

INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत उसका एकता का संदेश है। मोदी विरोधी वोटों को एकजुट करना है, लेकिन जैसे ही उसमें दरार आती है तो सबसे पहले वोट बंट सकते हैं। खासकर शहरी और मुस्लिम-युवाओं के बीच जो NDA को हराना चाहते हैं।
अरविंद केजरीवाल (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत उसका एकता का संदेश है। मोदी विरोधी वोटों को एकजुट करना है, लेकिन जैसे ही उसमें दरार आती है तो सबसे पहले वोट बंट सकते हैं। खासकर शहरी और मुस्लिम-युवाओं के बीच जो NDA को हराना चाहते हैं। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में अविश्वास बढ़ेगा, जिससे आपसी तालमेल की कमी रहेगी। ऐसे में BJP को सीधे तौर पर फायदा होगा, क्योंकि उनका कोर वोट बैंक स्थिर और समर्पित है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, AAP जैसी पार्टी को ‘तीसरे विकल्प’ की तरह देखे जाने का मौका मिलेगा, लेकिन साथ ही वो BJP और कांग्रेस दोनों से टकराएगी, जो मुश्किल बढ़ा सकता है। ऐसे में यदि केजरीवाल की पार्टी यदि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बिना किसी गठबंधन के मैदान में उतरती है, तो उन्हें इन कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
बिहार में AAP का जमीनी नेटवर्क बेहद कमजोर है। न तो पंचायत स्तर पर कार्यकर्ता हैं, न बूथ मैनेजमेंट। ऐसे में संगठनात्मक कमजोरी देखने को मिल सकती है।
AAP के पास राज्य में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो नीतीश, तेजस्वी या चिराग पासवान का मुकाबला कर सके।
बिहार की राजनीति जातीय गणित पर आधारित है। AAP इसमें अभी तक फिट नहीं बैठी है। ऐसे में केजरीवाल के लिए ये तीसरी और सबसे बड़ी चुनौती है।
विधानसभा चुनाव पूरे राज्य में लड़ना महंगा और जटिल होता है। पार्टी को भारी संसाधनों की जरूरत होगी।
AAP अकेले मैदान में होगी तो हर सीट पर उसे तीसरे खिलाड़ी की तरह देखा जाएगा—लेकिन जीत पाना कठिन होगा।
यदि केजरीवाल को इन बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, तो जाहिर सी बात है केजरीवाल के लिए चुनाव लड़का बहुत कठिन होने वाला है।
AAP को बिहार में न जीतने की बजाय "प्रभाव दिखाने" का अवसर मिल सकता है, जैसे कुछ सीटों पर सम्मानजनक प्रदर्शन या मुस्लिम-युवा मतदाताओं का झुकाव। दिल्ली मॉडल और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दे AAP को कुछ हद तक पहचान दिला सकते हैं, पर बिहार के मतदाता ज़्यादा भावनात्मक और जातीय आधार पर वोट करते हैं, जो AAP की शैली से मेल नहीं खाता।
राजनीतिक रूप से साहसी, लेकिन जोखिम भरा निर्णय है। अगर पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो ये उनके राष्ट्रीय स्तर पर असर को कमजोर कर सकता है। लेकिन अगर 10–15 सीटों पर भी लड़कर 3–4 जगहों पर अच्छा प्रदर्शन हुआ, तो AAP बिहार में भविष्य के लिए जमीन बना सकती है।
AAP का बिहार चुनाव अकेले लड़ना एक प्रयोगात्मक रणनीति है। जीतना मुश्किल, पर पार्टी छवि निर्माण और भविष्य की जमीन तैयार करने के मकसद से ये कर सकती है। अगर INDIA गठबंधन में दरार गहरी हुई, तो AAP तीसरा विकल्प बनने की कोशिश करेगी, लेकिन स्थानीय नेतृत्व की कमी, संगठन की कमजोरी और जातीय राजनीति की उलझनें उसे पीछे कर सकती हैं।