

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शिलांग में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि केवल बाहरी आज़ादी पर्याप्त नहीं, जब तक आंतरिक स्वतंत्रता और जिम्मेदार नागरिकता न हो।
डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ का स्वतंत्रता दिवस पर संदेश
Shillong: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने स्वतंत्रता दिवस 2025 के अवसर पर मेघालय उच्च न्यायालय, शिलांग में एक विशेष समारोह को संबोधित करते हुए भारतीय स्वतंत्रता के गहरे और व्यापक अर्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1947 में जब भारत ने औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पाई, तो वह सिर्फ बाहरी आज़ादी थी। यदि उसके साथ आंतरिक आज़ादी और सामाजिक जिम्मेदारियाँ न हों, तो वह अधूरी मानी जानी चाहिए।
स्वतंत्रता का व्यापक अर्थ
अपने संबोधन की शुरुआत में डॉ. चंद्रचूड़ ने स्वतंत्रता को सिर्फ राजनीतिक या प्रशासनिक परिवर्तन मानने की सोच को सीमित बताया। उन्होंने कहा, “जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो यह सिर्फ अंग्रेजों से मुक्ति नहीं थी, यह हमारी आत्मा के पुनर्जागरण का क्षण था। यह एक अवसर था कि हम अपने जीवन, समाज और राष्ट्र का मार्गदर्शन खुद करें।" उन्होंने 15 अगस्त 1947 को “स्वराज” की प्राप्ति का प्रतीक बताया और कहा कि “यह सिर्फ शासन का हस्तांतरण नहीं था, बल्कि जिम्मेदारियों का आरंभ भी था।”
डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़
स्वतंत्रता और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर विशेष बल दिया कि स्वतंत्रता बिना कर्तव्यों के अधूरी है। उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है यदि हम अपने पर्यावरण का सम्मान न करें, अपने पड़ोसियों से प्रेम न करें, और समाज में सौहार्द न बनाए रखें। स्वतंत्र नागरिक वही होता है जो अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी निभाता है।” डॉ. चंद्रचूड़ ने पर्यावरण, सामाजिक समानता और मानवाधिकारों की रक्षा को आज के दौर की सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से एक बताया।
आंतरिक स्वतंत्रता और संगीत का संदेश
अपने उद्बोधन के दौरान उन्होंने "आंतरिक स्वतंत्रता" की बात करते हुए एक गहरे अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने सुबह एक देशभक्ति गीत सुना, जिसमें उन्हें मातृभूमि के प्रति समर्पण और एकता की भावना स्पष्ट रूप से महसूस हुई। उन्होंने कहा, “संगीत को समझने के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं होती। संगीत प्रेम, करुणा और मानवता के उन मूल्यों को अभिव्यक्त करता है, जो आंतरिक स्वतंत्रता के आधार हैं।” यह बयान स्वतंत्रता को एक आध्यात्मिक और मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ता है, जिसमें भावना और संवेदना का स्थान है।
कार्यक्रम में शामिल हुए सम्मानित अतिथि
इस मौके पर मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आई. पी. मुखर्जी तथा उनकी पत्नी, न्यायमूर्ति डिंगो, न्यायमूर्ति विश्वजीत पतिचाजी, न्यायमूर्ति नादिरा भट्ट्रिया, राज्य के विधि अधिकारी, शिलांग बार एसोसिएशन के सदस्य, महापंजीयक और उच्च न्यायालय के कई अधिकारीगण उपस्थित थे। इसके अलावा, बड़ी संख्या में छात्र, युवा, शिक्षाविद् और गणमान्य नागरिक भी समारोह में शामिल हुए, जिससे यह कार्यक्रम एक विविधतापूर्ण समागम बन गया।
न्यायपालिका की सामाजिक भूमिका पर बल
डॉ. चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में न्यायपालिका की भूमिका को भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका का कार्य केवल कानून की व्याख्या करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि संविधान में निहित मूल्यों का समाज में वास्तविक रूप में पालन हो।” उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे संविधान के मूल्यों को आत्मसात करें और सामाजिक सौहार्द, न्याय और समानता के पक्षधर बनें।
युवाओं को जागरूक नागरिक बनने की प्रेरणा
डॉ. चंद्रचूड़ ने समारोह में उपस्थित छात्रों को विशेष रूप से संबोधित करते हुए कहा कि आप इस देश का भविष्य हैं। आपकी स्वतंत्रता तब सार्थक होगी, जब आप समाज के लिए उपयोगी, जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनेंगे। उन्होंने शिक्षा को आंतरिक स्वतंत्रता का सबसे बड़ा साधन बताते हुए युवाओं से आग्रह किया कि वे सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण, और संविधान की भावना के अनुरूप आचरण को जीवन का हिस्सा बनाएं।