इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बलात्कार मामले में पीड़िता के बयान का बताया महत्व, पढ़िये ये बड़ी टिप्पणी

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने माना है कि बलात्कार के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान का ‘साक्ष्य मूल्य’ एक आपराधिक मामले में घायल गवाह के बराबर होता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 8 August 2023, 5:34 PM IST
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लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने माना है कि बलात्कार के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान का ‘साक्ष्य मूल्य’ एक आपराधिक मामले में घायल गवाह के बराबर होता है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अदालत ने कहा कि इसके अलावा, आरोपी अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए घटना के वक्त अन्यत्र होने की दलील सुनवाई के दौरान दे सकता है।

अदालत ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत सुनवाई के चरण में इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक संक्षिप्त मुकदमे के समान होगा।

इसके साथ ही न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने बलात्कार के आरोपी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने बाराबंकी में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) मामलों से संबंधित विशेष अदालत की कार्यवाही तथा उसे तलब किये जाने एवं सुनवाई के समय उपस्थित रहने के फैसले को चुनौती दी थी।

पीड़िता की ओर से 2017 में बाराबंकी के जैदपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गयी थी और अपीलकर्ता एवं एक अन्य व्यक्ति को पीड़िता के साथ बलात्कार का आरोपी बनाया गया था।

सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उसने अभियोजन पक्ष की बातों का समर्थन किया था।

हालांकि पुलिस ने कथित तौर पर उसके समक्ष दिए पीड़िता के दूसरे बयान के आधार आरोपी को क्लीनचिट दे दी, लेकिन इसके विरुद्ध पीड़िता की अर्जी पर अदालत ने अपीलकर्ता को सुनवाई के लिए समन किया।

कार्यवाही को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ओ. के. सिंह ने कहा कि वह बस्ती के एक इंटर कॉलेज में भौतिकी के व्याख्याता हैं और घटना के वक्त वह अपने कॉलेज में थे। अपीलकर्ता सिंह ने कहा कि उनपर दबाव बनाने के इरादे से यह मामला दर्ज किया गया है, क्योंकि वह दिग्विजय वर्मा नामक एक व्यक्ति तथा उसके बेटे के खिलाफ दर्ज बलात्कार के एक मामले में गवाह थे।

पीठ ने अपीलकर्ता को कोई भी राहत देने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘घटनास्थल पर मौजूद न होने की दलील की पड़ताल निचली अदालत की सुनवाई के दौरान की जा सकती है, क्योंकि इसके लिए साक्ष्य और तथ्यात्मक विरोधाभासों का मूल्यांकन आवश्यक होता है।’’

पीठ ने कहा, ‘यद्यपि, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया पीड़िता का एकमात्र बयान ही सजा दिलाने के लिए पर्याप्त है।’’

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