

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सीजेआई बीआर गवई ने भारत के पड़ोसी देशों में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता का जिक्र करते हुए भारतीय संविधान की मजबूती की सराहना की। उन्होंने कहा कि हमें अपने लोकतंत्र और संविधान पर गर्व है। यह टिप्पणी नेपाल और बांग्लादेश में जारी अशांति की पृष्ठभूमि में आई।
सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की गैर-मौजूदगी में कार्यवाहक के रूप में सीजेआई बीआर गवई ने बुधवार को एक सुनवाई के दौरान भारत के संविधान की मजबूती और लोकतंत्र की स्थिरता की सराहना की। उन्होंने कहा, “हमें अपने संविधान पर गर्व है।”
यह टिप्पणी तब आई, जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एक अहम कानूनी प्रश्न पर सुनवाई कर रही थी कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक तय समय-सीमा दी जा सकती है या नहीं?
विमल पान मसाला पर केस: शाहरुख, अजय और टाइगर को नोटिस जारी, जानें क्यों
सुनवाई के दौरान जब संविधान और विधायिका की प्रक्रिया पर चर्चा हो रही थी, तो सीजेआई गवई ने भारत के पड़ोसी देशों में मौजूदा राजनीतिक संकटों का जिक्र करते हुए कहा, “हमारे संविधान को देखें और फिर अपने पड़ोसी देशों की ओर नज़र डालें... हमें गर्व होना चाहिए कि हमारा लोकतंत्र कितना मजबूत है।” इस पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने कहा, “हां, बांग्लादेश में भी स्थिति गंभीर रही है।”
नेपाल में हाल ही में ‘जनरेशन Z’ द्वारा शुरू किया गया विरोध प्रदर्शन राजनीतिक संकट में बदल गया। प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार, सोशल मीडिया बैन और प्रशासनिक दमन के खिलाफ आवाज उठाई, जो कि धीरे-धीरे हिंसक हो गया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय पर धावा बोल दिया, जिसके बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। पुलिस कार्रवाई में अब तक 25 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
फ्रांस जल रहा है: 80 ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात और 200 गिरफ्तार, जानें वजह
बांग्लादेश में भी पिछले साल इसी तरह की अस्थिरता देखने को मिली थी। छात्र आंदोलन से शुरू हुआ प्रदर्शन सरकारी तंत्र और चुनाव व्यवस्था के विरोध में बदल गया, जिसने सरकार की नींव हिला दी थी। इन दोनों घटनाओं ने यह संकेत दिया कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया, संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं की विश्वसनीयता कितनी अधिक है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ उस संवैधानिक प्रश्न पर विचार कर रही है, जिसमें पूछा गया है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधानसभा से पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए कोई निर्धारित समय सीमा दी जा सकती है। इस बहस के दौरान भारतीय संविधान की संरचना, कार्यप्रणाली और लचीलापन की तुलना पड़ोसी देशों की अस्थिरता से करना, कोर्ट के विचार विमर्श का एक अहम पहलू बन गया।