

सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है, लेकिन वहां भी फैसले लोगों द्वारा लिए जाते हैं। कानून की व्याख्या में गलति, अधूरी जानकारी या परिस्थितियों में बदलाव के चलते कभी-कभी कोर्ट कोई फैसला बाद में गलत मान सकती है। ऐसे में हां सुप्रीम कोर्ट भी गलत फैसला सुना सकता है। साथ ही अपने फैसले में सुधार भी कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है, लेकिन वहां भी फैसले लोगों द्वारा लिए जाते हैं। कानून की व्याख्या में गलति, अधूरी जानकारी या परिस्थितियों में बदलाव के चलते कभी-कभी कोर्ट कोई फैसला बाद में गलत मान सकती है। ऐसे में हां सुप्रीम कोर्ट भी गलत फैसला सुना सकता है। साथ ही अपने फैसले में सुधार भी कर सकता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, अभी हाल ही के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बच्चे की कस्टडी से जुड़े एक मामले में अपना 10 महीने पुराना फैसला वापस ले लिया । अदालत ने 12 वर्षीय लड़के की कस्टडी उसके पिता से वापस लेकर दोबारा मां को दे दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कस्टडी पर दिए गए फैसले अंतिम नहीं होते। यह मामला बच्चे की मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से जुड़ा है।
यदि जज गलत फैसला सुनाता है तो अपने इस फैसले को सही करने के लिए जज के पास दो रास्ते होते है। पहला है रिव्यू पेटिशन (Review Petition)। इसमे अगर किसी को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला गलत सुनाया है, तो 30 दिनों के अंदर एक पुनर्विचार याचिका (review petition) दायर की जा सकती है। इसमें वही बेंच या दूसरी बेंच दोबारा उस फैसले की समीक्षा करती है।
दूसरा तरिका क्यूरेटिव पेटिशन (Curative Petition) का है। इसमे अगर Review में भी न्याय नहीं मिला, तो Curative Petition दाखिल की जा सकती है। यह अंतिम उपाय होता है। सुप्रीम कोर्ट खुद भी "Inherent Power" के तहत कोई फैसला बदल सकता है, यदि यह लगे कि पहले का आदेश न्याय के मूल सिद्धांत के खिलाफ था।
ऐसा संभव है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। यदि सुप्रीम कोर्ट को यह लगे कि पूर्व फैसला "पेर इनक्यूरियम" (Per Incuriam) था, यानी उसने किसी महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान को नजरअंदाज किया था तो वह उसे बदल सकता है। बड़ी बेंच (larger bench) पहले के निर्णय को overrule कर सकती है। परंतु, यदि कोई फैसला "final और executed" हो गया है (जैसे फांसी हो गई, संपत्ति बंट चुकी हो, इत्यादि), तो उसे पलटना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।
सुप्रीम कोर्ट भी इंसानी संस्था है, और वहां भी गलती की संभावना होती है। न्याय के सिद्धांतों के तहत, सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला बदल सकता है यदि बाद में लगता है कि वह अन्यायपूर्ण या गलत था। ऐसा करने की प्रक्रिया कानूनी और सीमित परिस्थितियों में होती है मनमर्जी से नहीं।
भारत में सुप्रीम कोर्ट के जजों को उनके पद से संसद के द्वारा महाभियोग (Impeachment) के ज़रिए हटाया जा सकता है यदि वे जानबूझकर गलत निर्णय दें, भ्रष्टाचार करें, या आचरणविहीन साबित हों। लेकिन अब तक भारत में किसी भी सुप्रीम कोर्ट जज को महाभियोग में दोषी नहीं ठहराया गया है।