

चेतेश्वर पुजारा ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया, लेकिन बिना किसी विदाई मैच के। ऑस्ट्रेलिया में दो बार टेस्ट सीरीज जिताने वाले इस भरोसेमंद बल्लेबाज को सम्मानजनक विदाई नहीं मिलना एक बार फिर बीसीसीआई की नीति पर सवाल खड़े करता है।
चेतेश्वर पुजारा (Img: Internet)
New Delhi: भारतीय क्रिकेट में एक बार फिर वही पुरानी बहस शुरू हो गई है। दिग्गज खिलाड़ियों को सम्मानजनक विदाई क्यों नहीं मिलती? इस बार चर्चा में हैं चेतेश्वर पुजारा, जिन्होंने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की, लेकिन बिना किसी विदाई मैच के। पुजारा, जिन्हें ‘राहुल द्रविड़ के बाद टीम इंडिया की दीवार’ कहा गया, ने भारतीय टेस्ट क्रिकेट में अद्वितीय योगदान दिया है, खासकर विदेशी धरती पर।
चेतेश्वर पुजारा ने ऑस्ट्रेलिया की धरती पर भारत को दो बार टेस्ट सीरीज जिताने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से न सिर्फ विपक्षी गेंदबाजों को थकाया, बल्कि समय निकालकर भारत को जीत की ओर ले जाने वाली नींव रखी। उनके संयम और धैर्य ने भारत को टेस्ट क्रिकेट में मजबूती दी। इसके बावजूद, जब उनका बल्ला शांत हुआ, तो उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया और चयनकर्ताओं ने संकेत दिए कि अब उनसे बेहतर प्रदर्शन की अपेक्षा की जा रही है।
चेतेश्वर पुजारा जैसे खिलाड़ी, जिन्होंने देश के लिए सालों तक खुद को झोंक दिया, क्या उन्हें एक विदाई मैच भी नसीब नहीं होना चाहिए था? यह सवाल सिर्फ पुजारा तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे पहले भी कई दिग्गज खिलाड़ियों को बिना सम्मानजनक विदाई के ही क्रिकेट से संन्यास लेना पड़ा।
चेतेश्वर पुजारा (Img: Internet)
इस फेहरिस्त में वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, जहीर खान, हरभजन सिंह और यहां तक कि अनिल कुंबले जैसे नाम शामिल हैं। इन खिलाड़ियों ने विश्व क्रिकेट में भारत की पहचान बनाने में बड़ी भूमिका निभाई, कई यादगार जीत दिलाई, लेकिन जब करियर के अंतिम दौर में पहुंचे तो बीसीसीआई ने उन्हें कोई औपचारिक विदाई देने की जरूरत नहीं समझी।
बीसीसीआई की यह नीति लगातार आलोचना का विषय रही है। जिस तरह से इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया या अन्य क्रिकेटिंग देशों में दिग्गजों को आखिरी मैच खेलने का अवसर दिया जाता है, भारत में वैसी परंपरा देखने को नहीं मिलती। यह सिर्फ खिलाड़ियों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रशंसकों के लिए भी एक अधूरी विदाई जैसी होती है।
क्या यह बोर्ड की रणनीतिक चुप्पी है या फिर दिग्गजों के योगदान को लेकर एक असंवेदनशील रवैया? पुजारा की चुपचाप विदाई ने इस बहस को फिर हवा दे दी है और शायद अब समय आ गया है जब भारतीय क्रिकेट को भी अपने नायकों को सम्मान के साथ विदा करने की परंपरा अपनानी चाहिए।