सुप्रीम कोर्ट ने बहू की मौत के मामले में सास को किया बरी, दहेज प्रताड़ना को लेकर कही बड़ी बात

सुप्रीम कोर्ट ने बहू की मौत के मामले में दहेज प्रताड़ना के आरोप में फंसी सास को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न की बातें अक्सर हवा से भी तेज फैलती हैं और पड़ोसी के गवाह द्वारा दहेज की मांग न होने के साक्ष्य को निचली अदालतों द्वारा गलत तरीके से खारिज किया गया।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 30 August 2025, 10:26 AM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 29 अगस्त को एक अहम फैसला सुनाते हुए दहेज प्रताड़ना के आरोप में फंसी सास को बरी कर दिया। यह मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें सास को तीन साल की सजा सुनाई गई थी। बहू की मौत के इस दर्दनाक मामले में अदालत ने कहा कि दहेज के लिए होने वाली प्रताड़ना की बातें अक्सर हवा से भी तेज़ी से फैल जाती हैं, इसलिए आरोप लगाते समय साक्ष्यों को गंभीरता से देखना जरूरी है।

सास पर लगे थे आरोप

दरअसल, इस मामले में मृतका की सास पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत आरोप लगाए गए थे, जो पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के प्रति की गई क्रूरता से संबंधित है। मृतका की ओर से मायके वालों को बताया गया था कि ससुराल में दहेज के लिए बहू को प्रताड़ित किया जा रहा था। इसी आधार पर निचली अदालत और हाई कोर्ट ने सास को दोषी ठहराया था।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ध्यान दिया कि इस मामले में एक पड़ोसी गवाह ने अपने बयान में कहा कि बहू से कभी दहेज की मांग नहीं की गई थी। कोर्ट ने पाया कि निचली अदालतों ने इस गवाह के बयान को इसलिए खारिज किया क्योंकि दहेज की मांग जैसे मामले अक्सर चारदीवारी के भीतर होते हैं और बाहर के लोग इस बारे में जानकारी नहीं रख सकते। सुप्रीम कोर्ट ने इस निष्कर्ष को गलत बताया।

कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा, “ऐसे मामलों में जहां दहेज के लिए बहू को प्रताड़ित करने की बातें हवा से तेज़ी से फैलती हैं, हमें साक्ष्यों का विस्तार से परीक्षण करना चाहिए। केवल आरोपों पर दोषसिद्धि नहीं होनी चाहिए।”

क्या है पूरा मामला?

यह मामला वर्ष 2001 का है जब मृतका के पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी ससुराल में मृत पाई गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी बेटी गर्भवती थी और सास द्वारा ताने दिए जाते थे। परन्तु, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए सास को दोषमुक्त कर दिया।

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