कर्नाटक CM पद पर सिद्धारमैया के 5 साल के दावे के क्या हैं मायने? शिवकुमार कब खोलेंगे सियासी पत्ते?

कर्नाटक की राजनीति इन दिनों एक बार फिर उबाल पर है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के उस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 2 July 2025, 3:48 PM IST
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Bengaluru: कर्नाटक की सियासत एक बार फिर गर्म है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि "मैं पूरे 5 साल मुख्यमंत्री रहूंगा, क्या आपको कोई शक है?" इस बयान के साथ उन्होंने न केवल कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को चुनौती दी, बल्कि यह भी साफ कर दिया कि वे अपने कार्यकाल को लेकर पूरी तरह आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। लेकिन यह बयान जितना मजबूत दिखता है, उतना ही गहराई से राजनीतिक संकेतों से भरा भी है। खासकर तब, जब उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार अब तक पूरी रणनीतिक चुप्पी साधे हुए हैं।

सिद्धारमैया का '5 साल' फार्मूला

सिद्धारमैया का यह दावा सिर्फ मीडिया स्टेटमेंट नहीं, बल्कि कांग्रेस हाईकमान और विपक्ष दोनों के लिए एक सियासी सिग्नल है। एक तरफ वो दिखाना चाहते हैं कि पार्टी में अभी भी जनाधार और नेतृत्व के लिहाज से वे सबसे सक्षम हैं। दूसरी तरफ ये बयान शिवकुमार खेमे को भी संदेश है कि "कुर्सी के लिए अभी कोई गुंजाइश नहीं है।" इस वक्त जब कांग्रेस कई राज्यों में भीतरघात और नेतृत्व संकट से जूझ रही है, कर्नाटक में स्थायित्व दिखाना हाईकमान की भी प्राथमिकता है। शायद यही वजह है कि रणदीप सुरजेवाला जैसे वरिष्ठ नेता को सामने लाकर कहा गया कि "कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की कोई योजना नहीं है।"

शिवकुमार की चुप्पी में भी आवाज़

डीके शिवकुमार ने सिद्धारमैया के बयान पर संयमित प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि, “मेरे पास क्या विकल्प है? मुझे उनके साथ खड़ा होना है। हाईकमान जो कहेगा, वही करूंगा।” यह बयान ऊपर से वफादारी जैसा लगे, लेकिन जानकार मानते हैं कि शिवकुमार अभी 'सियासी इन्वेस्टमेंट मोड' में हैं। वे संगठन को मज़बूत कर रहे हैं। पार्टी फंडिंग और विधायक संपर्क में आगे हैं और शायद सबसे ज़रूरी – 2028 के चुनावों की तैयारी में अभी से जुटे हैं। शिवकुमार जानते हैं कि सीधे टकराव से ज्यादा असरदार होता है सही समय पर दांव चलना। और उनका ‘सही वक्त’ अभी नहीं आया।

क्या है हाईकमान की असली रणनीति?

कांग्रेस नेतृत्व इस समय ‘डबल पॉवर’ बैलेंस के फॉर्मूले पर चल रहा है। सिद्धारमैया को जनता के नेता के रूप में, शिवकुमार को संगठन और जातीय समीकरण संभालने के लिए और इस फार्मूले में बदलाव तभी होगा जब या तो चुनाव नजदीक हों या पार्टी के भीतर जनमत झुक जाए।

सूत्रों के अनुसार, असल में जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी, तब ही नेतृत्व को लेकर खींचतान दिखी थी। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। तब हाईकमान ने “संतुलन की राजनीति” अपनाते हुए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन यह बात लगभग तय मानी जा रही थी कि कार्यकाल के बीच में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार होगा। अब जबकि सिद्धारमैया 5 साल तक पद पर बने रहने की घोषणा कर चुके हैं, सवाल उठने लगे हैं — क्या डीके शिवकुमार के लिए मुख्यमंत्री बनने का रास्ता बंद हो गया है?

शिवकुमार ने इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ी है लेकिन बड़ी चालाकी से। उन्होंने कहा, “मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, मुझे उनके साथ खड़ा होना होगा। हाईकमान जो कहेगा, मुझे वही करना है। मैं अभी मुख्यमंत्री पद का इच्छुक नहीं हूं, मेरी प्राथमिकता 2028 का चुनाव है।” यह बयान सतही रूप से तो विनम्रता का परिचायक है, लेकिन राजनीति जानने वाले इसे रणनीति मानते हैं।

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