बिहार SIR विवाद: 65 लाख मतदाताओं की जानकारी वेबसाइटों पर की गई सार्वजनिक, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि बिहार की मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की जानकारी सभी जिलों की वेबसाइटों और गांव स्तर पर सार्वजनिक कर दी गई है। हटाने के कारणों में मृत्यु, निवास स्थानांतरण और डुप्लिकेट प्रविष्टियां शामिल हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 22 August 2025, 10:46 AM IST
google-preferred

New Delhi: चुनाव आयोग ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में एक अहम हलफनामा दायर कर यह जानकारी दी है कि बिहार के लगभग 65 लाख मतदाताओं, जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं थे, उनके नाम और हटाए जाने के कारणों की जानकारी राज्य के सभी 38 जिलों की निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर प्रकाशित कर दी गई है। यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त 2025 के निर्देश के अनुपालन में दायर किया गया है। कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया था कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान के दौरान हटाए गए मतदाताओं की जानकारी बूथ-वार सार्वजनिक की जाए, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।

नाम हटाने के कारण

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि 65 लाख नामों को मतदाता सूची से हटाने के पीछे कुछ ठोस कारण हैं।
• मृत्यु
• निवास का स्थानांतरण (Migration)
• डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ (Duplicate entries)
जैसे कारण शामिल हैं। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया नियमित पुनरीक्षण का हिस्सा थी और इसे कानून के अनुसार निष्पादित किया गया।

गांव-गांव में चस्पा की गई सूची की भौतिक प्रतियां

चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि मतदाताओं को जानकारी देने के लिए केवल ऑनलाइन माध्यम पर निर्भर नहीं रहा गया, बल्कि बिहार के प्रत्येक गांव में पंचायत भवन, प्रखंड विकास कार्यालय और पंचायत कार्यालयों में भौतिक रूप से सूची की प्रतियां चस्पा की गई हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्रामीण एवं डिजिटल साक्षरता से वंचित मतदाता भी इन सूचनाओं तक पहुंच सकें और यदि उनके नाम सूची से हटाए गए हैं तो वे इसकी जानकारी प्राप्त कर सकें।

ऑनलाइन प्रचार और जागरूकता अभियान भी चलाए गए

आयोग ने हलफनामे में कहा कि उसने मतदाता सूची से संबंधित जानकारी और शिकायत निवारण प्रक्रिया को आम जनता तक पहुंचाने के लिए अखबारों, रेडियो, टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से विस्तृत जागरूकता अभियान भी चलाया है। इसका उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया के प्रति जागरूक करना है।

आधार कार्ड के साथ दावा प्रस्तुत कर सकते हैं मतदाता

चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया कि ऐसे मतदाता जिनके नाम मसौदा सूची में नहीं हैं, वे अपने दावे के समर्थन में आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्रों की प्रतियां प्रस्तुत कर सकते हैं। आयोग का कहना है कि इससे गलती से हटाए गए योग्य मतदाताओं को सूची में दोबारा जोड़ा जा सकेगा।

जनवरी 2025 की सूची में थे नाम

हलफनामे के अनुसार, ये लगभग 65 लाख नाम पहले से ही जनवरी 2025 में तैयार की गई मतदाता सूची में शामिल थे। लेकिन एसआईआर प्रक्रिया के दौरान इनकी पुनः जांच की गई और विभिन्न आधारों पर हटाया गया।

सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ आज फिर से उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें चुनाव आयोग के इस कदम को चुनौती दी गई है।

• राजद सांसद मनोज झा
• एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स)
• पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज)
• कार्यकर्ता योगेंद्र यादव
• टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा
• बिहार के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम

24 जून के निर्देश को रद्द करने की मांग

इन याचिकाओं में चुनाव आयोग के 24 जून 2025 के उस निर्देश को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें कहा गया था कि मतदाता सूची में बने रहने के लिए नागरिकता का प्रमाण देना अनिवार्य होगा। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की शर्तें गरीब, वंचित और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मतदाताओं के अधिकारों को बाधित करती हैं। विशेषकर उन लोगों को जो आधार कार्ड या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज रखते हैं, लेकिन जिनके पास नागरिकता के औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं।

नागरिकता प्रमाण की अनिवार्यता पर सवाल

याचिकाओं में यह भी तर्क दिया गया कि मतदाता सूची में बने रहने के लिए नागरिकता का अलग से प्रमाण देना भारत के नागरिकों के लिए अनावश्यक बाधा है, क्योंकि पहले से ही उनकी पहचान अन्य सरकारी दस्तावेजों द्वारा प्रमाणित होती रही है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 22 August 2025, 10:46 AM IST