Satyapal Malik: सत्यपाल मलिक से जुड़ी कुछ खास बातें; खेती-किसानी, सियासी संघर्ष, सफलता और विवादों की कहानी

उत्तर प्रदेश के बागपत से उठे सत्यपाल मलिक ने छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल पद तक का लंबा सफर तय किया। किसान आंदोलन, अनुच्छेद 370 और पुलवामा जैसे मुद्दों पर उनकी बेबाकी ने उन्हें खास पहचान दी। 79 वर्ष की उम्र में उनका निधन राजनीति के एक अध्याय का दुखद अंत है।

Updated : 5 August 2025, 4:20 PM IST
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New Delhi: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और देश के वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक का आज यानी मंगलवार को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे मलिक वेंटिलेटर पर थे। उनके निधन की पुष्टि उनके आधिकारिक X अकाउंट से की गई। सत्यपाल मलिक का निधन भारतीय राजनीति के एक ऐसे अध्याय का अंत है, जिसमें एक साधारण किसान परिवार से उठकर सत्ता के शिखर तक पहुंचने की प्रेरणादायक कहानी है- जो सियासी संघर्ष, जनहित की राजनीति, और बेबाक बयानों से भरी रही।

किसान परिवार से राजनीति तक

सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावड़ा गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। अपने छात्र जीवन से ही वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे। 1968-69 में छात्र राजनीति से अपने सफर की शुरुआत की। चौधरी चरण सिंह से करीबी के चलते उन्होंने 1974 में बागपत से विधानसभा चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने।

Satyapal Malik

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक

यह शुरुआत थी उस सियासी यात्रा की, जो उन्हें लोकदल, कांग्रेस, जनता दल और अंत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तक ले गई। उनका राजनीतिक सफर लगभग पांच दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने सांसद, राज्यसभा सदस्य, केंद्रीय मंत्री, और चार राज्यों के राज्यपाल जैसे विभिन्न पदों पर काम किया।

राज्यसभा से मंत्री पद तक

सत्यपाल मलिक 1980 में लोकदल के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे। बाद में 1984 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1986 में फिर से राज्यसभा पहुंचे। हालांकि बोफोर्स घोटाले के चलते उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में शामिल हो गए। 1989 में वे अलीगढ़ से सांसद बने और संसदीय कार्य व पर्यटन राज्यमंत्री के रूप में केंद्र सरकार में शामिल हुए।

बीजेपी से जुड़ाव और राज्यपाल की भूमिका

सत्यपाल मलिक 2004 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। हालांकि उसी वर्ष बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा और रालोद प्रमुख अजीत सिंह से हार गए। इसके बाद वे संगठनात्मक जिम्मेदारियों में सक्रिय रहे। 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया, फिर 2018 में जम्मू-कश्मीर भेजा गया।

उनके जम्मू-कश्मीर राज्यपाल रहते हुए ही 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया। यह निर्णय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और मलिक इस संवेदनशील समय में राज्यपाल पद पर थे। इसके बाद उन्हें गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

मोदी सरकार से टकराव

हालांकि मलिक का शुरूआती कार्यकाल मोदी सरकार के साथ रहा, लेकिन समय के साथ उनके विचार और रवैये में बदलाव आया। विशेषकर तीन कृषि कानूनों को लेकर उन्होंने खुलकर किसानों का समर्थन किया और मोदी सरकार की तीखी आलोचना की। उस समय वे मेघालय के राज्यपाल थे, बावजूद इसके उन्होंने कई बार कहा कि कृषि कानून किसानों के हित में नहीं हैं।

राज्यपाल पद से हटने के बाद वे और मुखर हो गए। उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर भी सरकार पर खुफिया विफलता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा था कि एक कार में 300 किलो आरडीएक्स 10-15 दिन तक घाटी में बिना जांच के घूमती रही- यह एक गंभीर चूक थी। उनके इन बयानों ने देशभर में राजनीतिक भूचाल ला दिया था।

कुल संपत्ति और पारदर्शिता

सत्यपाल मलिक ने 2004 के लोकसभा चुनाव में जो हलफनामा दाखिल किया था, उसके अनुसार उनके पास 76 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति थी और 3 लाख रुपये से ज्यादा का कर्ज था। वे अपने सरल और सादगीपूर्ण जीवन के लिए भी जाने जाते थे।

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सत्यपाल मलिक की कुल संपत्ति

किसान नेता की छवि

सत्यपाल मलिक ने किसानों के मुद्दों पर हमेशा बेबाक राय रखी। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन में उन्होंने किसानों का खुलकर साथ दिया। वे अक्सर कहते थे कि अगर सरकार ने समय रहते किसानों की बात नहीं सुनी, तो देश में असंतोष बढ़ेगा। उनके इस रुख ने उन्हें किसान समर्थक नेताओं की कतार में ला खड़ा किया।

विवादों में घिरे लेकिन डिगे नहीं

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में सत्यपाल मलिक ने कई बार सत्ता पक्ष से टकराव मोल लिया। वे उन चंद नेताओं में थे जो पद पर रहते हुए भी सरकार की नीतियों की आलोचना करने का साहस रखते थे। यही कारण रहा कि वे कई बार राजनीतिक हलकों में विवादों के केंद्र में रहे, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे।

अंतिम विदाई और विरासत

सत्यपाल मलिक के निधन पर राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई है। कई वरिष्ठ नेताओं और राजनीतिक दलों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 5 August 2025, 4:20 PM IST