशित की है।

फ्रासर ने कहा, ‘‘हमारी समग्र समीक्षा अंटार्कटिक लैंडफास्ट बर्फ पर भौतिक तथा यांत्रिक गुणों सहित संपूर्ण जानकारी पेश करती है। इसके साथ ही हिमनद विज्ञान, समुद्र विज्ञान, वायुमंडलीय, जैव-भू-रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं में भी इसकी अहम भूमिका प्रदर्शित करती है।’’

उन्होंने कहा कि लेकिन वैश्विक जलवायु मॉडल में चूंकि ‘लैंडफास्ट’ बर्फ को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए अनुमान बेहद अनिश्चित हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि उनके आकलन ने उस गति को दर्शाया, जिसके अनुरूप लैंडफास्ट बर्फ पर्यावरणीय बदलावों के साथ बदलती है।

फ्रासर ने कहा, ‘‘सैटेलाइट रिकॉर्ड से हमने 2000-2022 तक लैंडफास्ट बर्फ की एक नई वार्षिक समय-श्रंखला बनाई है, जिससे पता चलता है कि वार्षिक न्यूनतम सर्कम-अंटार्कटिक फास्ट-बर्फ की सीमा मार्च 2022 में रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई।’’

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उन्होंने कहा कि मार्च 2022 में लैंडफ़ास्ट बर्फ़ का दायरा घटकर 123,200 वर्ग किलोमीटर रह गया (इसकी सामान्य मार्च सीमा 168,600 से 295,200 वर्ग किलोमीटर के बीच है)।

उन्होंने कहा,‘‘ ऐसे क्षेत्र जहां पहले लैंडफास्ट बर्फ लुप्त हो गई थी, वहां 2000 से 2021 के बीच मध्य मार्च तक ‘फास्ट-बर्फ’ आ गई।’’

फ्रासर ने कहा कि अगर लैंडफास्ट बर्फ में टूट दीर्घकालिक रुख को दिखाती है,तो भविष्य में इसका तटीय भूगोल और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।

 










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