अब जेल से नहीं चलेगी सरकार: पीएम-सीएम-मंत्री तक पर लगेगी संवैधानिक लगाम, जानिए नए बिल ने क्यों बढ़ाई सियासी हलचल?

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री अगर किसी गंभीर अपराध में 30 दिन तक जेल में रहते हैं, तो अब उन्हें पद छोड़ना होगा। संसद में पेश इस नए संविधान संशोधन विधेयक से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है।

Post Published By: सौम्या सिंह
Updated : 20 August 2025, 1:11 PM IST
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New Delhi: संसद के मानसून सत्र के दौरान बुधवार को एक ऐतिहासिक और चर्चित विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, जिसने देश की राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर नई बहस छेड़ दी है। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक पेश किए। इन तीनों विधेयकों में से संविधान संशोधन विधेयक पर सबकी निगाहें टिकी रहीं, क्योंकि यह सीधे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों से जुड़े आचरण और दायित्व से जुड़ा है।

इस विधेयक में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि अगर कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री किसी अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिन तक लगातार हिरासत में रहता है, और वह अपराध ऐसा है जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।

क्या हैं मुख्य प्रावधान?

इस विधेयक के तहत संविधान के अनुच्छेद 75, 164, और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव है-

अनुच्छेद 75 केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री और मंत्रियों से संबंधित है।

अनुच्छेद 164 राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों से जुड़ा है।

अनुच्छेद 239AA दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित है, जहां विधानसभाएं हैं।

Home Minister Amit Shah

संसद के मानसून सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह

संशोधन के तहत धारा 75 में एक नया क्लॉज 5(ए) जोड़ा जाएगा, जिसके मुताबिक अगर कोई केंद्रीय मंत्री लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहता है, और उस पर ऐसा अपराध दर्ज है जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर उसे 31वें दिन पद से हटा देंगे।

अगर प्रधानमंत्री स्वयं ऐसे हालात में हों, तो उन्हें 31वें दिन इस्तीफा देना होगा, अन्यथा वे अपने आप पद से मुक्त माने जाएंगे।

यही नियम राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर भी समान रूप से लागू होंगे।

यह भी प्रावधान है कि अगर कोई गिरफ्तार मंत्री या प्रधानमंत्री बाद में रिहा होता है, तो वह दोबारा उसी पद पर नियुक्त हो सकता है- यानी इस नियम का असर केवल गिरफ्तारी की अवधि तक सीमित रहेगा।

बिल क्यों जरूरी है?

इस प्रस्तावित संशोधन के पीछे सरकार का तर्क है कि-

संविधान में अभी तक ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि किसी मंत्री या प्रधानमंत्री को गिरफ्तार होने के बाद उनके पद से हटाया जा सके।

जनप्रतिनिधियों का आचरण नैतिकता और जनता के विश्वास के अनुरूप होना चाहिए।

जेल में रहने वाले मंत्री या मुख्यमंत्री का पद पर बने रहना सुशासन, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

विपक्ष का विरोध

हालांकि यह विधेयक जैसे ही सदन में पेश हुआ, विपक्षी दलों ने इस पर कड़ा एतराज जताया। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह बिल विपक्ष को निशाना बनाने और लोकतंत्र को कमजोर करने का हथियार बन सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के गिरफ्तारी के आधार पर किसी नेता को पद से हटाना राजनीतिक प्रतिशोध का रास्ता खोल सकता है।

उन्होंने कहा, 'सत्ता पक्ष के नेताओं को छुआ भी नहीं जाता, जबकि विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी को ही औजार बना लिया गया है। अब यह कानून ऐसे नेताओं को पद से हटाने का जरिया बनेगा।'

पिछले कुछ वर्षों में अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन जैसे नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर पहले से ही विवाद और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे हैं। ऐसे में यह विधेयक संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक टकराव को और तेज कर सकता है।

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