

देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने न सिर्फ न्यायिक व्यवस्था की मानवीय संवेदनाओं को केंद्र में ला दिया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं अपने पुराने निर्णय को पलट दिया। वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के शो The MTA Speaks में देखिये पूरा विश्लेषण
New Delhi: देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने न सिर्फ न्यायिक व्यवस्था की मानवीय संवेदनाओं को केंद्र में ला दिया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं अपने पुराने निर्णय को पलटते हुए यह दिखा दिया कि न्यायपालिका आत्मसमीक्षा करने से नहीं कतराती। इस फैसले की गूंज सिर्फ कानूनी गलियारों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक विमर्श के क्षेत्र में भी लंबे समय तक सुनाई देगी। यह फैसला उस 12 वर्षीय बच्चे की आपबीती से जुड़ा है, जो अपने माता-पिता के बीच की कड़वाहट का शिकार बनकर मानसिक और भावनात्मक रूप से बुरी तरह टूट चुका था।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो The MTA Speaks में बताया कैसे मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पहले पिता को कस्टडी दी थी, लेकिन अब अदालत ने उस फैसले को पलटते हुए मां को कस्टडी सौंप दी। इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम बात यह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उसका पूर्ववर्ती आदेश बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक था और उसे बिना बच्चे से संवाद किए ही सुनाया गया था। अदालत ने यह भी माना कि बच्चों की कस्टडी से जुड़ा कोई भी फैसला अंतिम नहीं हो सकता और समय के साथ, परिस्थितियों के अनुसार, अदालत को अपने आदेशों की समीक्षा करनी चाहिए।