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मनरेगा का नाम बदलकर VB-GRAM G करने के सरकार के प्रस्ताव ने सियासी विवाद खड़ा कर दिया है। सरकार इसे ग्रामीण विकास का नया मॉडल बता रही है, जबकि विपक्ष इसे वैचारिक कदम करार दे रहा है। रोजगार बढ़ेगा, लेकिन राज्यों पर आर्थिक बोझ और मांग-आधारित व्यवस्था कमजोर होने की आशंका भी है।
क्या है मनरेगा के पीछे नाम बदलने की रणनीति
New Delhi: केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा का नाम बदलकर ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण’ (VB-GRAM G) करने के प्रस्ताव ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। संसद में गुरुवार यानी आज इस विधेयक पर चर्चा हुई और फिर कांग्रेस नेताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया, लेकिन विवाद सिर्फ नाम बदलने तक सीमित नहीं है। सवाल यह है कि जब न तो महात्मा गांधी पर सीधा हमला है और न ही किसी धार्मिक नाम का खुला इस्तेमाल, तो फिर इस मुद्दे पर इतना हंगामा क्यों?
नरेंद्र मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के दौर में लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को नए स्वरूप में पेश करने का प्रस्ताव रखा था। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को लोकसभा में इसका नया प्रारूप पेश किया था। आज MGNREGA की जगह लाने वाला ‘विकसित भारत–रोज़गार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ (VB-G RAM-G बिल) लोकसभा से पारित हो गया है। विधेयक के पारित होते ही सदन में विपक्ष ने कड़ा विरोध दर्ज कराया, जोरदार हंगामा किया और बिल की प्रतियां फाड़ते हुए अपना विरोध जताया।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी सरकार योजनाबद्ध तरीके से महात्मा गांधी के नाम से जुड़ी योजनाओं को खत्म कर रही है। प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस नेताओं ने इसे गांधी और कांग्रेस की विरासत मिटाने की कोशिश बताया है। वहीं सरकार का कहना है कि चूंकि योजना की संरचना, उद्देश्य और दायरा बदला जा रहा है, इसलिए इसे नई योजना माना जाना चाहिए।
वैसे तो केंद्र सरकार का मकसद है कि इस नई योजना के जरिए विकसित भारत 2047 की राष्ट्रीय दृष्टि के अनुरूप ग्रामीण विकास का नया ढांचा तैयार करना है। VB-GRAM G विधेयक के तहत ऐसे ग्रामीण परिवारों, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम कर सकते हैं, उन्हें एक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के मजदूरी रोजगार की वैधानिक गारंटी दी जाएगी। सरकार का दावा है कि इससे रोजगार को केवल अस्थायी मजदूरी तक सीमित न रखकर टिकाऊ परिसंपत्तियों के निर्माण से जोड़ा जाएगा।
नए मॉडल के तहत ग्रामीण विकास को चार प्रमुख प्राथमिकताओं के आधार पर आगे बढ़ाने का प्रस्ताव है, जिसमें सबसे पहले जल सुरक्षा पर जोर दिया गया है। इसके अंतर्गत जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, जल निकायों के पुनर्जीवन, वाटरशेड विकास और वनीकरण जैसे कार्य किए जाएंगे। दूसरी प्राथमिकता मुख्य ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर की है, जिसके तहत ग्रामीण सड़कों, स्कूल भवनों, सार्वजनिक ढांचों, स्वच्छता सुविधाओं, नवीकरणीय ऊर्जा और आवास निर्माण को मजबूत किया जाएगा। तीसरी प्राथमिकता आजीविका से जुड़े कार्यों की है, जिसमें कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, भंडारण, बाजार और कौशल विकास से जुड़ी उत्पादक परिसंपत्तियों के जरिए ग्रामीण आय और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर फोकस रहेगा। वहीं चौथी प्राथमिकता मौसमी और आपदा से जुड़े कार्यों की है, जिसके तहत बाढ़, सूखा और वनाग्नि जैसी आपदाओं से निपटने के लिए आश्रय स्थल, तटबंध निर्माण और पुनर्वास जैसे कार्यों के माध्यम से रोजगार सृजन के साथ ग्रामीण क्षेत्रों की आपदा-तैयारी को मजबूत किया जाएगा।
विपक्ष ‘G RAM G’ को भगवान राम से जोड़कर इसे धार्मिक राजनीति का हिस्सा बता रहा है। सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि यह Guarantee, Rozgar, Ajeevika, Mission, Gramin का संक्षिप्त रूप है और इसका कोई धार्मिक संदर्भ नहीं है।
नए मॉडल के तहत ग्रामीण विकास को चार प्रमुख प्राथमिकताओं के आधार पर आगे बढ़ाने का प्रस्ताव है, जिसमें सबसे पहले जल सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है-इसके तहत जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, जल निकायों के पुनर्जीवन, वाटरशेड विकास और वनीकरण जैसे कार्य किए जाएंगे। दूसरी प्राथमिकता मुख्य ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर की है, जिसके अंतर्गत ग्रामीण सड़कों, स्कूल भवनों, सार्वजनिक ढांचों, स्वच्छता सुविधाओं, नवीकरणीय ऊर्जा और आवास निर्माण को मजबूत किया जाएगा। तीसरी प्राथमिकता आजीविका से जुड़े कार्यों की है, जिसमें कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, भंडारण, बाजार और कौशल विकास से जुड़ी उत्पादक परिसंपत्तियों के माध्यम से ग्रामीण आय और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर फोकस रहेगा। वहीं चौथी प्राथमिकता मौसमी और आपदा से जुड़े कार्यों की है, जिसके तहत बाढ़, सूखा और वनाग्नि जैसी आपदाओं से निपटने के लिए आश्रय स्थल, तटबंध निर्माण और पुनर्वास जैसे कार्यों के जरिए रोजगार सृजन के साथ ग्रामीण क्षेत्रों की आपदा-तैयारी को सुदृढ़ किया जाएगा।
मनरेगा से कैसे अलग है VB-G RAM G Bill-2025? जानें इसकी 3 सबसे अहम खूबियां
नई व्यवस्था के तहत कई चुनौतियां और संभावित नुकसान सामने आ सकते हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब मजदूरी खर्च में राज्यों की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी तय की गई है, जिससे राज्यों पर ₹50,000 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने का अनुमान है। इसके अलावा आलोचकों को आशंका है कि यह योजना पहले की तरह मांग-आधारित न रहकर अधिक आपूर्ति-आधारित हो सकती है, यानी काम की उपलब्धता मजदूरों की मांग के बजाय बजट और केंद्र की प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगी। साथ ही कार्यों के दायरे और प्राथमिकताओं के निर्धारण में पंचायतों की अपनी स्थानीय जरूरतों के अनुसार काम चुनने की स्वायत्तता और लचीलापन भी सीमित हो सकता है, जिससे जमीनी स्तर पर योजना के प्रभावी क्रियान्वयन पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
नहीं। सरकार का कहना है कि यह योजना का पुनर्गठन (Re-structuring) है, न कि सीधा उन्मूलन। नया कानून लागू होने पर पुराना अधिनियम खुद प्रतिस्थापित होगा।
सरकार के अनुसार नहीं। यह Guarantee, Rozgar, Ajeevika, Mission, Gramin का संक्षिप्त रूप है। हालांकि विपक्ष इसे धार्मिक प्रतीक से जोड़कर देख रहा है।
हां। मनरेगा में 100 दिन की गारंटी थी, जबकि प्रस्तावित VB-GRAM G में 125 दिन की वैधानिक गारंटी का प्रावधान है।
हां। पहले 15 दिन तक भुगतान में देरी होती थी, अब साप्ताहिक भुगतान का प्रस्ताव है।
हां। पहले केंद्र 100% मजदूरी खर्च वहन करता था, अब 60:40 के अनुपात में राज्यों को भी हिस्सा देना होगा।
आलोचकों का कहना है कि कार्यों की प्राथमिकता केंद्र तय करेगा, जिससे मजदूरों की मांग पर आधारित मॉडल कमजोर पड़ सकता है।
हां। सरकार इसे विकसित भारत 2047 के लक्ष्य से जोड़कर ग्रामीण परिसंपत्ति निर्माण और आजीविका सृजन का मॉडल बता रही है।