

भारत सरकार की ओर से नागरिकों को उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाने वाले पद्म पुरस्कार आज देश के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों में गिने जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले ये पुरस्कार किसे मिला था?
जानिये देश के प्रथम पद्म पुरस्कार विजेताओं के बारे में
New Delhi: भारत सरकार की ओर से नागरिकों को उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाने वाले पद्म पुरस्कार आज देश के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों में गिने जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1954 में जब पहली बार ये पुरस्कार शुरू हुए, तो किन-किन हस्तियों को यह गौरव प्राप्त हुआ था? आइए जानें उन पहले पद्म पुरस्कार विजेताओं के बारे में जिन्होंने भारत के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पद्म सम्मान की शुरुआत को ऐतिहासिक बना दिया। सबसे पहले बताते हैं कि, भारत में सबसे पहले पद्म पुरस्कार किसे मिला था।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, पद्म पुरस्कार सन् 1954 से देना प्रारंभ किया गया था। सबसे पहले पद्म पुरस्कार सत्येंद्र नाथ बोस को दिया गया था। सत्येंद्र नाथ बोस को सबसे पहले 1954 में पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाजा गया था। वहीं इसी साल 2025 में नंदलाल बोस, जाकिर हुसैन, बालासाहेब गंगाधर खेर और वी के कृष्ण मेनन को भी पद्म विभूषण दिया गया था।
भारत सरकार ने 1954 में तीन नागरिक सम्मानों की स्थापना की थी। भारत रत्न जिसे सबसे उच्च नागरिक सम्मान में दिया जाता है दूसरा पद्म विभूषण और तीसरा पद्म भूषण। उस समय पद्म श्री नहीं था, यह 1955 में जोड़ा गया। इन तीनों की स्थापना की गई थी। शुरुआत में पद्म विभूषण को तीन श्रेणियों में अलग-अलग किया गया, जिनके नाम पद्म विभूषण प्रथम श्रेणी , पद्म विभूषण द्वितीय श्रेणी और पद्म विभूषण तृतीय श्रेणी रखे गए। बाद में 1955 में इन श्रेणियों को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे नामों से अलग-अलग पुरस्कारों के रूप में पुनर्गठित किया गया ।
1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाली प्रमुख हस्तियां थीं।
सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन – महान शिक्षाविद, दार्शनिक और बाद में भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बने।
सी. राजगोपालाचारी – स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले और अंतिम गवर्नर जनरल।
डॉ. भगवान दास – भारतीय दर्शन और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रसिद्ध।
नीलकांत श्रीनिवास बेलावड़ी – विज्ञान और अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान।
बालासाहेब केहर – चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में योगदान।
इन सभी को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा सम्मानित किया गया था।
राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी शिक्षाशैली और विचारधारा ने आधुनिक भारत के बौद्धिक आधार को मजबूत किया। राजा गोपालाचारी न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उन्होंने रामायण और महाभारत का तमिल में अनुवाद कर भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाया। डॉ. भगवान दास का कार्यभार भारतीय दर्शन की पुनर्रचना और शास्त्रों की व्याख्या में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। नीलकांत बेलावड़ी ने विज्ञान शिक्षा को भारत में संस्थागत रूप दिया। बालासाहेब केहर ने ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती देने में अग्रणी भूमिका निभाई।
आज पद्म पुरस्कारों की संख्या बढ़ चुकी है और हर वर्ष विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी सैकड़ों प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाता है। लेकिन जिन हस्तियों ने इस पुरस्कार की शुरुआत में इसे प्राप्त किया, वे भारत के लिए प्रेरणा और गौरव का स्रोत हैं। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि सच्ची प्रतिभा और समर्पण की पहचान कभी समय या सीमाओं की मोहताज नहीं होती।
यह कहानी सिर्फ पुरस्कारों की नहीं, बल्कि एक नवजात राष्ट्र के निर्माणकर्ताओं के संघर्ष और योगदान की है। जब भी हम पद्म पुरस्कारों की बात करें, उन पहले विजेताओं को याद करना जरूरी हो जाता है, जिन्होंने भारत को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।
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